📖 - इसायाह का ग्रन्थ (Isaiah)

अध्याय ==>> 01- 02- 03- 04- 05- 06- 07- 08- 09- 10- 11- 12- 13- 14- 15- 16- 17- 18- 19- 20- 21- 22- 23- 24- 25- 26- 27- 28- 29- 30- 31- 32- 33- 34- 35- 36- 37- 38- 39- 40- 41- 42- 43- 44- 45- 46- 47- 48- 49- 50- 51- 52- 53- 54- 55- 56- 57- 58- 59- 60- 61- 62- 63- 64- 65- 66- मुख्य पृष्ठ

अध्याय 37

1) यह सुन कर राजा हिज़कीया ने अपने वस्त्र फाड़ डाले और टाट ओढ़ कर प्रभु के मन्दिर गया।

2) इसके बाद उसने महल-प्रबन्धक एल्याकीम, सचिव शेबना और प्रमुख याजकों को टाट ओढ़े आमोस के पुत्र नबी इसायाह के पास भेजा।

3) उन्होंने उस से कहा, “हिज़कीया का कहना हैः आज का दिन संकट, डाँट और अपमान का दिन है; क्योंकि प्रसव का दिन आया है, लेकिन प्रसूता में प्रसव करने की शक्ति नहीं रह गयी है।

4) हो सकता है कि प्रभु, आपके ईश्वर ने प्रधान रसद-प्रबन्धक की बातों को सुन लिया हो, जिसे अस्सूर के राजा ने जीवन्त ईश्वर की निन्दा करने भेजा है और उन बातों के लिए उसे दण्ड दे, जिन्हें प्रभु, आपके ईश्वर ने सुना होगा। अतः उन लोगों के लिए प्रार्थना कीजिए, जो शेष रह गये हैं।''

5) जब राजा हिज़कीया के सेवक इसायाह के पास आये,

6) तब इसायाह ने उन से कहा, “तुम अपने स्वामी से यह कहोगे कि प्रभु का कथन हैः ‘तुम उन बातों से नहीं डरो, जिन्हें तुमने सुना है और जिनके द्वारा अस्सूर के राजा के सेवकों ने मेरी निन्दा की है।

7) मैं उसके मन में ऐसी भावना पैदा करूँगा कि वह कोई अफ़वाह सुन कर अपने देश लौट जायेगा और अपने देश में ही तलवार से मार डाला जोयगा’।“

8) जब प्रधान रसद-प्रबन्धक लौटा, तो उसने सुना कि अस्सूर का राजा लाकीश छोड़ कर चला गया और लिबना में युद्ध कर रहा है। इसलिए वह भी लिबना गया।

9) राजा को ख़बर मिली की कूश का राजा तिरहाका उस से लड़ने आया है। यह सुन कर अस्सूर के राजा ने हिज़कीया के पास दूतों को भेजते हुए कहा,

10) “यूदा के राजा हिज़कीया से यह कहनाः ‘तुम अपने ईश्वर का भरोसा करते हो, जो तुम्हें आश्वासन देता है कि येरूसालेम अस्सूर के राजा के हाथ नहीं पड़ेगा। इस प्रकार का धोखा मत खाओ।“

11) तुमने अवश्य सुना है कि अस्सूर के राजाओं ने उन सब देशों का सर्वनाश किया है, तो तुम कैसे बच सकते हो?

12) क्या उन राष्ट्रों के देवताओं ने उनकी रक्षा की, जिनका विनाश मेरे पूर्वजों ने किया है, अर्थात् गोजा़न हरान, सेरेफ़ और तलस्सार में एदेन के लोगों की?

13) हमात् अर्पाद, सफ़रवईम, हेना या इव्वा के राजा कहाँ हैं?“

14) हिज़कीया ने दूतों के हाथ से पत्र लेकर पढ़ा। इसके बाद उसने प्रभु के मन्दिर में जा कर उसे प्रभु के सामने खोल कर रख दिया।

15) अब हिज़कीया ने प्रभु से इस प्रकार प्रार्थना कीः

16) “सर्वशक्तिमान प्रभु! इस्राएल के ईश्वर! तू केरूबीम पर विराजमान है। तू पृथ्वी भर के सब राज्यों का एकमात्र ईश्वर है। तूने ही स्वर्ग और पृथ्वी को बनाया है।

17) प्रभु! तू कान लगा कर सुन! प्रभु! अपनी आँखें खोल कर देख! सनहेरीब के वे सब शब्द सुन, जिनके द्वारा उसने जीवन्त ईश्वर का अपमान किया है।

18) प्रभु! यह सच है कि अस्सूर का राजाओं ने सब राष्ट्रों का विनाश किया और उनके देश उजाड़े।

19) उन्होंने उनके देवताओं को जलाया, किन्तु वे देवता नहीं, बल्कि मनुष्यों द्वारा लकड़ी और पत्थर की बनायी मूर्तियाँ मात्र थे। इसलिए वे उन्हें नष्ट कर सके।

