3 (1-3) ईश्वर! तूने हमें त्यागा और छिन्न-भिन्न कर दिया। तू हम पर क्रुद्ध हुआ, अब हमारा उद्धार कर।
4) तूने पृथ्वी को कँपाया और वह फट गयी। अब उसकी दरारें भर दे, क्योंकि वह डगमगाती है।
5) तूने अपनी प्रजा को घोर कष्ट में डाला और हमें लड़खड़ा देने वाली मदिरा पिलायी।
6) जो तुझ पर श्रद्धा रखते हैं, तूने उन्हें संकेत दिया कि वे धर्नुधारी के सामने से भाग जायें।
7) तू अपने दाहिने हाथ से हमें बचा, हम को उत्तर दे, जिससे तेरे कृपापात्रों का उद्धार हो।
8) ईश्वर ने अपने मन्दिर में यह कहा, "मैं सहर्ष सिखेम का विभाजन करूँगा और सुक्कोथ की घाटी नाप कर बाँट दूँगा।
9) गिलआद प्रदेश मेरा है, मनस्से प्रदेश मेरा है; एफ्रईम मेरे सिर का टोप है; यूदा मेरा राजदण्ड है;
10) मोआब मेरी चिलमची है; मैं एदोम पर अपनी चप्पल रखता हूँ; मैं फिलिस्तिया को युद्ध के लिए ललकारता हूँ।"
11) कौन मुझे किलाबन्द नगर में पहुँचायेगा? कौन मुझे एदोम तक ले जायेगा?
12) वही ईश्वर, जिसने हमें त्यागा है; वही ईश्वर, जो अब हमारी सेनाओं का साथ नहीं देता। शत्रु के विरुद्ध हमारी सहायता कर: क्योंकि मनुष्य की सहायता व्यर्थ है।
13) ईश्वर के साथ हम शूरवीरों की तरह लड़ेंगे, वही हमारे शत्रुओं को रौंदेगा।