1) पुत्र! यदि तुम प्रभु की सेवा करना चाहते हो, तो विपत्ति का सामना करने को तैयार हो जाओ।
2) तुम्हारा हृदय निष्कपट हो, तुम दृढ़संकल्प बने रहो, विपत्ति के समय तुम्हारा जी नही घबराये।
3) ईश्वर से लिपटे रहो, उसे मत त्यागो, जिससे अन्त में तुम्हारा कल्याण हो।
4) जो कुछ तुम पर बीतेगा, उसे स्वीकार करो तथा दुःख और विपत्ति में धीर बने रहो;
5) क्योंकि अग्नि में स्वर्ण की परख होती है और दीन-हीनता की घरिया में ईश्वर के कृपापात्रों की।
6) ईश्वर पर निर्भर रहो और वह तुम्हारी सहायता करेगा। प्रभु के भरोसे सन्मार्ग पर आगे बढ़ते जाओ।
7) प्रभु के श्रद्धालु भक्तो! उसकी दया पर भरोसा रखो। मार्ग से मत भटको; कहीं पतित न हो जाओ।
8) प्रभु के श्रद्धालु भक्तों! उस पर भरोसा रखो और तुम्हें निश्चय ही पुरस्कार मिलेगा।
9) प्रभु के श्रद्धालु भक्तो! उसके उपकारों की, चिरस्थायी आनन्द और दया की प्रतीक्षा करो।
10) प्रभु के श्रद्धालु भक्तों! उस से प्रेम रखो और तुम्हारे हृदयों में प्रकाश का उदय होगा।
11) पिछली पीढ़ियों पर विचार कर देखो किसने ईश्वर पर भरोसा रखा और वह निराश हुआ?
12) किसने ईश्वर पर श्रद्धा रखी और वह परित्यक्ता हुआ? किसने ईश्वर से प्रार्थना की और वह उपेक्षित रहा?
13) क्योंकि ईश्वर अनुकम्पा और दया से परिपूर्ण है। वह पापों को क्षमा करता और संकट के दिन में हमें बचाता है।
14) धिक्कार कायर हृदयों, निष्क्रिय हाथों और उस पापी को, जो दो मार्गो पर चलता है!
15) धिक्कार निरूत्साह हृदय को, जो भरोसा नहीं रखता! इसलिए उसकी रक्षा नहीं की जायेगी!
16) धिक्कार तुम लोगों को, जो धैर्य खो चुके हो!
17) तुम क्या करोगे, जब प्रभु लेखा लेने आयेग?
18) जो प्रभु पर श्रद्धा रखते हैं, वे उसकी आज्ञाओें की अवज्ञा नहीं करते। जो उससे प्रेम रखते हैं, वे उसके मार्गो पर चलते हैं।
19) जो प्रभु पर श्रद्धा रखते हैं, वे वही करते हैं, जो उसे प्रिय है। जो उस से प्रेम रखते हैं, उसकी संहिता उनका सम्बल है।
20) जो प्रभु पर श्रद्धा रखते हैं, उनका हृदय प्रस्तुत रहता है। वे उसके सामने अपनी आत्मा को पवित्र करते हैं।
21) जो प्रभु पर श्रद्धा रखते हैं, वे उसकी आज्ञाओें का पालन करते हैं और उसके आगमन के दिन तक धैर्य रखेंगे।
22) वे कहते हैं, "हम मनुष्यों के हाथों नहीं, बल्कि प्रभु के हाथ पड़ जायेंगे;
23) क्योंकि वह जितना महान् है, उतना ही दयालु भी"।