2 (1-2) ईश्वर में ही मुझे शान्ति मिलती है; वही मेरा उद्धार कर सकता है;
3) वही मेरी चट्टान है, मेरा उद्धार और मेरा गढ़; मैं विचलित नहीं होऊँगा।
4) तुम सब मिल कर कब तक एक व्यक्ति पर आक्रमण करते रहोगे और उसे ढहती दीवार या धँसते घेरे की तरह गिराना चाहोगे?
5) वे उसके पद से उसे हटाना चाहते हैं। उन्हें झूठ बोलने में आनन्द आता है। वे मुख से आशीर्वाद, किन्तु हृदय से अभिशाप देते हैं।
6) मेरी आत्मा! ईश्वर में ही शान्ति प्राप्त करो, क्योंकि उसी से मुझे आशा है।
7) वही मेरी चट्टान है, मेरा उद्धार और मेरा गढ़ है; मैं विचलित नहीं होऊँगा।
8) ईश्वर से ही सुरक्षा और सम्मान मिलता है; वही मेरा बल और मेरा आश्रय है।
9) मेरी प्रजा! हर समय उसी पर भरोसा रखो। उसी के सामने अपना हृदय खोलो, क्योंकि ईश्वर हमारा आश्रय है।
10) साधारण मनुष्य श्वास मात्र हैं और कुलीन लोग झूठे हैं। यदि सब को तुला कर चढ़ाया जाये तो वे श्वास से भी हल्के निकलेंगे।
11) अत्याचार पर भरोसा मत रखो और लूट के माल पर गर्व मत करो। यदि तुम्हारी धन-सम्पत्ति बढ़ती जाये, तो उस में अपना हृदय आसक्त न होने दो।
12) ईश्वर ने एक बात कही, मैंने उसे दो बार सुना है- ईश्वर ही समर्थ है।
13) प्रभु! तू ही सत्यप्रतिज्ञ है। तू ही हर एक को उसके कर्मों का फल देता है।