📖 - स्तोत्र ग्रन्थ

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अध्याय 141

1) प्रभु! मैं तुझे पुकारता हूँ, शीघ्र ही मेरी सहायता कर। मैं तेरी दुहाई देता हूँ, मेरी मेरी सुन।

2) मेरी विनती धूप की तरह, मेरी करबद्ध प्रार्थना सन्ध्या-वन्दना की तरह तेरे पास पहुँचे।

3) प्रभु! मेरे मुख पर पहरा बैठा, मेरे होंठों के द्वार की रखवाली कर।

4) मेरे हृदय को बुराई की ओर झुकने न दें, मैं दुष्टों के साथ अधर्म न करूँ और उनके भोजों में सम्मिलित न होऊँ।

5) धर्मी मुझ पर भले ही हाथ उठाये और भक्त मुझे डाँटे, किन्तु दुष्ट का सुगन्धित तेल मेरा सिर अलंकृत न करें; क्योंकि मैं प्रार्थना द्वारा उनके कुकर्मों का विरोध करता हूँ।

6) वे न्याय की चट्टान से टकरा कर डूब जायेंगे और समझेंगे कि मेरे शब्द कितने मधुर थे।

7) भूमि जिस तरह जोत कर उलट दी जाती है, उसी तरह उनकी हड्डियाँ अधोलोक के द्वार पर छितरायी जायेंगी।

8) प्रभु-ईश्वर! मेरी आँखें तुझ पर टिकी हुई हैं। मैं तेरी शरण आया हूँ, मुझे विनाश से बचा।

9) लोगों ने मेरे लिए जो फन्दा लगाया, कुकर्मियों ने जो जाल बिछाया, उस से मेरी रक्षा कर।

10) विधर्मी अपने जाल में फँसेंगे और मैं बच कर निकल जाऊँगा।



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