📖 - प्रवक्ता-ग्रन्थ (Ecclesiasticus)

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अध्याय 28

1) ईश्वर बदला लेने वाले को दण्ड देगा और उसके पापों का पूरे-पूरा लेखा रखेगा।

2) अपने पड़ोसी का अपराध क्षमा कर दो और प्रार्थना करने पर तुम्हारे पाप क्षमा किये जायेंगे।

3) यदि कोई अपने मन में दूसरों पर क्रोध बनाये रखता है, तो वह प्रभु से क्षमा की आशा कैसे कर सकता है?

4) यदि वह अपने भाई पर दया नहीं करता, तो वह अपने पापों के लिए क्षमा कैसे माँग सकता है?

5) निरा मनुष्य होते हुए भी यदि वह बैर बनाये रखता, तो उसे अपने पापों की क्षमा कैसे मिल सकती है? उसके पापों की क्षमा के लिए कौन प्रार्थना करेगा?

6) अन्तिम बातों का ध्यान रखो और बैर रखना छोड़ दो।

7) विकृति तथा मृत्यु को याद रखो और आज्ञाओें का पालन करो।

8) आज्ञाओें का ध्यान रखो और अपने पड़ोसी से बैर न रखो।

9) सर्वोच्च ईश्वर के विधान का ध्यान रखो और दूसरो के अपराध क्षमा कर दो।

10) तुम झगड़े से दूर रहोगे, तो कम पाप करोगे;

11) क्योंकि क्रोधी व्यक्ति झगड़ा लगाता, पापी अपने मित्रों में फूट डालता और शान्तिप्रिय लोगों में शत्रुता उत्पन्न करता है।

12) आग में जितनी अधिक लकड़ी है, वह उतनी अधिक तेज होती है; मनुष्य में जितना अधिक सामर्थ्य है, उसका क्रोध उतना अधिक बड़ा है; वह जितना अधिक धनी है, वह उतना अधिक अपना क्रोध बढ़ाता है।

13) राल और अलकतरा आग भड़काते हैं और उग्र वाद-विवाद रक्तपात कराता है।

14) चिनगारी पर फूँक मारों और वह भड़केगी, उस पर थूक दो और वह बुझेगी: दोनों तुम्हारे मुँह से निकलते हैं।

15) चुग़लखोर और कपटपूर्ण बातें करने वाले अभिशप्त हो, उन्होंने बहुत-से शान्तिप्रिय लोगों का विनाश किया।

16) चुग़लखोर ने बहुतों की शान्ति भंग की और उन्हें एक राष्ट्र से दूसरे राष्ट्र में भगाया

17) उसने क़िलाबन्द नगरों का विनाश किया और बड़े लोगों के घर गिरा दिये।

18) उसने राष्ट्रों की शक्ति समाप्त की और महान् राष्ट्रों का विनाश किया।

19) निन्दक ने सुयोग्य स्त्रियों को उनके घर से निकाला ओर उन्हें उनके परिश्रम के फल से वंचित कर दिया।

20) जो उसकी बात पर ध्यान देता, उसे न तो शान्ति मिलेगी और न कोई विश्वासपात्र मित्र।

21) कोड़े की मार से साँट उभड़ जाती, किन्तु जिह्वा की मार हड्डियाँ तोड़ती है।

22) बहुतों को तलवार के घाट उतारा गया, किन्तु जिह्वा ने कहीं अधिक लोगों का विनाश किया।

23) धन्य है वह, जो उस से बचता रहता और उसके प्रकोप का शिकार नहीं बनता; जो उसके जूए में नहीं जोता और उसकी बेड़ियों में नही जकड़ा गया;

24) क्योंकि उसका जूआ लोहे का और उसकी बेड़ियाँ काँसे की हैं।

25) वह जो मृत्यु देता है, वह दारुण है; उसकी अपेक्षा अधोलोक अच्छा है।

26) धर्मियों पर उसका वश नहीं चलता, वे उसकी ज्वाला में नहीं जलाये जायेंगे।

27) जो प्रभु का परित्याग करते, वे उसके शिकार बनेंगे। वे उसकी आग में सदा के लिए जलेंगे। वह उन पर सिंह की तरह टूट पड़ेगी और चीते की तरह उन को फाड़ खायेगी।

28) तुम अपनी दाखबारी के चारों ओर घेरा लगाओे, कपटी जिह्वा की बात मत सुनो। अपने मुँह पर दरवाज़ा और ताला लगाओे।

29) अपना सोना-चाँदी ताला लगा कर बन्द रखो, अपने शब्दों के लिए तराजू और बाट बनवाओे।

30) सावधान रहो, कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी जिह्वा फिसल जाये, तुम घात में बैठे हुए शत्रुओं के सामने गिर जाओ और तुम्हारे पतन के कारण तुम्हारी मृत्यु हो जाये।



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