📖 - प्रवक्ता-ग्रन्थ (Ecclesiasticus)

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अध्याय 40

1) जिस दिन से मनुष्य अपनी माता के गर्भ से निकलते, उस दिन तक, जब वे मिट्टी-सब की गोद-में लौटते हैं, उन्हें बहुत-से कष्ट झेलने पड़ते हैं और आदम के पुत्रों पर भारी जूआ रखा रहता है।

2) उनके सोच-विचार और हृदय की आशंका पर भविष्य अर्थात् मृत्यु की चिन्ता छायी रहती है।

3) वे चाहे महिमामय सिंहासन पर विराज मान हों या धूल और राख में पड़े हुए हो,

4) वे चाहे बैंगनी पहने हो या मुकुट धारण किये हों या मामूली सन के कपड़े पहने हों, सब में क्रोध, ईर्ष्या, घबराहट और अशान्ति, मृत्यु की आशंका, द्वेष और संघर्ष भरा है।

5) जब वह अपनी शय्या पर विश्राम करता, तब भी रात की नींद उसे बेचैन कर देती है।

6) उसे नाम मात्र विश्राम मिलता है और वह नींद में भी दिन की तरह परेशान रहता है।

7) वह अपने हृदय की कल्पनाओं से आतंकित है। उसकी दशा युद्ध से भागे योद्धा के सदृश है। तब वह नींद से जागता है और उसे अपनी सुरक्षा पर आश्चर्य है।

8) ये हर प्राणी के लिए, चाहे वह मनुष्य हो या पशु किन्तु पापियों के लिए सात गुने हैं:

9) मृत्यु, रक्त, संघर्ष और तलवार, विपत्ति, भूख, अत्याचार और कोड़े।

10) दुष्टों के लिए इन सब बातों की सृष्टि हुई और उन्हीं के कारण जलप्रलय आया है।

11) जो मिट्टी से निकलता है, वह सब मिट्टी में मिला जाता है और जो पानी से निकलता, वह समुद्र में मिला जाता है।

12) हर घूस और अधर्म मिटाया जायेगा, किन्तु ईमानदारी सदा बनी रहेगी।

13) अधर्मियों की सम्पत्ति बरसाती नदी की तरह सूख जायेगी और बरसात में बिजली की कड़क की तरह लुप्त हो जायेगी।

14) जो उदारतापूर्वक देता है, वह आनन्दित है, किन्तु पापी सदा के लिए नष्ट हो जायेंगे।

15) दुष्टों की सन्तति नहीं पनपेगी, क्योंकि पापियों की जड़ें ऊँची चट्टान पर लगी हैं।

16) वे उस पौधे के सदृश हैं, जो नदी की धारा के पास उगता और सब से पहले उखाड़ा जाता है।

17) परोपकार एक हरी-भरी वाटिका-जैसा है और भिक्षादान सदा के लिए बना रहता है।

18) आत्मनिर्भर व्यक्ति और श्रमिक का जीवन सुखद है, किन्तु खजाने का पता लगाने वाला व्यक्ति अधिक सुखी होता है।

19) सन्तति और नगर-निर्माण से नाम बना रहता है, किन्तु इन दोनों की अपेक्षा साध्वी पत्नी श्रेष्ठ है।

20) अंगूरी और संगीत हृदय को आनन्दित करते हैं, किन्तु इन दोनों की अपेक्षा प्रज्ञा का प्रेम श्रेष्ठ है।

21) बाँसुरी और सितार श्रुतिमधुर हैं, किन्तु इन दोनों की अपेक्षा निष्कपट वाणी श्रेष्ठ है।

22) सौम्यता और सौन्दर्य आँखों को प्रिय हैं, किन्तु इन दोनों की अपेक्षा खेतों की हरियाली श्रेष्ठ है।

23) मित्र और साथी समय के अनुसार मार्ग दिखाते हैं, किन्तु इन दोनों की अपेक्षा समझदार पत्नी श्रेष्ठ है।

24) भाई और सहायक बुरे दिनों में रक्षा करते हैं, किन्तु इन दोनों की अपेक्षा भिक्षादान हितकर है।

25) चाँदी और सोना आत्मविश्वास देते हैं, किन्तु इन दोनों की अपेक्षा सत्परामर्श श्रेष्ठ है।

26) समृद्धि और सामर्थ्य की अपेक्षा प्रभु पर श्रद्धा हृदय को अधिक आनन्द प्रदान करती है।

27) जो प्रभु पर श्रद्धा रखता, उसे किसी बात की कमी नहीं और उसे किसी सहायक की आवश्यकता नहीं।

28) प्रभु पर श्रद्धा हरी-भरी वाटिका-जैसी और महिमामय छतरी-जैसी है।

29) पुत्र! भिखारी का जीवन मत बिताओे। भीख माँगने की अपेक्षा मृत्यु अच्छी है।

30) जो व्यक्ति रोटी के लिए पराये का मुँह ताकता है, उसका जीवन जीवन कहलाने योग्य नहीं। वह पराये के भोजन से अपना गला अपवित्र करता है,

31) जब कि शिक्षित और भद्र मनुष्य उस से परहेज करता है।

32) भीख माँगते समय निर्लज्ज के मुँह से मीठी बोली होती है, किन्तु उसके अन्तरमन में आग की ज्वाला है।



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