20) प्रभु! हमारे ईश्वर! हमें उसके पंजे से छुड़ा, जिससे पृथ्वी भर के राज्य यह जान जायें कि प्रभु! तू ही ईश्वर है।“

21) इसके बाद आमोस के पुत्र इसायाह ने हिज़कीया को यह कहला भेजा, “प्रभु, इस्राएल का ईश्वर यह कहता हैः तुमने अस्सूर क राजा सनहेरीब के विषय मुझ से प्रार्थना की है।

22) सनहेरीब के विरुद्ध प्रभु का कहना इस प्रकार हैः “सियोन की कुँवारी पुत्री तुम्हारा तिरस्कार और उपहास करती है। येरूसालेम की पुत्री तुम्हारी पीठ पीछे सिर हिलाती है।

23) “तुमने किसकी निन्दा की है और किसका अपमान किया है? तुमने किसके विरुद्ध आवाज़ उठायी है? तुमने किसकी ओर अहंकार से आँखें उठायी हैं? इस्रएल के परमपावन ईश्वर के विरुद्ध!

24) तुमने अपने सेवक भेज कर प्रभु की निन्दा की है। तुमने कहाः मैं अपने रथों के साथ पर्वतों के शिखर पर चढ़ चुका हूँ, लेबानोन के सब से ऊँचे स्थानों पर! मैंने उसके सब से ऊँचे देवदार और उसके सब से सुन्दर सनोवर कटवा डाले। मैं उसके सब से दुर्गम भागों में और उसके गहनतम वन-खण्डों में पहुँच गया हूँ।

25) मैंने खोद कर विदेशों का पानी पिया और अपने पैरों के नीचे मिस्र की सब नहरें सुखायी हैं।

26) ष्“क्या तुम लोग यह नहीं जानते कि मैंने बहुत पहले यह योजना बनायी थी? अब मैं उसे पूरा करूँगा। मैं तुम्हारे क़िलाबन्द नगरों को पत्थरों का खँडहर बना दूँगा।

27) उनके निवासी शक्तिहीन, भयभीत और निराश हैं। वे खेतों की घास-जैसे हैं, मैदान की हरियाली की तरह, छत पर उगे पौधों-जैसे, झुलसे गेहूँ की तरह, जो बढ़ने से पहले सूख जाते हैं।

28) मैं तुम्हारा उठना-बैठना, आना-जाना जानता हूँ। जब तुम मुझ पर क्रुद्ध हो, तो मैं ज़ानता हूँ।

29) तुमने मुझ पर क्रोध किया, तुम्हारी अहंकार-भरी बातें मेरे कानों तक पहुँच गयी हैं। इसलिए मैं तुम्हारी नाक में नकेल डालूँगा और तुम्हारे मुँह पर लगाम। तुम जिस रास्ते से आये, उस से तुम को लौटाऊँगा।

30) “तुम्हारे लिए यह संकेत होगा- इस वर्ष तुम सिल्ला खाओगे, दूसरे वर्ष अपने आप उगने वाला घास-पात, तीसरे वर्ष तुम बोओगे और लुनोगे, दाखबारियाँ लगाओगे और उनका फल खाओगे।

31) यूदा के घराने का अवशेष जड़ पकड़ेगा और फल देगा।

32) येरूसालेम में से एक अवशेष निकलेगा और सियोन पर्वत से बचे हुए लोगों का एक दल। विश्वमण्डल के प्रभु का अनन्य प्रेम यह कर दिखायेगा।

33) “इसलिए अस्सूर के राजा के विषय में प्रभु यह कहता हैः वह इस नगर में प्रवेश नहीं करेगा और इस पर एक बाण भी नहीं छोड़ेगा। वह ढाल ले कर इसके पास नहीं फटकेगा और इसकी मोरचाबन्दी नहीं करेगा।

34) वह जिस रास्ते से आया, उसी से वापस जायेगा। वह इस नगर में प्रवेश नहीं करेगा।“ यह प्रभु की वाणी है।

35) “मैं अपने नाम और अपने सेवक दाऊद के कारण यह नगर बचा कर सुरक्षित रखूँगा।“

36) प्रभु के दूत ने आकर अस्सूरियों के शिविर में एक लाख पचासी हज़ार मनुष्यों को मार डाला। प्रातःकाल ये सब मर कर पड़े हुए थे।

37) अस्सूर का राजा सनहेरीब शिविर उठा कर अपने देश लौटा और निनिवे में रहा।

38) एक दिन जब वह अपने देवता निस्रोक के मन्दिर में उपासना कर रहा था, तो उसके पुत्र अद्रम्मेलेक और शरएसेर ने उसे तलवार से मार डाला और वे अराराट देश भाग गये। उसका पुत्र एसेर-हद्दोन उसकी जगह राजा बना।



Copyright © www.jayesu.com