📖 - दुसरा इतिहास ग्रन्थ

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अध्याय 13

1) राजा यरोबआम के शासन के अठारहवें वर्ष अबीया यूदा का राजा बना।

2) उसने येरूसालेम में तीन वर्ष तक शासन किया। उसकी माता का नाम मीकायाह था, जो गिबआवास ऊरीएल की पुत्री थी। अबीया और यरोबआम में युद्ध होता रहा।

3) अबीया ने चार लाख चुने हुए वीर योद्धाओं की एक सेना ले कर युद्ध प्रारम्भ किया और उधर यरोबआम आठ लाख चुने हुए वीर योद्धाओं के साथ उसका सामना करने आया।

4) अबीया ने एफ्रईम के पहाड़ी प्रदेश के समारईम नामक पर्वत पर खड़ा हो कर पुकारा, "यरोबआम और सभी इस्राएलियों! मेरी बात सुनो।

5) क्या तुम्हें मालूम नहीं कि प्रभु, इस्राएल के ईश्वर ने एक चिरस्थायी विधान के अनुसार दाऊद और उसके वंशजों को सदा के लिए इस्राएल पर शासन करने का वरदान दिया है?

6) किन्तु नबाट के पुत्र यरोबआम ने, जो दाऊद के पुत्र सुलेमान का सेवक था, अपने स्वामी के विरुध्द विद्रोह किया।

7) उस से कुछ गुण्डे आ मिले थे और वे सुलेमान के पुत्र रहबआम पर हावी हो गये। उस समय रहबआम छोटा और ढुलमुल था। वह उनका सामना न कर पाया।

8) अब तुम लोग यह सोचते हो कि तुम प्रभु के राज्यपद का सामना कर सकते हो, क्योंकि तुम बहुसंख्यक हो और तुम्हारे साथ वे सोने के बछड़े हैं, जिन्हें यरोबआम ने तुम्हारे देवताओं के रूप में बनवाया है।

9) क्या तुमने प्रभु के हारूनवंशी याजकों और लेवियों को नहीं भगा दिया है और अपने लिए याजक नियुक्त नहीं किये हैं, जैसे अन्य जातियों के लोग करते हैं? जो भी एक बछड़ा और सात मेढ़े ले कर याजक बनने आ जाता, वह उन देवों का याजक हो जाता, जो कि ईश्वर नही हैं।

10) लेकिन हमारा ईश्वर प्रभु ही है। हमने उसका परित्याग नहीं किया। हारून के वंशज प्रभु के लिए याजकीय सेवा करते हैं और लेवी अपना-अपना काम करते हैं।

11) वे प्रति प्रातः और सन्ध्या प्रभु को सुगन्धित द्रव्य के साथ होम-बलि चढ़ाते हैं। वे शुद्ध सोने की मेज़ पर रोटियाँ रखते और हर सन्ध्या को सोने के दीपवृक्ष के दीपक जलाते हैं। हम तो प्रभु, अपने ईश्वर की सेवा करते हैं और तुमने उसे त्याग दिया है।

12) देखों, ईश्वर, हमारा स्वामी, हमारे साथ हैं। उसके याजक हमारे साथ हैं, जो तुम्हारे विरुद्ध युद्ध की तुरहियाँ बजाने वाले हैं। इस्राएलियों! प्रभु, अपने पूर्वजों के ईश्वर के विरुद्ध युद्ध मत करो, क्योंकि तुम सफल नहीं होगे।"

13) यरोबआम ने घात में बैठे हुए आदमियों को आज्ञा दी कि वे चक्कर लगा कर शत्रुओं के पीछे पहुँचें। वह स्वयं यूदा के सामने था और घात में बैठे हुए आदमी उनके पीछे।

14) यूदा ने मुड़ कर देखा कि सामने और पीछे उन पर आक्रमण हो रहा है। उन्होंने प्रभु की दुहाई दी और याजक तुरहियाँ बजाने लगे।

15) यूदा के लोगों ने युद्ध के लिए ललकारा और तब उन्होंने ललकारा, तो ईश्वर ने अबीया और यूदा के सामने सारे इस्राएल को पराजित किया।

16) इस्राएलियों को यूदा के सामने से भागना पड़ा। ईश्वर ने उन्हें उसके हाथ दे दिया।

17) अबीया और उसके आदमियों ने उन्हें बुरी तरह पराजित किया। इस्राएलियों के पाँच लाख चुने हुए योद्धा धराषायी हुए।

18) उस समय इस्राएलियों को नीचा दिखाया गया और यूदा के लोग विजयी हुए; क्योंकि उन्होंने प्रभु, अपने पूर्वजों के ईश्वर पर भरोसा रखा था।

19) अबीया ने यरोबआम का पीछा किया और उस से ये नगर छीन लिये: बेतेल और उसके आसपास के गाँव, यषाना और उसके आसपास के गाँव तथा एफ्ऱोन और उसके आसपास के गाँव।

20) जब तक अबीया जीवित रहा, यरोबआम अपना सिर फिर नहीं उठा सका। प्रभु ने उस पर आघात किया और उसकी मृत्यु हो गयी।

21) उधर अबीया शक्तिशाली हो गया। उसने चैदह स्त्रियों से विवाह किया और उसके बाईस पुत्र और सोलह पुत्रियाँ हुई।

22) अबीया का शेष इतिहास, उसका चरित और कार्यकलाप नबी इद्दो के व्याख्या-ग्रन्थ में लिखा है।

23) अबीया अपने पितरों से जा मिला और दाऊदनगर में दफ़नाया गया। उसका पुत्र आसा उसकी जगह राजा बना। उसके शासनकाल में दस वर्ष तक देश में शान्ति रही।



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