1) ओदेद का पुत्र अज़र्या ईश्वर के आत्मा से आविष्ट हो कर
2) आसा की अगवानी करने निकला और उस से बोला, "आसा और समस्त यूदा और बेनयामीन! मेरी बात सुनिए। प्रभु आपके साथ होगा, यदि आप उसके साथ होंगे। यदि आप उसे ढूँढ़ेंगे, तो वह आप को मिलेगा। यदि आप उसे त्यागेंगे, तो वह भी आप को त्याग देगा।
3) इस्राएली बहुत समय तक बिना सच्चे ईश्वर के, बिना शिक्षा देने वाले याजकों के और बिना संहिता के रहे हैं।
4) वे विपत्ति में पड़ कर प्रभु, इस्राएल के ईश्वर की ओर अभिमुख हुए; उन्होंने उसे ढूँढ़ा और वह उन्हें मिला।
5) उस समय कोई यात्री सुरक्षित नहीं था, क्योंकि इन प्रदेशों के निवासियों में बहुत अशान्ति थी।
6) एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र से और एक नगर दूसरे नगर से लड़ता था, क्योंकि ईश्वर ने उन पर हर प्रकार की विपत्ति ढाही थी।
7) किन्तु आप सुदृढ़ बने रहें और हाथ-पर-हाथ धरे मत बैठें, क्योंकि आप को अपने परिश्रम का फल मिलेगा।"
8) जब आसा ने ये शब्द और ओदेह के पुत्र नबी अज़र्या की भविष्यवाणी सुनी, तो उसे साहस मिला और उसने यूदा के सारे देश से, बेनयामीन और एफ्ऱईम के पहाड़ी प्रान्त में, अपने अधिकार में किये हुये नगरों से घृणित देवमूर्तियों को हटा दिया। उसने प्रभु के मण्डप के सामने अवस्थित प्रभु की वेदी का पुनर्निर्माण किया।
9) तब उसने सारे यूदा और बेनयामीन के सभी निवासियों को एकत्रित किया और एफ्ऱईम मनससे और सिमओन से आये हुए लोगों को भी; क्योंकि इस्राएल के बहुत-से लोग यह देख कर उसकी शरण में आये थे कि प्रभु, उसका ईश्वर उसके साथ है।
10) वे आसा के शासनकाल के पन्द्रहवें वर्ष के तीसरे महीने में येरूसालेम में एकत्रित हुए।
11) उन्होंने उसी दिन लूट के माल से सात सौ बछड़ों और सात हज़ार भेड़ों की बलि चढ़ायी।
12) उन्होंने यह प्रतिज्ञा की कि वे अपने सारे हृदय और सारी आत्मा से प्रभु, अपने पूर्वजों के ईश्वर की ओर अभिमुख रहेंगे।
13) जो प्रभु, इस्राएल के ईश्वर की ओर अभिमुख न हो, वह मार डाला जाये-चाहे वह छोटा हो या बड़ा, पुरुष हो या स्त्री।
14) उन्होंने तुरहियाँ और नरसिंगे बजाते हुए ऊँचे स्वर से प्रभु की शपथ ली और समस्त यूदा उस शपथ के कारण आनन्दित हुआ।
15) उन्होंने सारे हृदय से यह शपथ ली थी और वे पूरे मन से प्रभु को ढूँढते रहे, इसलिए उन्हें प्रभु मिला और प्रभु ने उन्हें चारों ओर शान्ति प्रदान की।
16) राजा आसा ने अपनी दादी माता को राजमाता के पद से हटा दिया, क्योंकि उसने घृणित अशेरा-देवी का खूँट बनवाया था। उसने उसके द्वारा स्थापित घृणित मूर्ति काट दी, उसे चूर-चूर कर दिया और केद्रोन घाटी में जलवा दिया।
17) केवल पहाड़ी पूजास्थान नष्ट नहीं किये गये। फिर भी आसा का हृदय जीवन भर प्रभु के प्रति ईमानदार रहा।
18) उसने अपने पिता के और अपने चढ़ावे प्रभु के मन्दिर में रखवाये-चाँदी, सोना और पात्र।
19) आसा के शासनकाल के पैंतीसवें वर्ष तक कोई युद्व नहीं हुआ।