2 (1-2) ईश्वर उठता है; उसके शत्रु बिखर जाते हैं, उसके विरोधी उसके सामने से भागते हैं।
3) तू उन्हें धुँए की तरह उड़ा देता है। मोम जिस तरह आग में पिघलता है, उसी तरह विधर्मी ईश्वर के सामने नष्ट हो जाते हैं।
4) धर्मी ईश्वर के सामने आनन्द मनाते हैं, वे प्रफुल्लित हो कर नृत्य करते हैं।
5) ईश्वर के आदर में गीत गाओ, उसके नाम का भजन सुनाओ। जो बादलों पर विराजमान है, उसकी स्तुति करो। प्रभु उसका नाम है, उसके सामने आनन्द मनाओ।
6) अनाथों का पिता, विधवाओं का रक्षक, यही ईश्वर अपने पावन मन्दिर में निवास करता है।
7) ईश्वर परित्यक्तों को आवास देता और बन्दियों को छुड़ा कर आनन्द प्रदान करता है, किन्तु विद्रोही निर्जन स्थानों में रहते हैं।
8) ईश्वर! जब तू अपनी प्रजा के आगे-आगे चलता था, जब तू मरूभूमि पार करता था,
9) तो सीनई के ईश्वर के सामने, इस्राएल के ईश्वर के सामने पृथ्वी काँप उठी और आकाश से वर्षा हुई।
10) ईश्वर! तूने प्रचुर जल बरसा कर अपनी थकी हुई प्रजा को नवजीवन प्रदान किया।
11) तेरी प्रजा वहाँ बस गयी और तूने वहाँ दयापूर्वक दरिद्रों का भरण-पोषण किया।
12) प्रभु घोषणा करता है, वह महासेना को सुसमाचार सुनाता है:
13 (13-14) "राजा और उसकी सेनाएं भागी जाती हैं, भागी जाती हैं और तुम भेड़शालाओं में विश्राम करते हो। विजेताओं की स्त्रियाँ लूट बाँधती हैं। वे कपोत के पंखों-जैसी चाँदी से, कपोत के पिच्छकों-जैसी पीले सोने से अलंकृत हैं।"
15) जब सर्वोच्च प्रभु ने वहाँ राजाओं को तितर-बितर किया, तब सलमोन पर्वत पर हिमपात हो रहा था।
16) बाशान पर्वत बहुत ऊँचा है, बाशान पर्वत के अनेक शिखर हैं।
17) ऊँचे पर्वतो! तुम उस पर्वत से ईर्ष्या क्यों करते हो? प्रभु ने उसे अपने निवास के लिए चुना है, जहाँ वह सदा-सर्वदा विराजमान होगा।
18) ईश्वर के लाखों रथ हैं, प्रभु सीनई से अपने मन्दिर आया है।
19) तू ऊँचाई पर चढ़ा और बन्दियों को अपने साथ ले गया। तूने मनुष्यों और विरोधियों को भी शुल्क-स्वरूप ग्रहण किया, जिससे तू, प्रभु-ईश्वर वहाँ निवास करे।
20) हम प्रतिदिन प्रभु को धन्यवाद दिया करें। ईश्वर हमें संभालता और विजय दिलाता है।
21) ईश्वर हमारा उद्धार करता है। प्रभु-ईश्वर हमें मृत्यु से बचाता है।
22) ईश्वर अपने शत्रुओं का सिर कुचलता है, उस व्यक्ति को, लम्बे बाल वाली खोपड़ी को, जो कुमार्ग पर चलता है।
23) प्रभु ने कहा: "मैं तुम्हें बाशान से ले आऊँगा, तुम्हें समुद्र की गहराइयों से निकाल कर लाऊँगा,
24) जिससे तुम रक्त में अपने पैर धोओ और तुम्हारे कुत्तों की जीभों को शत्रुओं का अपना हिस्सा मिले।"
25) ईश्वर! उन्होंने मेरी शोभा-यात्राओं का देखा, मन्दिर में मेरे ईश्वर, मेरे प्रजा की शोभा-यात्राओं को।
26) गायक आगे, वादक पीछे, बीच में वीणा बजाती हुई युवतियाँ।
27) वे गाते हुए ईश्वर को धन्य कहते थे, इस्राएल के पर्वों में प्रभु को धन्य कहते थे।
28) वहाँ कनिष्ठ वंश बेनयामीन, वहाँ यूदा के नेताओं का बहुसंख्यक दल, वहाँ जबूलोन और नपताली के नेता।
29) तुम्हारे ईश्वर ने तुम को बल प्रदान किया। ईश्वर! अपना सामर्थ्य प्रदर्शित कर। तूने पहले भी हमारे लिए महान् कार्य किये।
30) राजा लोग, उपहार लिये, येरूसालेम में तेरे ऊँचे मन्दिर के सामने तेरे पास आयेंगे।
31) सरकण्ड़ों में विचरने वाले पशु को, सांड़ों के झुण्ड को, राष्ट्रों के शासकों को डाँट जिससे वे चाँदी की सिल्लियाँ लिये तुझे दण्डवत् करें। युद्धप्रिय राष्ट्रों को तितर-बितर कर।
32) मिस्र के सामन्त आयेंगे, इथोपिया ईश्वर के आगे हाथ पसारेगी।
33) पृथ्वी के राज्यो! ईश्वर का भजन गाओ। प्रभु का स्तुतिगान करो।
34) वह चिरन्तन आकाश के ऊपर विराजमान है। देखो, उसकी वाणी मेघगर्जन में बोलती है।
35) ईश्वर का सामर्थ्य स्वीकार करो। उसकी महिमा इस्राएल पर छायी हुई हैं। उसका सामर्थ्य आकाशमण्डल में व्याप्त है।
36) ईश्वर अपने पावन मन्दिर में प्रतापी है। वह इस्राएल का ईश्वर है। वह अपनी प्रजा को बल और सामर्थ्य प्रदान करता है। ईश्वर धन्य है!