1) मुझे प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी,
2) “मानवपुत्र! यह कहो, ’इस्राएल का प्रभु-ईश्वर कहता हैः अन्त! देश के चारों कोनों पर अन्त आ गया है!
3) अब तुम्हारा अन्त है और मैं तुम पर अपना कोप बरसाऊँगा। तुम्हारे आचरण के अनुसार तुम्हारा न्याय करूँगा और तुम्हारे वीभत्स कर्मों के लिए तुम्हें दण्ड दूँगा।
4) तुम न तो मेरी दृष्टि से बच सकोगे और न ही मैं तुम पर दया दिखलाऊँगा; क्योंकि मैं तुम्हारे बीच के वीभत्स कर्मों और साथ ही पापपूर्ण आचरण के लिए तुम्हें दण्ड दूँगा। तुम तभी यह समझोगे कि मैं ही प्रभु हूँ।’
5) “प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः विपत्ति-पर-विपत्ति! देखो, वह आ रही है।
6) अन्त आ गया है, अन्त आ ही गया है। वह तुम्हारे विरुद्ध जाग उठा है। देखो, वह आ रहा है।
7) इस देश के निवासियों! तुम्हारा विनाश तुम्हारे निकट आ गया है। वह समय आ गया है, वह दिन समीप है- विप्लव का, न कि पर्वतों पर प्रसन्न कोलाहल का दिन।
8) मैं तुम पर अपना कोप बरसाऊँगा और तुम पर मेरा क्रोध शान्त हो जायेगा। मैं तुम्हारा न्याय तुम्हारे आचरण के अनुसार करूँगा और तुम्हारे सभी वीभत्स कर्मों का लेखा लूँगा।
9) मैं तुम पर न तो दया दिखाऊँगा और न तुम मेरी दृष्टि से बच सकोगे। मैं तुम को तुम्हारे आचरण के अनुसार दण्ड दूँगा और तुम्हारे वीभत्स कर्म तुम्हारे यहाँ रह जायेंगे। तुम तभी यह समझोगे कि मैं, प्रभु, तुम पर आघात कर रहा हूँ।
10) “देखो, वह दिन! देखो, वह आ रहा है! तुम्हारा अन्त आ गया है। डाली खिल रही है, घमण्ड फूल रहा है।
11) हिंसा दुष्टता की लाठी बन गयी है। उनका कुछ भी शेष नहीं रहेगा- न तो उनकी समृद्धि और न उनकी सम्पत्ति। उन में कोई बड़प्पन नहीं रहेगा।
12) वह समय आ गया है, वह दिन पास आ गया है। ख़रीदने वाला आनन्दित न हो, बेचने वाला शोक न मनाये; क्योंकि उनके समस्त समुदाय पर कोप भड़क गया है।
13) बेचने वाले को जीवन भर वह वापस नहीं मिलेगा, जो उसने बेच दिया; क्योंकि उनके समस्त समुदाय पर कोप भड़क गया है, वह पीछे नहीं मुडे़गा और अपने पापों के कारण कोई अपने जीवन की रक्षा नहीं कर पायेगा।
14) “वे तुरही बजा कर तैयार हो गये हैं; लेकिन उन में कोई भी युद्ध करने नहीं जा पायेगा; क्योंकि मेरा कोप उनके समस्त समुदाय पर भड़क उठा है।
15) बाहर तलवार चल रही है, भीतर महामारी और अकाल है। जो देहात में है, वह तलवार से मारा जाता है और जो नगर में है, वह अकाल और महामारी का आहार बन गया है।
16) जो बच कर भागंेगे, वे पहाड़ों पर घाटियों के कराहने वाले कबूतरों-जैसे हो जायेंगे। सभी अपने-अपने पापों के कारण मरेंगे।
17) सब के हाथ शक्तिहीन हो जायेंगे और सब के घुटने शिथिल।
18) वे कमर में टाट लपेटेंगे और उन पर आतंक छा जायेगा। सभी चेहरों पर लज्जा दिखाई देगी और उनके माथे पर गंजापन।
19) वे अपनी चाँदी सड़कों पर फेकेंगे और अपना सोना उन्हें अपवित्र लगने लगेगा। प्रभु के कोप के दिन उनका चाँदी-सोना उनकी रक्षा नहीं कर पायेगा। इस से वे न तो अपनी भूख मिटा सकेंगे और न अपना पेट ही भर सकेंगे यही उनके पापों के कारण रहा है।
20) वे झूठे अंहकार के लिए अपने सुन्दर आभूषणों का उपयोग करते थे तथा वे उस से अपनी वीभत्स मूर्तियाँ और घृणित वस्तुएँ बनाते थे। इसीलिए मैं उनके आभूषणों को उनके लिए अशुद्ध वस्तु बना दूँगा।
21) मैं इसे लूट के रूप में विदेशियों के हाथ में और लूट के माल के रूप में पृथ्वी के दुष्टों को दे दूँगा।
22) “मैं उन से अपना मुँह मोड़ लूँगा; वे मेरी अमूल्य निधि को अपवित्र कर देंगे। उस में लुटेरे प्रवेश करेंगे और उसे अपवित्र कर देंगे और
23) वे लोगों का वध करेंगे; क्योंकि देश में हत्या का बोलबाला है और नगर में हिंसा की भरमार है।
24) मैं उनके घरों पर अधिकार करने के लिए सब से बुरे राष्ट्रों को ले आऊँगा। मैं उनकी घमण्डभरी शक्ति को समाप्त कर दूँगा और उनके पवित्र स्थान अपवित्र किये जायेंगे।
25) आतंक आ रहा है। वे शांति खोजेंगे, लेकिन वह नहीं मिलेगी।
26) विपत्ति-पर-विपत्ति आयेगी, अफ़वाह-पर अफ़वाह फैलेगी। वे नबी से दिव्य दृश्य चाहेंगे। न तो याजक में उपदेश की क्षमता रहेगी और न नेताओं में परामर्श की।
27) राजा शोक मनायेगा, राज्याधिकारी पर निराशा छा जायेगी। देश की जनता के हाथ आतंक से काँपेंगे। मैं उनका न्याय उनके आचरण के अनुसार और उनका निर्णय उनके निर्णयों के अनुसार करूँगा और वे यह समझ जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।“