📖 - स्तोत्र ग्रन्थ

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अध्याय 145

1) मेरे ईश्वर! मेरे राजा! मैं तेरी स्तुति करूँगा। मैं सदा-सर्वदा तेरा नाम धन्य कहूँगा।

2) मैं दिन-प्रतिदिन तुझे धन्य कहूँगा। मैं सदा-सर्वदा तेरे नाम की स्तुति करूँगा।

3) प्रभु महान् और अत्यन्त प्रशंसनीय है। उसकी महिमा अगम है।

4) सब पीढ़ियाँ तेरी सृष्टि की प्रशंसा करती और तेरे महान् कार्यों का बखान करती हैं।

5) मैं भी तेरे प्रताप, तेरे ऐश्वर्य और तेरे महान् चमत्कारों का बखान करूँगा।

6) मैं भी तेरे विस्मयकारी कार्यों और तेरी महिमा का वर्णन करूँगा।

7) लोग तेरी अपार कृपा की चरचा करते रहेंगे और तेरी न्यायप्रियता का जयकार।

8) प्रभु दया और अनुकम्पा से परिपूर्ण है। वह सहनशील और अत्यन्त प्रेममय है।

9) प्रभु सब का कल्याण करता है। वह अपनी समस्त सृष्टि पर दया करता है।

10) प्रभु! तेरी समस्त सृष्टि तेरा धन्यवाद करेगी, तेरे भक्त तुझे धन्य कहेंगे।

11) वे तेरे राज्य की महिमा गायेंगे और तेरे सामर्थ्य का बखान करेंगे,

12) जिससे सभी मनुष्य तेरे महान् कार्य और तेरे राज्य की अपार महिमा जान जायें।

13) तेरे राज्य का कभी अन्त नहीं होगा। तेरा शासन पीढ़ी-दर-पीढ़ी बना रहेगा। प्रभु अपनी सब प्रतिज्ञाएँ पूरी करता है, वह जो कुछ कहता है, प्रेम से करता है।

14) प्रभु निर्बल को सँभालता और झुके हुए को सीधा करता है।

15) सब तेरी ओर देखते और तुझ से यह आशा करते हैं कि तू समय पर उन्हें भोजन प्रदान करेगा।

16) तू खुले हाथों देता और हर प्राणी को तृप्त करता है।

17) प्रभु जो कुछ करता है, ठीक ही करता है। वह जो कुछ करता है, प्रेम से करता है।

18) वह उन सबों के निकट है, जो उसका नाम लेते हैं, जो सच्चे हृदय से उस से विनती करते हैं।

19) जो उस पर श्रद्धा रखते हैं, वह उनका मनेारथ पूरा करता है। वह उनकी पुकार सुन कर उनका उद्धार करता है।

20) प्रभु अपने भक्तों को सुरक्षित रखता, किन्तु अधर्मियों का सर्वनाश करता है।

21) मेरा कण्ठ प्रभु की स्तुति करता रहेगा। सभी मनुष्य सदा-सर्वदा उसका पवित्र नाम धन्य कहें।



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