2 (1-2) प्रभु! रक्षा कर! एक भी भक्त नहीं रहा; मनुष्यों में सत्य का लोप हो गया है।
3) लोग एक दूसरे से झूठ बोलते और कपटपूर्ण हृदय से चिकनी-चुपड़ी बातें करते हैं।
4) प्रभु चाटुकारों और डींग मारने वालों का सर्वनाश करे, जो कहते हैं,
5) "हम अपनी वाणी के बल पर विजयी होंगे। हम जो चाहेंगे, वही कहेंगे। हमारा प्रभु कौन है?"
6) प्रभु कहता है, "मैं अब उठूँगा, क्योंकि असहाय सताये जाते हैं और दरिद्र आह भरते हैं। जो तिरस्कृत हैं, मैं उनका उद्धार करूँगा।"
7) प्रभु की वाणी परिशुद्ध है। वह चाँदी के सदृश है, जो सात बार घड़िया में गलायी गयी है।
8) प्रभु! तू ही हमें सुरक्षित रखेगा और इस पीढ़ी से हमारी रक्षा करता रहेगा।
9) दुष्ट जन चारों ओर मंडराते हैं और मनुष्यों में नीचता का बोलबाला है।