📖 - स्तोत्र ग्रन्थ

अध्याय ➤ 01- 02- 03- 04- 05- 06- 07- 08- 09- 10- 11- 12- 13- 14- 15- 16- 17- 18- 19- 20- 21- 22- 23- 24- 25- 26- 27- 28- 29- 30- 31- 32- 33- 34- 35- 36- 37- 38- 39- 40- 41- 42- 43- 44- 45- 46- 47- 48- 49- 50- 51- 52- 53- 54- 55- 56- 57- 58- 59- 60- 61- 62- 63- 64- 65- 66- 67- 68- 69- 70- 71- 72- 73- 74- 75- 76- 77- 78- 79- 80- 81- 82- 83- 84- 85- 86- 87- 88- 89- 90- 91- 92- 93- 94- 95- 96- 97- 98- 99- 100- 101- 102- 103- 104- 105- 106- 107- 108- 109- 110- 111- 112- 113- 114- 115- 116- 117- 118- 119- 120- 121- 122- 123- 124- 125- 126- 127- 128- 129- 130- 131- 132- 133- 134- 135- 136- 137- 138- 139- 140- 141- 142- 143- 144- 145- 146- 147- 148- 149- 150-मुख्य पृष्ठ

अध्याय 75

2 (1-2) ईश्वर! हम तुझे धन्यवाद देते हैं। हम तेरा नाम लेते हुए और तेरे अपूर्व कार्यों का बखान करते हुए तुझे धन्यवाद देते हैं।

3) “निर्धारित समय आने पर मैं स्वयं निष्पक्षता से न्याय करूँगा।

4) पृथ्वी अपने सब निवासियों के साथ ढह जायेगी। क्या मैंने उसके खम्भों को स्थापित नहीं किया?

5) मैंने घमण्डियों से कहाः घमण्ड मत करो, और दुष्टों से: अपना सिर मत उठाओ,

6) अपना सिर उतना ऊँचा मत उठाओ; ईश्वर के सामने धृष्टता मत करो।"

7) क्योंकि न तो पूर्व से, न पश्चिम से और न मरुभूमि से उद्धार सम्भव है।

8) ईश्वर ही न्यायकर्ता है; वह एक को नीचा दिखाता और दूसरे को ऊँचा उठाता है।

9) तिक्त उफनती मदिरा से भरा, प्रभु के हाथ में एक प्याला है। वह उस में से उँड़ेलता है- पृथ्वी के सब दुष्ट जनों को उसे तलछट तक पीना है।

10) मैं सदा इसकी घोषणा करता रहूँगा, मैं याकूब के ईश्वर की स्तुति करूँगा।

11) मैं सब दुष्टों का सिर झुकाऊँगा, किन्तु धर्मी का सिर ऊँचा उठाया जायेगा।



Copyright © www.jayesu.com