1) सातवें वर्ष यहोयादा ने इन शतपतियों के साथ समझौता करने का निश्चय किया-यहोराम के पुत्र अज़र्या यहोहानान के पु़त्र इसमाएल, ओबेद के पुत्र अजर्या, अदाया के पुत्र मासेया और ज़िक्री के पुत्र एलीषाफ़ाट।
2) उन्होंने यूदा का भ्रमण करते हुए यूदा के सब नगरों से लेवियों और इस्राएली घरानों के मुखियाओं को येरूसालेम में एकत्रित किया।
3) सारी सभा ने ईश्वर के मन्दिर में राजा के साथ समझौता किया। यहोयादा ने उन से कहा, "यह राजा का पुत्र है। इसे शासन करना चाहिए, जैसा कि प्रभु ने दाऊद के वंशजों के लिए वचन दिया है।
4) तुम्हें यह करना होगाः तुम में से जो विश्राम-दिवस पर काम पर आते हैं, उन में एक तिहाई द्वार पर पहरा देंगे,
5) एक तिहाई राजभवन पर और एक तिहाई नींव-द्वार पर तैनात होंगे; सब लोग प्रभु के मन्दिर के प्रांगणों में रह जायेंगे।
6) याजकों और सेवा करने वाले लेवियों के सिवा प्रभु के मन्दिर में कोई और प्रवेश न करे। ये अन्दर आ सकते हैं, क्योंकि ये अभिषिक्त है; शेष लोग प्रभु के मन्दिर में पहरा देंगे।
7) लेवी शस्त्र धारण कर राजा के चारों ओर खड़े रहेंगे। जो व्यक्ति मन्दिर में घुसना चाहेगा उसे मार दिया जायेगा। राजा जहाँ कहीं जायेंगे, वहाँ तुम भी उनके निकट रहोगे।"
8) लेवियों और सब यूदावंशियों ने याजक यहोयादा के आदेश का पूरा-पूरा पालन किया। प्रत्येक ने अपने साथ उन आदमियों को लिया, जो विश्राम-दिवस पर काम से छूटे थे और उन को भी, जो विश्राम-दिवस पर काम करने आये थे; क्योंकि याजक यहोयादा ने उन दलों को छुट्टी नहीं दी थी।
9) फिर याजक यहोयादा ने शतपतियों को प्रभु के मन्दिर में सुरक्षित राजा दाऊद के भाले और बड़ी-छोटी ढालें दीं।
10) उसने सब लोगों को हाथ में भाले लिये हुए, मन्दिर के दक्षिण ओर से उत्तर तक, वेदी और मन्दिर के चारों ओर राजा की रक्षा के लिए खड़ा कर दिया।
11) तब लोग राजकुमार को बाहर ले आये और उन्होंने उसे मुकुट तथा राजसी वस्त्र पहनाये और उसे राजा घोषित किया। यहोयादा और उसके पुत्रों ने उसका अभिषेक किया और ऊँचे स्वर से कहा, "राजा की जय!’
12) अतल्या ने इधर-उधर दौड़ते हुए और जयकार करते हुए जनता की आवाज़ सुनी। वह प्रभु के मन्दिर में लोगों के पास आयी।
13) उसने देखा कि राजा, प्रथा के अनुसार, नेताओं और तुरही बजाने वालों के साथ मंच पर खड़ा है, देश भर के लोग आनन्द मना रहे हैं और तुरहियाँ बज रही हैं। याजक वाद्य बजाते हुए स्तुतिगान का नेतृत्व कर रहे थे। इस पर अतल्या अपने वस्त्र फाड़ कर चिल्ला उठी "यह राजद्रिह है! राजद्रोह है!"
14) याजक यहोयादा ने सैनिकों के शतपतियों को आज्ञा दी, "पंक्तियों के बीच से उसे बाहर ले जाओ। जो उसके साथ जायेगा, उसे तलवार के घाट उतार दो।" याजक ने आज्ञा दी थी कि प्रभु के मन्दिर में उसका वध नहीं किया जा सकता है।
15) वे उसे पकड़ कर अश्व-फाटक से हो कर राजमहल ले गये। वहाँ उसका वध कर दिया गया।
16) यहोयादा ने अपने, समस्त प्रजा और राजा के बीच एक ऐसा विधान निर्धारित किया, जिससे वे प्रभु की जनता बन जायें।
17) देश भर के लोगों ने बाल के देवालय जा कर उसे नष्ट कर दिया। उन्होंने उसकी वेदियों और मूर्तियों के टुकड़े- टुकड़े कर दिये और बाल के पुरोहित मत्तान को वेदियों के सामने मार डाला।
18) यहोयादा ने प्रभु के मन्दिर की देखरेख याजकों और लेवियों को सौंप दी; क्योंकि राजा दाऊद ने प्रभु के मन्दिर की सेवा करने के लिए उन्हें दलों में विभाजित कर दिया था, जिससे वे दाऊद के निर्देश के अनुसार आनन्द मनाते और गाते हुए प्रभु को होम-बलियाँ चढ़ाये, जैसा कि मूसा की संहिता में निर्धारित है।
19) उसने प्रभु के मन्दिर के द्वारों पर द्वारपाल भी नियुक्त किये, जिससे ऐसा कोई व्यक्ति प्रवेश न कर पाये, जो किसी भी रूप में अशुद्ध हो।
20) इसके बाद यहोयादा ने शतपतियों, सामन्तों और देश भर के सभी शक्तिशाली लोगों को बुलाया और वह राजा को प्रभु के मन्दिर से ले आ कर नीचे ले गया। वे ऊपरी द्वार से राजमहल गये। वहाँ उन्होंने राजा को राजसिंहासन पर बैठा दिया।
21) देश भर के लोग आनन्दित थे और नगर फिर शान्त हो गया था; क्योंकि अतल्या को तलवार के घाट उतारा गया।