1) मुझे प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी:
2) “मानवपुत्र! क्या तुम न्याय करोगे? क्या हत्यारे नगर का तुम न्याय करोगे? तो उसे अपने सभी वीभत्स कर्म बतला दो।
3) कहो, ‘प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः धिक्कार उस नगर को, जो अपने यहाँ रक्त बहाता है, जिससे उसका समय समीप आ जाये और देवमूर्तियों का निर्माण कर अपने को अपवित्र बनाता है!
4) तुम अपने द्वारा बहाये हुए रक्त के कारण दोषी और अपने द्वारा निर्मित देवमूर्तियों द्वारा अपवित्र हो गये हो; तुमने अपना अन्त निकट बुला लिया है, तुम्हारा अन्त-समय आ गया है। इसलिए मैंने तुम को राष्ट्रों के लिए निन्दनीय और सभी देशों के लिए उपहास का पात्र बना दिया है।
5) तुम्हारे निकट और दूर के राष्ट्र तुम्हारे अपयश और अशान्ति के कारण तुम्हारी हँसी उड़ायेंगे।
6) “तुम्हारे यहाँ रहने वाले इस्राएल के पदाधिकारियों में से प्रत्येक अपनी-अपनी शक्ति भर रक्त बहाने पर तुला हुआ है।
7) तुम्हारे यहाँ माता-पिता का अपमान होता है। प्रवासियों को सताया जाता है और अनाथों तथा विधवाओं के साथ अन्याय किया जाता है।
8) तुमने मेरी पवित्र वस्तुओं का अनादर किया है और मेरे विश्राम-दिवसों की पवित्रता भंग की है।
9) तुम्हारे यहाँ ऐसे लोग हैं, जो रक्त बहाने के लिए झूठे दोष मढ़ते हैं और जो पहाड़ी पूजास्थानों में प्रसाद खातें हैं। तुम्हारे यहाँ ऐसे लोग हैं, जो व्यभिचार करते हैं।
10) तुम्हारे यहाँ लोग पिता की शय्या अपवित्र करते हैं; वे तुम्हारे यहाँ रजस्वला स्त्रियों को बाध्य करते हैं।
11) कोई अपने पड़ोसी की पत्नी का शील भंग करता है; कोई अपनी पुत्रवधु को भ्रष्ट करता है; कोई अपने ही पिता की सन्तान, अपनी बहन के साथ बलात्कार करता है।
12) तुम्हारे यहाँ लोग हत्या करने के लिए घूस लेते हैं: तुम ब्याज लेते, सूदखोरी करते और अपने पड़ोसियों से पैसा ऐंठते हो। प्रभु-ईश्वर कहता हैः तुमने मुझ को भुला दिया है।
13) “मैं तुम्हारे अन्याय से उपार्जित लाभ और तुम्हारे यहाँ बहाये गये रक्त पर तालियाँ बजाऊँगा।
14) क्या उन दिनों, जब मैं तुम से हिसाब लूँगा, तुम्हारा साहस बना रहेगा या तुम्हारे हाथ दृृढ़ रह सकेंगे? यह मैं प्रभु ने कहा है और मैं इसे पूरा करूँगा।
15) मैं तुम्हें राष्ट्रों में बिखेर दूँगा और देश-देश में तितर-बितर कर दूँगा और तुम्हें अपनी अपवित्रता से मुक्त कर दूँगा।
16) तुम राष्ट्रों के सामने अपने पापों के कारण अपवित्र बन जाओगे और तब तुम यह समझोगे कि मैं ही प्रभु हूँ।“
17) मुझे प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी:
18) “मानवपुत्र! इस्राएल का घराना मेरी दृष्टि में धातुमल हो गया है; वे सभी भट्टी में गलायी गयी चाँदी, काँसे, राँगे, लोहे और सीसे का मल हो गये हैं।
19) अतः प्रभु-ईश्वर कहता हैः तुम सभी धातुमल हो गये हो, इसीलिए मैं तुम्हें येरूसालेम में एकत्रित करूँगा।
20) जैसे लोग भट्टी में चाँदी, काँसा, लोहा, सीसा और राँगा एकत्रित कर उन्हें गलाने के लिए आग सुलगाते हैं, वैसे ही मैं अपने क्रोध और रोष में तुम को एकत्रित करूँगा और उस में डाल कर गलाऊँगा।
21) में तुम्हें एकत्रित करूँगा, तुम को अपने क्रोध की आग से फूँकूँगा और तुम उस में गल जाओगे।
22) जैसे भट्टी में चाँदी गलायी जाती है, वैसे तुम भी उस में गलाये जाओगे और तब तुम यह जान जाओगे कि मैं, प्रभु, ने तुम पर अपना क्रोध बरसाया है।“
23) मुझे प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी:
24) “मानवपुत्र! उस से यह कहो, ’तुम एक ऐसा देश हो, जिस पर न तो मेरे कोप के दिन पानी पड़ा है और न वर्षा हुई है।’
25) उसके पदाधिकारी अपने शिकार को फाड़ते समय गरजने वाले सिहं की तरह हैं। उन्होंने नर-भक्षण किया है। उन्होंने उनका धनकोष और बहुमूल्य पदार्थ छीने हैं। उन्होंने उसके यहाँ अनेक स्त्रियों को विधवा बनाया है।
26) उसके याजकों ने मेरा विधान भंग किया है और मेरी पवित्र वस्तुओं को अपवित्र किया है। उन्होंने पवित्र और लौकिक में भेद नहीं किया है। उन्होंने अशुद्ध और शुद्ध की शिक्षा नहीं दी है। उन्होंने मेरे विश्राम-दिवसों की अवहेलना की है और इस से मेरे नाम को अपवित्र किया है।
27) उसके यहाँ के पदाधिकारी भेड़ियों के सदृश हैं। वे अपने शिकार को फाड़ते, खून बहाते और अनुचित लाभ के लिए हत्या करते है।
28) उनके नबी उन पर सफ़ेदी पोतते हैं, जो उनके लिए झूटे दिव्य दृश्य देखते और झूठे शकुन विचारते हुए यह बोलते हैं, ’प्रभु-ईश्वर यह कहता है’, जब कि प्रभु ने नहीं कहा है।
29) इस देश के लोगों ने पैसा ऐंठा है, दूसरों का धन छीना है; उन्होंने निर्धन और अभावग्रस्त लोगों पर अत्याचार किया है तथा प्रवासियों का अन्यायपूर्ण शोषण किया है।
30) मैंने एक ऐसे व्यक्ति की खोज की, जो मोरचाबन्दी करे और जो मेरे सामने दीवार पर खड़ा हो कर उसकी रक्षा करे; किन्तु मुझे ऐसा कोई नहीं मिला।
31) इसलिए मैंने उन पर क्रोध बरसाया है; अपनी कोपाग्नि में उन्हें भस्म कर दिया है; मैंने उनके आचरण का बदला उनके सिर चुकाया है। यह प्रभु की वाणी है।“