2 (1-2) मूर्ख लोग अपने मन में कहते हैं: "ईश्वर है ही नहीं"। उनका आचरण भ्रष्ट और घृणास्पद है, उन में कोई भलाई नहीं करता।
3) ईश्वर यह जानने के लिए स्वर्ग से मनुष्यों पर दृष्टि दौड़ाता है कि उन में कोई बुद्धिमान हो, जो ईश्वर की खोज में लगा रहता हो।
4) सब-के-सब भटक गये हैं, सब समान रूप से भ्रष्ट हैं। उनमें कोई भलाई नहीं करता, नहीं, एक भी नहीं।
5) क्या वे कुकर्मी कुछ नहीं समझते? वे भोजन की तरह मेरी प्रजा का भक्षण करते हैं और ईश्वर का नाम नहीं लेते।
6) जहाँ वे थरथर काँपने लगे थे, वहाँ भयभीत होने का कोई कारण नहीं था। प्रभु ने आपके शत्रुओं की हड्डियाँ छितरा दीं; प्रभु ने उनका परित्याग किया था, इसलिए आपने उन्हें अपमानित किया।
7) कौन सियोन पर से इस्राएल का उद्धार करेगा? जब प्रभु अपनी प्रजा के निर्वासितों को लौटा लायेगा, तब याकूब उल्लसित होगा और इस्राएल आनन्द मनायेगा।