2 (1-2) प्रभु! मेरी बात सुनने की कृपा कर। मेरे उच्छ्वासों पर ध्यान दे।
3) मेरी दुहाई तेरे पास पहुँचे, प्रभु! मैं तुझ से प्रार्थना करता हूँ, मेरे राजा, मेरे ईश्वर!
4) प्रभु! तू प्रातःकाल मेरी पुकार सुनता है। मैं प्रातः अपना चढ़ावा सजाता हूँ और प्रतीक्षा करता रहता हूँ।
5) तू न तो बुराई से समझौता करता और न दुष्टों को शरण देता है।
6) घमण्डी तेरे सामने नहीं टिकते; तू सब कुकर्मियों को तुच्छ समझता
7) और झूठ बोलने वालों का विनाश करता है। प्रभु हिंसा करने वाले और कपटी मनुष्य से घृणा करता है।
8) किन्तु मैं तेरी अपार कृपा के कारण तेरे मन्दिर में प्रवेश करता हूँ। मैं बड़ी श्रद्धा से तेरे पवित्र मन्दिर को दण्डवत् करता हूँ।
9) मेरे शत्रु मेरी घात में रहते हैं, प्रभु! मुझे अपने धर्ममार्ग पर ले चल और मेरे लिए अपना मार्ग प्रशस्त कर।
10) उनके मुख की कोई बात विश्वसनीय नहीं, उनका हृदय दुष्टता से भरा है। उनका गला खुली हुई कब्र है और उनकी जिह्वा चाटुकारी करती है।
11) ईश्वर! उन्हें अपराधी घोषित कर। उनकी योजनाएँ विफल हों। उनके बहुत पापों के कारण उनका परित्याग कर; क्योंकि उन्होंने तेरे विरुद्ध विद्रोह किया है।
12) जो तेरी शरण जाते हैं, वे सब आनन्द मनायेंगे; जो तेरे नाम के प्रेमी हैं, वे आनन्द के गीत गायेंगे।
13) प्रभु! तू ही धर्मी को आशीर्वाद देता है, तू अपनी कृपा की ढाल से उसकी रक्षा करता है।