2 (1-2) प्रभु! क्रुद्ध हुए बिना मुझे दण्ड दे, कोप किये बिना मेरा सुधार कर।
3) तेरे बाणों ने मुझे छेदा है, तेरे हाथ ने मुझे मारा है।
4) तेरे क्रोध के कारण मेरा सारा शरीर क्षत-विक्षत है, मेरे पाप के कारण मेरी समस्त हड्डियाँ छीज रही हैं।
5) मेरे अपराधों का ढेर मेरे सिर से भी ऊँचा हो गया है, भारी बोझ की तरह मैं उन्हें ढोने में असमर्थ हूँ।
6) मेरी मूर्खता के कारण मेरे घावों में पीब पड़ गयी और उन से दुर्गन्ध आती है।
7) मैं झुक गया हूँ; अत्यन्त दुर्बल हूँ और दिन भर उदास चलता-फिरता हूँ।
8) मेरी कमर में जलन है, मेरा सारा शरीर अस्वस्थ है।
9) मैं पंगु और टूटा हुआ हूँ, हृदय की पीड़ा से कराहता हूँ।
10) प्रभु! तू मेरे सब मनोरथ जानता है, मेरी आहें तुझ से छिपी नहीं है।
11) मेरा हृदय धड़कता है, मेरी शक्ति चुक गयी है, मेरी आँखों की ज्योति भी बुझ गयी है।
12) मेरे घाव देख कर मेरे मित्र और साथी मेरे पास नहीं आते, मेरे पड़ोसी दूर खड़े रहते हैं।
13) जो मुझे मारना चाहते हैं, उन्होंने मेरे लिए फन्दे बिछाये हैं। जो मेरी दुर्गति की कामना करते हैं, उन्होंने मेरे विरुद्ध षड्यन्त्र रचा है और वे दिन भर मेरी चुगली खाते हैं।
14) मैं बहरे की तरह कुछ नहीं सुनता, गूंगे की तरह मुँह नहीं खोलता।
15) मैं उस मनुष्य के सदृश बन गया हूँ, जो न तो सुनता और न जबाव देता है।
16) प्रभु! मुझे तेरा ही भरोसा है। प्रभु! मेरे ईश्वर! तू अवश्य उत्तर देगा।
17) मैं कहता था, "उन्हें मुझ पर हँसने का अवसर न मिले! जब मेरे पैर फिसलते हों, तो वे मुझ पर विजयी न हों।"
18) देख, मैं लड़खड़ा कर गिरने को हूँ। मेरी वेदना जाने का नाम नहीं लेती।
19) मैं अपना अपराध स्वीकार करता हूँ, अपने पाप के कारण अशान्त हूँ।
20) जो अकारण मेरे शत्रु हैं, वे शक्तिशाली हैं; जो नाहक मेरे बैरी हैं, वे असंख्य हैं।
21) जो मुझ से भलाई का बदला बुराई से चुकाते हैं, वे मेरी भलाई के कारण मुझ पर दोष लगाते हैं।
22) प्रभु! मुझे न त्याग। मेरे ईश्वर! मुझ से दूर न जा।
23) प्रभु! मेरे उद्धारक! शीघ्र ही मेरी सहायता कर।