1) पृथ्वी और जो कुछ उस में है, संसार और उसके निवासी-सब प्रभु का है;
2) क्योंकि उसी ने समुद्र पर उसकी नींव डाली और जल पर उसे स्थापित किया है।
3) प्रभु के पर्वत पर कौन चढ़ेगा? उसके मन्दिर में कौन रह पायेगा?
4) वही, जिसके हाथ निर्दोष और हृदय निर्मल है, जिसका मन असार संसार में नहीं रमता जो शपथ खा कर धोखा नहीं देता।
5) प्रभु की आशिष उसे प्राप्त होगी, मुक्तिदाता ईश्वर उसे धार्मिक मानेगा।
6) ऐसे ही हैं वे लोग, जो प्रभु की खोज में लगे रहते हैं, जो याकूब के ईश्वर के दर्शनों के लिए तरसते हैं।
7 फाटको! मेहराब ऊपर करो! प्राचीन द्वारो! ऊँचे हो जाओ! महाप्रतापी राजा को प्रवेश करने दो।
8) वह महाप्रतापी राजा कौन है? प्रभु ही वह महाप्रतापी राजा है- समर्थ, शक्तिशाली और पराक्रमी।
9 फाटको! मेहराब ऊपर करो! प्राचीन द्वारो! ऊँचे हो जाओ! महाप्रतापी राजा को प्रवेश करने दो।
10) वह महाप्रतापी राजा कौन है? प्रभु ही वह महाप्रतापी राजा विश्वमण्डल का प्रभु है।