📖 - स्तोत्र ग्रन्थ

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अध्याय 03

2 (1-2) प्रभु! कितने ही मेरे शत्रु! कितने है, जो मुझ से विद्रोह करते हैं!

3) कितने हैं, जो मेरे विषय में यह कहते हैं: उसका ईश्वर उसकी सहायता नहीं करता।

4) प्रभु! तू ही मेरी ढाल और मेरा गौरव है। तू ही मेरा सिर ऊँचा करता है।

5) मैं प्रभु को ऊँचे स्वर में पुकारता हूँ, वह अपने पवित्र पर्वत से मुझे उत्तर देता है।

6) मैं लेट कर निश्चिन्त सो जाता और सकुशल जागता हूँ, क्योंकि प्रभु मुझे संभालता है।

7) मैं उन लाखों शत्रुओं से नहीं डरता, जो चारों ओर मेरे विरुद्ध खड़े हैं।

8) प्रभु! मेरे ईश्वर! उठ कर मुझे बचा। तू मेरे सब शत्रुओं पर चोट करता और विधर्मियों को दन्तहीन कर देता है।

9) प्रभु! तू ही हमारा उद्धारक है। अपनी प्रजा को आशीर्वाद प्रदान कर।



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