1) ईश्वर! गैर-यहूदी तेरी प्रजा के देश में घुस आये हैं। उन्होंने तेरा पवित्र मन्दिर दूषित किया और येरूसालेम को खंड़हरों का ढेर बना दिया।
2) उन्होंने तेरे सेवकों के शव आकाश के पक्षियों को खिलाये और तेरे सन्तों का मांस पृथ्वी के पशुओं को।
3) उन्होंने येरूसालेम के चारो ओर रक्त पानी की तरह बहाया। मृतकों को दफ़नाने के लिए कोई नहीं रहा।
4) हमारे पड़ोसी हम पर ताना मारते हैं; आसपास रहने वाले हमारा उपहास करते हैं।
5) प्रभु! तू कब तक हम पर अप्रसन्न रहेगा? तेरा क्रोध कब तक अग्नि की तरह जलता रहेगा?
6) अपना क्रोध उन राष्ट्रों पर प्रदर्शित कर, जो तेरी उपेक्षा करते हैं; उन राज्यों पर, जो तेरा नाम नहीं लेते;
7) क्योंकि वे याकूब को निगल गये। उन्होंने उसके प्रदेश को उजाड़ा।
8) हमारे पूर्वजों के पापों के कारण हम पर अप्रसन्न न हों। तेरी करूणा हमें शीघ्र प्राप्त हों; क्योंकि हम घोर संकट में हैं।
9) ईश्वर! हमारे मुक्तिदाता! अपने नाम की महिमा के लिए हमारी सहायता कर। अपने नाम की मर्यादा के लिए हमारा उद्धार कर, हमारे पाप क्षमा कर।
10) गैर-यहूदी राष्ट्र क्यों यह कहने पायें "कहाँ है उन लोगों का ईश्वर?" हमारी आँखों के सामने राष्ट्र यह जान जायें कि तेरे सेवकों के बहाये रक्त का प्रतिशोध लिया जाता है।
11) बन्दियों की कराह तेरे पास पहुँचे। अपने बाहुबल द्वारा मृत्युदण्ड पाने वालों की रक्षा कर।
12) प्रभु! हमारे पड़ोसियों ने तेरा जो अपमान किया, उन से उसका सातगुना बदला चुका।
13) हम तेरी प्रजा हैं, तेरे चरागाह की भेड़ें। हम सदा तुझे धन्यवाद देते रहेंगे। हम युग-युगों तक तेरी स्तुति करेंगे।