📖 - स्तोत्र ग्रन्थ

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अध्याय 118

1) प्रभु का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है। उसकी सत्यप्रतिज्ञता अनन्त काल तक बनी रहती है।

2) इस्राएल का घराना यह कहता जाये उसकी सत्यप्रतिज्ञता अनन्त काल तक बनी रहती है।

3) हारून का घराना यह कहता जाये- उसकी सत्यप्रतिज्ञता अनन्त काल तक बनी रहती है।

4) प्रभु के श्रद्धालु भक्त यह कहते जायें- उसकी सत्यप्रतिज्ञता अनन्त काल तक बनी रहती है।

5) संकट में मैंने प्रभु को पुकारा। प्रभु ने मेरी सुनी और मेरा उद्धार किया।

6) प्रभु मेरे साथ है, मुझे कोई भय नहीं। मनुष्य मेरा क्या कर सकते हैं?

7) प्रभु मेरे साथ है, वह मेरी सहायता करता है। मैं अपने शत्रुओं का डट कर सामना करता हूँ।

8) मनुष्यों पर भरोसा रखने की अपेक्षा प्रभु की शरण जाना अच्छा है।

9) शासकों पर भरोसा रखने की अपेक्षा प्रभु की शरण जाना अच्छा है।

10) सब राष्ट्रों ने मुझे घेर लिया था- मैंने प्रभु के नाम पर उन्हें तलवार के घाट उतारा।

11) उन्होंने मुझे चारों ओर से घेर लिया था- मैंने प्रभु के नाम पर उन्हें तलवार के घाट उतारा।

12) उन्होंने मुझे मधुमक्खियों की तरह घेर लिया था। वे काँटों की आग की तरह शीघ्र ही बुझ गये- मैंने प्रभु के नाम पर उन्हें तलवार के घाट उतारा।

13) वे मुझे धक्का दे कर गिराना चाहते थे, किन्तु प्रभु ने मेरी सहायता की।

14) प्रभु ही मेरा बल है और मेरे गीत का विषय, उसने मेरा उद्धार किया।

15) धर्मियों के शिविरों में आनन्द और विजय के गीत गाये जाते हैं।

16) प्रभु का दाहिना हाथ महान् कार्य करता है; प्रभु का दाहिना हाथ विजयी है, प्रभु का दाहिना हाथ महान् कार्य करता है।

17) मैं नहीं मरूँगा, मैं जीवित रहूँगा, और प्रभु के कार्यों का बखान करूँगा।

18) प्रभु ने मुझे कडा दण्ड दिया, किन्तु उसने मुझे मरने नहीं दिया।

19) मेरे लिए मन्दिर के द्वार खोल दो, मैं उस में प्रवेश कर प्रभु को धन्यवाद दूँगा।

20) यह प्रभु का द्वार है, इस में धर्मी प्रवेश करते हैं।

21) मैं तुझे धन्यवाद देता हूँ; क्योंकि तूने मेरी सुनी और मेरा उद्धार किया है।

22) कारीगरों ने जिस पत्थर को निकाल दिया था, वह कोने का पत्थर बन गया है।

23) यह प्रभु का कार्य है, यह हमारी दृष्टि में अपूर्व है।

24) यह प्रभु का ठहराया हुआ दिन है, हम आज प्रफुल्लित हो कर आनन्द मनायें।

25) प्रभु! हमारा उद्धार कर। प्रभु! हमें सुख-शान्ति प्रदान कर।

26) धन्य है वह, जो प्रभु के नाम पर आता है! हम प्रभु के मन्दिर से तुम्हें आशीर्वाद देते हैं।

27) प्रभु ही ईश्वर है। उसने हमें ज्योति प्रदान की है। हाथ में डालियाँ लिये, जुलूस बना कर, वेदी के कोनों तक आगे बढ़ो।

28) तू ही मेरा ईश्वर है! मैं तुझे धन्यवाद देता हूँ। मेरे ईश्वर! मैं तेरी स्तुति करता हूँ।

29) प्रभु का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है। उसकी सत्यप्रतिज्ञता अनन्त काल तक बनी रहती है।



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