3 (1-3) विधर्मी अत्याचारी! तुम अपनी दृष्टता की डींग क्यों मारते हो?
4) तुम दिन भर षड्यन्त्र रचते हो। कपटी! तुम्हारी जीभ तेज उस्तरे-जैसी है।
5) तुम को भलाई की अपेक्षा बुराई और सत्य की अपेक्षा झूठ अधिक प्रिय है।
6) कपटी जिह्वा! हर विनाशकारी बात तुम को प्रिय है।
7) इसलिए ईश्वर सदा के लिए तुम्हारा विनाश करेगा। वह तुम को तुम्हारे तम्बू के भीतर से छीन लेगा, वह जीवन-लोक से तुम्हारा उन्मूलन करेगा।
8) धर्मी देखेंगे और दंग रह जायेंगे। वे यह कहते हुए इसका उपहास करेंगे:
9) "इस मनुष्य को देखो! इसने ईश्वर को अपना आश्रय नहीं बनाया था। इसे अपनी अपार सम्पत्ति का भरोसा था और यह अपने कुकर्मों की डींग मारता था।"
10) किन्तु मैं जैतून के हरे-भरे पेड़ की तरह ईश्वर के घर में लगा हुआ हूँ। मैं प्रभु की सत्यप्रतिज्ञता का सदा-सर्वदा भरोसा करता हूँ।
11) यह कार्य तेरा ही है, इसलिए मैं सदा तेरी स्तुति करूँगा और तेरे भक्तों की मण्डली में तेरे नाम की भलाई का बखान करूँगा।