1) मैंने प्रभु को ऊँचे स्वर से यह कहते सुना, “जो नगर को दण्ड देने के लिये नियुक्त हैं, वे विनाश के शस्त्र हाथ पर लिये निकट आ रहे हैं“।
2) इस पर उत्तर के ऊपरी फाटक से हो कर छः व्यक्ति आ गये- नगर का विनाश करने के लिए उनके हाथ में शस्त्र थे। उन में से एक छालटी के कपड़े पहने था और उसके कमरबन्द से लेखनसामग्री की थैली लटक रही थी। वे आकर काँसे की वेदी के पास खड़े हो गये।
3) तब इस्राएल के ईश्वर की महिमा, जो केरूबों के ऊपर विराजमान थी, ऊपर उठ मन्दिर की देहली पर आ गयी। प्रभु ने छालटी के कपड़े पहने मनुष्य को, जिसके कमरबन्द से लेखन-सामग्री की थैली लटक रही थी, बुलाया
4) और उस से कहा, “नगर के आरपार जाओ, सारे येरूसालेम में घूम कर उन लोगों का पता लगाओ, जो वहाँ हो रहे वीभत्स कर्मों के कारण रोते और विलाप करते हैं और उनके मस्तक पर ताव अक्षर का चिह्न अंकित करो“।
5) मैंने उसे दूसरे से यह कहते सुना, “इसके पीछे-पीछे चलो और सभी निवासियों को दया किये बिना मारो। कोई बचने न पाये।
6) तुम बूढ़ों, नवयुवकों और नवयुवतियों को, दुधमुँहे बच्चों और स्त्रियों को दया किये बिना मारो। किन्तु जिन पर ताव अक्षर का चिह्न अंकित हैं, उन पर हाथ मत लगाओ। मन्दिर से शुरू करो।“ उन्होंने पहले मन्दिर के सामने के बूढ़ों को मार डाला।
7) तब उसने उन से कहा, “मन्दिर को अपवित्र करो और प्रांगण को लाशों से भर दो। इसके बाद नगर जा कर लोगों का वध कर दो।“ वे आगे बढ़कर नगर के लोगों का वध करने लगे।
8) जब वे वध करने लगे और मैं अकेला रह गया, तो मैं मुँह के बल गिर पड़ा और चिल्ला उठा, “प्रभु-ईश्वर! क्या तू येरूसालेम पर अपना क्रोध बरसाने में इस्राएल के सभी शेष लोगों को नष्ट कर देगा?“
9) वह मुझ से बोला, “इस्राएल के घराने और यूदा का अपराध बहुत भारी है; देश खून से रँगा है और नगर अन्याय से भर गया है; क्योंकि वे कहते हैं, “प्रभु ने देश का परित्याग कर दिया है; प्रभु नहीं देखता है’।
10) किन्तु वे न तो मेरी आँख से बच सकेंगे और न मैं उन पर दया करूँगा, बल्कि मैं उनकी करनी का दोष उनके सिर पर डालूँगा।“
11) मैंने देखा कि छालटी पहना हुआ व्यक्ति जिसकी कमरबन्द से लेखन-सामग्री, लटक रही थी, लौट कर उसे वह सूचना दे रहा था, “मैंने तेरा आदेश पूरा कर दिया है“।