📖 - प्रवक्ता-ग्रन्थ (Ecclesiasticus)

अध्याय ➤ 01- 02- 03- 04- 05- 06- 07- 08- 09- 10- 11- 12- 13- 14- 15- 16- 17- 18- 19- 20- 21- 22- 23- 24- 25- 26- 27- 28- 29- 30- 31- 32- 33- 34- 35- 36- 37- 38- 39- 40- 41- 42- 43- 44- 45- 46- 47- 48- 49- 50- 51- मुख्य पृष्ठ

अध्याय 35

1) संहिता के अनुसार आचरण बहुत-सी बलियों के बराबर है।

2 (2-3) जो आज्ञाओें का पालन करता है, वह शांति का बलिदान चढ़ाता है।

4) परोपकार अन्न-बलि लगाने के बराबर है। जो भिक्षादान करता है, वह धन्यवाद का बलिदान चढ़ाता है।

5) बुराई का त्याग प्रभु को प्रिय होता है और अधर्म से दूर रहना प्रायश्चित के बलिदान के बराबर है।

6) फिर भी खाली हाथ प्रभु के सामने मत जाओ,

7) क्योंकि ये सब बलिदान आदेश के अनुकूल हैं।

8) धर्मी का चढ़ावा वेदी की शोभा बढ़ाता है और उसकी सुगन्ध सर्वोच्च ईश्वर तक पहुँचती है।

9) धर्मी का बलिदान सुग्राहय होता है, उसकी स्मृति सदा बनी रहेगी।

10) उदारतापूर्वक प्रभु की स्तुति करते रहो। प्रथम फलों के चढ़ावे में कमी मत करो।

11) प्रसन्नमुख हो कर दान चढ़ाया करो और खुशी से दशमांश देा।

12) जिस प्रकार सर्वोच्च ईश्वर ने तुम्हें दिया है, उसकी प्रकार तुम भी उसे सामर्थ्य के अनुसार उदारतापूर्वक दो;

13) क्योंकि प्रभु प्रतिदान करता है, वह तुम्हें सात गुना लौटायेगा।

14) उसे घूस मत दो, वह उसे स्वीकार नहीं करता।

15) पाप की कमाई के चढ़ावे पर भरोसा मत रखो; क्योंकि प्रभु वह न्यायाधीश है, जो पक्षपात नहीं करता।

16) वह दरिद्र के साथ अन्याय नहीं करता और पद्दलित की पुकार सुनता है।

17) वह विनय करने वाले अनाथ अथवा अपना दुःखड़ा रोने वाली विधवा का तिरस्कार नहीं करता।

18) उसके आँसू उसके चेहरे पर झरते हैं और उसकी आह उत्याचारी पर अभियोग लगाती है।

19) उसके आँसू उसके चेहरे से स्वर्ग तक चढ़ते हैं और प्रभु उसकी आह सुनता है।

20) जो सारे हृदय से प्रभु की सेवा करता है, उसकी सुनवाई होती है और उसकी पुकार मेघों को चीर कर ईश्वर तक पहुँचती हैं।

21) वह तब तक आग्रह करता रहता, जब तक सर्वोच्च ईश्वर उस पर दयादृष्टि न करे और धर्मियों को न्याय न दिलाये।

22) प्रभु देर नहीं करेगा। वह उन पर दया नहीं करेगा और क्रूर लोगों की कमर तोड़ देगा।

23) वह राष्ट्रों को बदला चुकायेगा, घमण्डियों का झुण्ड मिटायेगा और दुष्टों का राजदण्ड तोड़ेगा।

24) वह मनुष्यों को उनके कर्मों का फल और उनके उद्देश्य के अनुसार उनके कार्यो का पुरस्कार प्रदान करेगा।

25) वह अपनी प्रजा का पक्ष लेगा और अपनी दया से उसे आनन्दित करेगा।

26) सूखे के समय वर्षा के बादलों की तरह विपत्ति के दिनों में प्रभु की दया का स्वागत होता है।



Copyright © www.jayesu.com