1) लाभ के लालच में बहुत लोगों ने पाप किया और जो धनी बनना चाहता, वह आज्ञाओें पर ध्यान नहीं देता।
2) जैसे दो पत्थरों के बीच खूँटी गाड़ी जाती है, वैसे ही क्रय-विक्रय के बीच पाप निवास करता है।
3 (3-4) जो दृढ़तापूर्वक प्रभु पर श्रद्धा नहीं रखता, उसका घर शीघ्र उजड़ जायेगा।
5) छलनी हिलाने से कचरा रह जाता है, बातचीत में मनुष्य के दोष व्यक्त हो जाते हैं।
6) भट्टी में कुम्हार के बरतनों की, और बातचीत में मनुष्य की परख होती है।
7) पेड़ के फल बाग की कसौटी होते हैं और मनुष्य के शब्दों से उसके स्वभाव का पता चलता है।
8) किसी की प्रशंसा मत करो, जब तक वह नहीं बोले; क्योंकि यहीं मनुष्य की कसौटी है।
9) यदि तुम न्याय की खोज करोगे, तो उसे पा जाओगे और उसे बहुमूल्य वस्त्र की तरह ओढ़ लोगे। वह तुम्हारे साथ रह कर तुम्हारी रक्षा करेगा और विचार के दिन तुम को सुरक्षित रखेगा।
10) जैसे पक्षी अपनी जाति के पक्षियों के साथ रहते हैं, वैसे ही सत्य उनके पास लौटता है, जो उसे चरितार्थ करते हैं।
11) सिंह हमेशा शिकार की घात में बैठता है, इसी तरह पाप अन्याय करने वालों की घात में बैठा रहता है।
12) भक्त सदा ज्ञान की बातों की चरचा करता है, जब कि मूर्ख की बातचीत चन्द्रमा की तरह बदलती है।
13) तुम मूर्खों के साथ कम समय बिताओ, किन्तु समझदार लोगों के साथ देर तक बैठे रहो।
14) मूर्खों की बातचीत घिनावनी है और उनकी हँसी पापमय लम्पटता।
15) बारम्बार शपथ खाने वाले की बातचीत सुन कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं और उनके लड़ाई-झगड़े सुन कर लोग अपने कान बन्द कर लेते हैं।
16) घमण्डियों के झगड़े रक्तपात को बुलावा देते हैं और उनकी फटकारें कर्णकटु होती हैं।
17) जो भेद प्रकट करता, उस पर विश्वास नहीं किया जाता और उसे फिर कभी सच्चा मित्र नहीं मिलेगा।
18) अपने मित्र को प्यार करो और उसके प्रति ईमानदार रहो;
19) यदि तुमने उसका भेद प्रकट किया, तो फिर उसके पीछे मत दौड़ो;
20) क्योंकि जिसने अपने पड़ोसी की मित्रता गँवा दी है, वह उस व्यक्ति के सदृश है, जिसने अपनी विरासत गँवायी।
21) जिस तरह तुम पक्षी को अपने हाथ से जाने देते हो, उसी तरह तुमने अपने पड़ोसी को जाने दिया और तुम उसे फिर नहीं प्राप्त करोगे।
22) उसके पीछे मत दौड़ो, क्येांकि वह दूर तक निकल गया। वह हरिण की तरह फन्दे से निकल भागा; क्योंकि उसकी आत्मा को चोट लगी।
23) तुम उसे फिर अपने से नहीं मिला सकोगे। दुर्वचन के बाद मेल-मिलाप सम्भव है,
24) किन्तु जिसने अपने मित्र का भेद प्रकट किया, उसके लिए कोई आशा नहीं।
25) जो आँख मारता, वह षड्यन्त्र रचता है; किन्तु जो उस को जानता है, वह उस से दूर रहता है।
26) तुम्हारे साथ रहते समय वह मीठी-मीठी बातें करता और तुम्हारी बातों पर मुग्ध हो जाता है, किन्तु पीठ पीछे अपनी भाषा बदलता और तुम्हारे शब्दों में दोष निकालता है।
27) मैं बहुत-सी बातों से घृणा करता हूँ, किन्तु ऐसे व्यक्ति से सब से अधिक। प्रभु को भी उस से घृणा है।
28) जो पत्थर ऊपर फेंकता, वह उसे अपने सिर पर गिराता है, जो षड्यन्त्र रचता, वह उस से घायल हो जायेगा।
29) जो गड्ढा खोदता, वह स्वयं उसी में गिरेगा, जो अपने पड़ोसी के लिए पत्थर रखता, वह उसी से ठोकर खायेगा और जो जाल बिछाता, वह उसी में फँसेगा।
30) जो बुराई करता, उसे उस से हानि होती है, यद्यपि वह नहीं जानता कि वह कहाँ से आती है।
31) घमण्डी का उपहास और अपमान किया जायेगा और प्रतिशोध घात में बैठे हुए सिंह की तरह उसकी प्रतीक्षा करता है।
32) जो धर्मियों के पतन पर आनन्दित है, वे स्वयं जाल में फँसेंगे और वे मृत्यु से पहले वेदना से धुल जायेंगे।
33) विद्वेष और क्रोध घृणित है, तो भी पापी दोनों किया करता है।