2 (1-2) ईश्वर! मौन न रह। ईश्वर! शान्त और निष्क्रिय न रह।
3) देख! तेरे शत्रु सक्रिय हैं, तेरे बैरी सिर उठा रहे हैं।
4) वे तेरी प्रजा के विरुद्ध षड्यन्त्र रचते और तेरे कृपापात्रों के विरुद्ध परामर्श करते हैं।
5) वे कहते हैं, "चलो, हम उन्हें राष्ट्र नहीं रहने दें, इस्राएल का नाम किसी को याद न रहे"।
6) वे एकमत हो कर परामर्श करते हैं, वे तेरे विरुद्ध परस्पर सन्धि करते हैं-
7) एदोम और इसमाएल के निवासी, मोआबी और हागार के वंशज,
8) गबाली, अम्मोनी, अमालोकी, फिलिस्तिया और तीरुस के निवासी।
9) अस्सूरी भी उन से मिल गये और उन्होंने लोट के पुत्रों का हाथ मजबूत किया।
10) उनके साथ वैसा कर, जैसा तूने मिदयान के साथ किया था, जैसा तूने कीशोन नदी के पास सीसरा और याबीन के साथ किया था।
11) एनदोर में उनका विनाश हुआ था; वहाँ वे भूमि की खाद बन गये थे।
12) उनके राजकुमारों को ओरेब और ज़एब के सदृश बना दे, उनके सब सामन्तों को ज़बह और सलमुन्ना के सदृश,
13) जो यह कहते थे, "हम ईश्वर के चरागाहों को अपने अधिकार में कर लें"।
14) मेरे ईश्वर! उन्हें बवण्डर के पत्तों के सदृश, पवन में भूसी के सदृश बना दे।
15) जिस तरह आग जंगल को भस्म कर देती है, जिस तरह ज्वाला पर्वतों को जलाती है;
16) उसी तरह अपने तूफान से उनका पीछा कर, अपनी आँधी से उन्हें आतंकित कर।
17) प्रभु! उनका मुख कलंकित कर, जिससे लोग तेरे नाम की शरण आयें।
18) वे सदा के लिए लज्जित और भयभीत हों और कलंकित हो कर नष्ट हो जायें।
19) वे जान जायें कि तेरा ही नाम प्रभु है, तू ही समस्त पृथ्वी पर सर्वोच्च ईश्वर है।