1) दूरवर्ती द्वीप मेरी बात सुन¨। दूर के राष्ट्रों! कान लगा कर सुनो। प्रभु ने मुझे जन्म से पहले ही बुलाया, मैं माता के गर्भ में ही था, जब उसने मेरा नाम लिया।
2) उसने मेरी वाणी को अपनी तलवार बना दिया और मुझे अपने हाथ की छाया में छिपा लिया। उसने मुझे एक नुकीला तीर बना दिया और मुझे अपने तरकश में रख लिया
3) उसने मुझे से कहा, “तुम मेरे सेवक हो, मैं तुम में अपनी महिमा प्रकट करूँगा“।
4) मैं कहता था, “मैंने बेकार ही काम किया है, मैंने व्यर्थ ही अपनी शक्ति खर्च की है। प्रभु ही मेरा न्याय करेगा, मेरा पुरस्कार उसी के हाथ में है।“
5) परन्तु जिसने मुझे माता के गर्भ से ही अपना सेवक बना लिया है, जिससे मैं याकूब को उसके पास ले चलूँ और उसके लिए इस्राएल को इकट्ठा कर लूँ, वही प्रभु बोला; उसने मेरा सम्मान किया, मेरा ईश्वर मेरा बल है।
6) उसने कहाः “याकूब के वंशों का उद्धार करने तथा इस्राएल के बचे हुए लोगों को वापस ले आने के लिए ही तुम मेरे सेवक नहीं बने। मैं तुम्हें राष्ट्रों की ज्योति बना दूँगा, जिससे मेरा मुक्ति-विधान पृथ्वी के सीमान्तों तक फैल जाये।“
7) जो तिरस्कृत है, जिसे लोग तुच्छ समझते हैं, जो निरंकुश शासकों का दास है, उस से प्रभु, इस्राएल का परमपावन ईश्वर और उद्धारक यह कहता हैः “राजगण यह देख कर अपने सिंहासन से उठेंगे और दण्डवत् करेंगे कि प्रभु तुम्हारे प्रति सत्यप्रतिज्ञा है, कि इस्राएल के परमपावन ईश्वर ने तुम को चुना है।''
8) प्रभु यह कहता हैः “मैं उपयुक्त समय में तुम्हारी सुनूँगा, मैं कल्याण के दिन तुम्हारी सहायता करूँगा। मैंने तुम को सुरक्षित रखा है और अपने विधान की प्रज़ा नियुक्त किया है। मैं भूमि का उद्धार करूँगा और तुम्हें उजाड़ प्रदेशों में बसाऊँगा।
9) मैं बन्दियों से यह कहूँगा, ’मुक्त हो जाओ! और अन्धकार में रहने वालों से, ’सामने आओ’। वे मार्गों के किनारे चरेंगे और उन्हें उजाड़ स्थानों में चारा मिलेगा।
10) उन्हें फिर कभी न तो भूख लगेगी और न प्यास, उन्हें न तो लू से कष्ट होगा और न धूप से, क्योंकि जो उन्हें प्यार करता है, वह उनका पथप्रदर्शन करेगा और उन्हें उमड़ते हुए जलस्रोतों तक ले चलेगा।
11) मैं पर्वतों में रास्ता निकालूँगा और मार्गों को समतल बना दूँगा।
12) “देखो, कुछ लोग दूर से आ रहे हैं, कुछ उत्तर से, कुछ पश्चिम से और कुछ अस्सुआन देश से।“
13) आकाश जयकार करे! पृथ्वी उल्लसित हो और पर्वत आनन्द के गीत गायें! क्योंकि प्रभु अपनी प्रजा को सान्त्वना देता है और अपने दीन-हीन लोगों पर दया करता है।
14) सियोन यह कह रही थी, “प्रभु ने मुझे छोड़ दिया है। प्रभु ने मुझे भुला दिया है।“
15) “क्या स्त्री अपना दुधमुँहा बच्चा भुला सकती है? क्या वह अपनी गोद के पुत्र पर तरस नहीं खायेगी? यदि वह भुला भी दे, तो भी मैं तुम्हें कभी नहीं भुलाऊँगा।
16) मैंने तुम्हें अपनी हथेलियों पर अंकित किया है, तुम्हारी चारदीवारी निरन्तर मेरी आँखों के सामने है।
17) तुम्हारे निर्माता दौड़ते हुए तुम्हारे पास आ रहे हैं; जिन्होंने तुम्हें उजाड़ा और विनष्ट किया, वे तुम्हारे यहाँ से जा रहे हैं।
18) तुम चारों ओर दृष्टि दौड़ा कर देखो कि सब एकत्र हो कर तुम्हारे पास आ रहे हैं। प्रभु कहता हैः “अपने अस्तित्व की शपथ! तुम आभूषण की तरह उन सबों को पहनोगी। तुम वधू की तरह उन से अपना श्रृंगार करोगी;
19) क्योंकि तुम्हारे खँड़हर, तुम्हारे उजाड़ स्थान, तुम्हारा देश, जिसका पूर्ण विनाश किया गया, वह अब तुम्हारे बहुसंख्यक निवासियों के लिए छोटा पड़ जायेगा; क्योंकि जिन्होंने तुम को उजाड़ा है, वे चले गये हैं।
20) जो सन्तति तुम्हारे निर्वासन के समय उत्पन्न हुई है, वह तुम से कहेगी, ’यह स्थान हमारे लिए पर्याप्त नहीं है, हम को बसने के लिए और जगह दो’।
21) तब तुम अपने मन में यह कहोगी, ’मुझे यह सारी सन्तति कहाँ प्राप्त हुई? मैं तो निस्सन्तान और बाँझ थी। किसने उसका पालन-पोषण किया? मैं अकेली रह गयी थी, ये सब कहाँ से आ गयी है?’
22) प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः “देखो, मैं हाथ उठा कर जातियों को बुलाऊँगा, मैं राष्ट्रों को संकेत देने का झण्डा फहराऊँगा। वे तुम्हारे पुत्रों को अपनी गोद में उठा कर और तुम्हारी पुत्रियों को अपने कन्धों पर रख कर ले आयेंगे।
23) राजा तुम्हारे पालक-पिता होंगे और राजकुमारियाँ तुम्हारी धायें। वे तुम को साष्टांग प्रणाम करेंगे और तुम्हारे पैरों की धूल चाटेंगे। तुम जान जाओगे कि मैं ही प्रभु हूँ। मुझ पर भरोसा रखने वालों को लज्जित नहीं होना पड़ेगा।“
24) क्या विजेता से उसकी लूट छीनी जा सकती है? क्या अत्याचारी के हाथ से बन्दी को छुड़ाया जा सकता है?
25) प्रभु इसका यह उत्तर देता है, “निश्चय ही विजेता से उसकी लूट छीनी जायेगी और अत्याचारी के हाथ से बन्दी को छुड़ाया जायेगा। मैं ही तुम्हारे शत्रुओं से लडूँगा, मैं ही तुम्हारे पुत्रों को छुड़ाऊँगा।
26) मैं तुम्हारे अत्याचारियों को बाध्य करूँगा कि वे अपना ही माँस खायें। वे अंगूरी पीने वालों की तरह अपना ही रक्त पी कर मत्त हो जायेंगे। तब सभी शरीरधारी जान जायेंगे कि मैं, प्रभु, तुम्हारा मुक्तिदाता हूँ, याकूब का वह अजेय ईश्वर, जो तुम्हारा उद्धार करता है।“