📖 - स्तोत्र ग्रन्थ

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अध्याय 144

1) प्रभु, मेरी चट्टान, धन्य है! वह मेरे हाथों को युद्ध का और मेरी उँगलियों को समर का प्रशिक्षण देता है।

2) वह मेरा सहायक है, मेरा शरणस्थान, मेरा गढ़, मेरा मुक्तिदाता और मेरी ढाल। मैं उसकी शरण जाता हूँ। वह अन्य राष्ट्रों को मेरे अधीन करता है।

3) प्रभु! मनुष्य क्या है, जो तू उस पर ध्यान दे? आदम का पुत्र क्या है, जो तू उसकी सुधि ले?

4) मनुष्य तो श्वास के सदृश है। उसका जीवन छाया की तरह मिट जाता है।

5) प्रभु! आकाश को खोल कर उतर आ! पर्वतों का स्पर्श कर, जिससे वे धुआँ उगलें।

6) बिजली चमका और शत्रुओं को तितर बितर कर। अपने बाण चला और उन्हें भगा दे।

7) ऊपर से अपना हाथ बढ़ा कर मुझे बचा, भीषण जलधारा से, विदेशियों के हाथ से मुझे छुड़ा।

8) वे अपने मुँह से असत्य बोलते और दाहिना हाथ उठा कर झूठी शपथ खाते हैं।

9) ईश्वर! मैं तेरे लिए एक नया गीत गाऊँगा, मैं वीणा बजाते हुए तेरी स्तुति करूँगा।

10) तू राजाओं को विजय दिलाता और घातक तलवार से अपने दास दाऊद की रक्षा करता है।

11) तू मुझे विदेशियों के हाथ से छुड़ा। वे अपने मुँह से असत्य बोलते और दाहिना हाथ उठा कर झूठी शपथ खाते हैं।

12) हमारे पुत्र बाल-वृक्षों की तरह हैं- युवावस्था में पूर्ण विकसित। हमारी पुत्रियाँ तराशे हुए खम्भों की तरह हैं- महल के कोणों पर सुशोभित।

13) हमारे बखार हर प्रकार की उपज से भरपूर हैं। हमारी भेड़ों के झुण्ड चरागाहों में हजारो-लाखों गुना बढ़ते हैं।

14) हमारे बैल भारी बोझ ढोते हैं। हमारी चारदीवारी में न तो कोई दरार है, न युद्ध का कोई उपक्रम है और न हमारे चैकों में कोई गोहार।

15) सौभाग्यशाली है वह प्रजा, जो इस तरह समृद्ध है! सौभाग्यशाली है वह प्रजा, जिसका ईश्वर प्रभु है!



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