2 (1-3) समस्त राष्ट्रों! मेरी यह बात सुनो! क्या बड़े, क्या छोटे, क्या धनी, क्या दरिद्र, पृथ्वी के सब निवासियों! तुम ध्यान दो।
4) मेरा मुख ज्ञान की बातें कहता है, मेरे हृदय के उद्गार विवेकपूर्ण हैं।
5) मैं दृष्टांत को ध्यान में रख कर सितार-वादन के साथ रहस्य समझाता हूँ।
6) मैं संकट के दिनों में क्यों डरूँ, जब मैं कपटियों के बैर से घिरा हुआ हूँ?
7) उन्हें अपने धन का भरोसा है, वे अपने वैभव पर गर्व करते हैं।
8) मनुष्य न तो अपने भाई का उद्धार कर सकता और न उसके जीवन का मूल्य ईश्वर को दे सकता है।
9) प्राणों का मूल्य इतना ऊँचा है कि किसी के पास पर्याप्त धन नहीं।
10) क्या कोई सदा के लिए जीवित रहेगा? कभी वह मृत्यु का गर्त नहीं देखेगा?
11) लोग देखते हैं कि बुद्धिमान मर जाते हैं; उनकी तरह मूर्ख और नासमझ मर कर अपनी सम्पत्ति दूसरों के लिए छोड़ जाते हैं।
12) उनकी कब्र सदा के लिए उनका घर है। वे पीढ़ी-दर-पीढ़ी उस में निवास करेंगे, हालाँकि उन्होंने अपने नाम पर अपनी जमीन का नाम रखा था।
13) मनुष्य अपने वैभव में यह नहीं समझता, वह गूंगे, पशुओं के सदृश है।
14) यह उन लोगों की गति है, जो अपने पर भरोसा रखते हैं। यह उनका भविष्य है, जो ऐसे लोगों की चाटुकारी करते हैं।
15) वे भेंड़ों की तरह अधोलोक के बाड़े में रखे जायेंगे, मृत्यु उन्हें चराने ले जायेगी। वे सीधे कब्र में उतरेंगे। उनका शरीर गल जायेगा और वे अधोलोक में निवास करेंगे,
16) जब कि ईश्वर मेरी आत्मा का उद्धार करेगा और मुझे अधोलोक से निकालेगा।
17) इसकी चिन्ता मत करो यदि कोई धनी बनता हो और उसके घर का वैभव बढ़ता जाये
18) मरने पर वह अपने साथ कुछ नहीं ले जाता है और उसका वैभव उसका साथ नहीं देता।
19) वह अपने जीवनकाल में अपने को धन्य समझता था- "लोग तुम्हारे वैभव के कारण तुम्हारी प्रशंसा करते हैं"।
20) वह अपने पूर्वजों के पास जायेगा, जो कभी दिन का प्रकाश नहीं देखेंगे।
21) मनुष्य अपने वैभव में यह नहीं समझता, वह गूंगे, पशुओं के सदृश है।