2 (1-2) प्रभु! कब तक? क्या तू मुझे सदा भुलाता रहेगा? कब तक तू मुझ से अपना मुख छिपाये रखेगा?
3) कब तक मैं अपने मन में चिन्ता करता रहूँगा, अपने हृदय में प्रतिदिन दुःख सहता रहूँगा? कब तक मेरा शत्रु मुझ पर हावी होता रहेगा?
4) प्रभु! मेरे ईश्वर! मुझ पर दया दृष्टि कर। मेरी सुन। मेरी आँखों को ज्योति प्रदान कर, जिससे मैं चिरनिद्रा में न सो जाऊँ।
5) मेरा शत्रु यह न कहने पाये: मैंने उसे पराजित किया है"। मेरे विरोधी मेरे पतन पर आनन्द न मनायें।
6) प्रभु! मुझे तेरी सत्यप्रतिज्ञा का भरोसा है। मेरा हृदय तेरा उद्धार पा कर आनन्दित हो और मैं प्रभु के सब उपकारों के लिए उसके आदर में गीत गाऊँ।