📖 - स्तोत्र ग्रन्थ

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अध्याय 26

1) प्रभु! मुझे न्याय दिला, क्योंकि मेरा आचरण निर्दोष है। मैंने निरन्तर प्रभु पर भरोसा रखा।

2) प्रभु! मुझे परख, मेरी परीक्षा ले। मेरे हृदय और अन्तःकरण की जाँच कर।

3) मैं तेरी सत्यप्रतिज्ञता का मनन करता रहता और तेरे सत्य के मार्ग पर चलता हूँ।

4) मैं कपटियों के साथ नहीं बैठता और पाखण्डियों की संगति नहीं करता।

5) मैं अपराधियों की मण्डली से घृणा करता हूँ और दुष्टों के साथ नहीं बैठता।

6) (6-7) प्रभु! मैं निर्दोष हो कर हाथ धोता हूँ। मैं ऊँचे स्वर में तुझे धन्यवाद देते हुए और तेरे अपूर्व कार्यों का बखान करते हुए तेरी वेदी की प्रदक्षिणा करता हूँ।

8) तेरा निवास स्थान मुझे प्रिय है, जहाँ तेरी महिमा विद्यमान है।

9) मुझे न तो पापियों में सम्मिलित कर और उन हत्यारों में,

10) जिनके हाथ कुकर्मों से दूषित और रिश्वत से भरे हैं।

11) मेरा आचरण निर्दोष है, दयापूर्वक मेरा उद्धार कर।

12) मेरे पैर सन्मार्ग से नहीं भटकते, मैं भरी सभा में प्रभु को धन्य कहूँगा।



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