2 (1-2) प्रभु! तूने अपने देश पर कृपादृष्टि की, तूने याकूब को निर्वासन से वापस बुलाया।
3) तूने अपनी प्रजा के अपराध क्षमा किये, तूने उसके सभी पापों को ढक दिया।
4) तेरा रोष शान्त हो गया, तेरी क्रोधाग्नि बुझ गयी।
5) हमारे मुक्तिदाता प्रभु! हमारा उद्धार कर। हम पर से अपना क्रोध दूर कर।
6) क्या तू सदा हम से अप्रसन्न रहेगा? क्या तू पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपना क्रोध बनाये रखेगा?
7) क्या तू लौट कर हमें नवजीवन नहीं प्रदान करेगा, जिससे तेरी प्रजा तुझ में आनन्द मनाये?
8) प्रभु! हम पर दयादृष्टि कर! हमें मुक्ति प्रदान कर!
9) प्रभु-ईश्वर जो कहता है, मैं वह सुनना चाहता हूँ। वह अपनी प्रजा को, अपने भक्तों को शान्ति का सन्देश सुनाता है, जिससे वे फिर कभी पाप नहीं करे।
10) उसके श्रद्धालु भक्तों के लिए मुक्ति निकट है। उसकी महिमा हमारे देश में निवास करेगी।
11) दया और सच्चाई, न्याय और शान्ति ये एक दूसरे से मिल गये।
12) सच्चाई पृथ्वी पर पनपने लगी, न्याय स्वर्ग से दयादृष्टि करता है।
13) प्रभु हमें सुख-शान्ति देता है और पृथ्वी अपनी फसल उत्पन्न करती है।
14) न्याय प्रभु के आगे-आगे चलता है और शान्ति उसका अनुगमन करती है।