1) “मैंने उन लोगों पर अपने को प्रकट किया, जो मुझ से परामर्श नहीं लेते थे। जो लोग मेरी खोज नहीं करते थे, मैं उन्हें नहीं मिला। जो राष्ट्र मेरा नाम नहीं लेता, मैंने उस से कहा, ’देखो, मैं प्रस्तुत हूँ‘।“
(Jayesu tentative corrected Version: 1) जो मुझ से परामर्श नहीं लेते थे, उन पर अपने को प्रकट करने के लिए और जो मेरी खोज नहीं करते थे, उन्हें मिल जाने के लिए मैं तैयार था।
2) मैं दिन भर एक ऐसे विद्रोही राष्ट्र की ओर अपने हाथ फैलाये रहा, जो कुमार्ग पर चलता और मनचाहे रास्ते पर भटकता है-
3) एक ऐसा राष्ट्र, जो मेरे मुँह पर मुझे निरन्तर चिढ़ाता रहता है। वे लोग अपनी वाटिकाओं में चढ़ावे अर्पित करते और ईंटों पर धूप चढ़ाते हैं।
4) वे कब्रों के बीच बैठते और गुफाओं में जागरण करते हैं। वे सूअर का माँस खाते और अपने बरतनों में घृणित रस भरते हैं।
5) वे दूसरों से कहते हैं, ’सावधान रहो, मेरे पास मत आओ। मैं तुम्हारे लिए परमपवित्र हूँ।’ ऐसे लोग धूएँ की तरह, दिन भर जलती अग्नि की तरह, मेरी नाक में दम करते हैं।
6) (6-7) “देखो, मेरे सामने यह लिखा हआ हैः मैं तब तक मौन नहीं रहूँगा, जब तक मैं उन से उनके अधर्म का, उनकी अपनी और उनके पूर्वजों की दुष्टता का पूरा-पूरा बदला नहीं चुकाऊँगा।“ यह प्रभु का कथन है। “जो पहाड़ों पर सुगन्धित धूप चढ़ाते और पहाड़ियों पर मेरा उपहास करते हैं, मैं उन से उनके पुराने कुकर्मों का पूरा-पूरा बदला चुकाऊँगा।''
8) प्रभु यह कहता हैः “जब तक अंगूर के गुच्छे में रस होता है, लोग कहते हैं- ’उसे नष्ट मत करो, उस में अब तक आशिष मौजूद हैं’। मैं अपने सेवकों के कारण ऐसा ही करूँगा। मैं सबों का विनाश नहीं करूँगा।
9) मैं याकूब से वंशजों को उत्पन्न करूँगा और यूदा से अपने पर्वतों के अधिकारियों को। वे मेरी चुनी हुई प्रजा को विरासत के रूप में मिलेंगे, मेरे सेवक वहाँ निवास करेंगे।
10) जो प्रजा मेरी खोज करती रही, उसके लिए शारोन का मैदान भेड़-बकरियों का चरागाह बनेगा और आकोर की घाटी गाय-बैलों का विश्राम-स्थान।
11) “परन्तु तुम लोग, जिन्होंने प्रभु का परित्याग किया और मेरा पवित्र पर्वत भुला दिया, जो भाग्य-देवता गद को अन्न अर्पित करते और नियति-देवी मेनी को अर्घ चढ़ाते हो,
12) मैं तुम्हें तलवार को अर्पित करूँगा। वध के लिए सब को अपनी गरदन झुकानी होगी; क्योंकि मैंने तुम को बुलाया और तुमने उत्तर नहीं दिया। तुमने वही किया, जो मेरी दृष्टि में बुरा है; तुमने वही चुना, जो मुझे अप्रिय है।“
13) इसलिए प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः “मेरे सेवकों को भोजन मिलेगा, किन्तु तुम लोग भूखे रहोगे। मेरे सेवकों को पीने को मिलेगा, किन्तु तुम प्यास से तड़पोगे। मेरे सेवक आनन्द मनायेंगे, किन्तु तुम को नीचा दिखाया जायेगा।
14) मेरे सेवक आनन्दित हो कर जयकार करेंगे, किन्तु तुम लोग दुःखी हो कर रोओगे और निराशा में विलाप करोगे।
15) मेरे चुने हुए लोग तुम्हारा नाम ले कर अभिशाप देंगे। प्रभु-ईश्वर तुम्हारा वध करेगा किन्तु वह अपने सेवकों का नया नाम रखेगा।
16) जो व्यक्ति देश में अपने लिए आशीर्वाद माँगेगा, या शपथ खायेगा, वह सत्य के ईश्वर के नाम पर ऐसा करेगा; क्योंकि अतीत के कष्ट भुला दिये गये हैं; वे मेरी आँखों से ओझल हो गये हैं।
17) “मैं एक नये आकाश और एक नयी पृथ्वी की सृष्टि करूँगा। पुरानी बातें भुला दी जायेंगी, उन्हें कोई याद नहीं करेगा।
18) मेरी उस सृष्टि में सदा आनन्द और उल्लास रहेगा। मैं येरूसालेम को आनन्दित और उसकी प्रजा को उल्लसित करूँगा।
19) तब येरूसालेम मुझे आनन्द प्रदान करेगा और मेरी प्रजा मेरे उल्लास का कारण बनेगी। उस में फिर न तो रुदन सुनाई देगा और न विलाप।
20) वहाँ न तो कोई ऐसा शिशु मिलेगा, जो थोड़े ही दिनों तक जीवित रहे और न कोई ऐसा वृद्ध, जो अपने दिन पूरे न कर पाये। हर युवक सौ वर्ष तक जीवित रहेगा- जो उस उमर तक नहीं पहुँचता, वह शापित माना जायेगा।
21) वे घर बनायेंगे और उन में निवास करेंगे; वे दाखबारियाँ लगायेंगे और उनके फल खायेंगे।
22) अब ऐसा नहीं होगा कि वे घर बनायें और दूसरे उन में निवास करें, वे पौधे लगायें और दूसरे उसके फल खायें; क्योंकि मेरी प्रजा के पुत्र वृक्षों की तरह दीर्घायु होंगें। मेरे चुने हुए लोग स्वयं अपने परिश्रम का फल खायेंगे।
23) वे अब व्यर्थ परिश्रम नहीं करेंगे, उनकी सन्तति दुर्दिन नहीं देखेगी। प्रभु का आशीर्वाद उन पर और उनके वंशजों पर बना रहेगा।
24) उनके दुहाई देने से पहले ही, मैं उन्हें उत्तर दूँगा; उनकी प्रार्थना पूरी होने से पहले ही, मैं उसे स्वीकार करूँगा।
25) भेड़िया और मेमना साथ-साथ चरेंगे। सिंह बैल की तरह चारा खायेगा। साँप मिट्टी खा कर पेट भरेगा। मेरे समस्त पवित्र पर्वत पर कोई हानि या विनाश नहीं करेगा।“ यह प्रभु का कथन है।