1) यिशय के धड़ से एक टहनी निकलेगी, उसकी जड़ से एक अंकुर फूटेगा।
2) प्रभु का आत्मा उस पर छाया रहेगा, प्रज्ञा तथा बुद्धि का आत्मा, सुमति तथा धैर्य का आत्मा, ज्ञान तथा ईश्वर पर श्रद्धा का आत्मा।
3) वह प्रभु पर श्रद्धा रखेगा। वह न तो जैसे-तैसे न्याय करेगा, और न सुनी-सुनायी के अनुसार निर्णय देगा।
4) वह न्यायपूर्वक दीन-दुःखियों के मामलों पर विचार करेगा और निष्पक्ष हो कर देश के दरिद्रों को न्याय दिलायेगा। वह अपने शब्दों के डण्डे से अत्याचारियों को मारेगा और अपने निर्णयों से कुकर्मियों का विनाश करेगा।
5) वह न्याय को वस्त्र की तरह पहनेगा और सच्चाई को कमरबन्द की तरह धारण करेगा।
6) तब भेड़िया मेमने के साथ रहेगा, चीता बकरी की बगल में लेट जायेगा, बछड़ा तथा सिंह-शावक साथ-साथ चरेंगे और बालक उन्हें हाँक कर ले चलेगा।
7) गाय और रीछ में मेल-मिलाप होगा और उनके बच्चे साथ-साथ रहेंगे। सिंह बैल की तरह भूसा खायेगा।
8) दुधमुँहा बच्चा नाग के बिल के पास खेलता रहेगा और बालक करैत की बाँबी में हाथ डालेगा।
9) समस्त पवित्र पर्वत पर न तो कोई बुराई करेगा और न किसी की हानि; क्योंकि जिस तरह समुद्र जल से भरा है, उसी तरह देश प्रभु के ज्ञान से भरा होगा।
10) उस दिन यिशय की सन्तति राष्ट्रों के लिए एक चिह्न बन जायेगी। सभी लोग उनके पास आयेंगे और उसका निवास महिमामय होगा।
11) उस दिन प्रभु, पत्रोस, कूश, एलाम, शिनआर, हमात और समुद्र के द्वीपों से अपनी प्रजा के अवशेष का उद्धार करने दूसरी बार अपना हाथ बढ़ायेगा।
12) वह राष्ट्रों को संकेत देने एक झण्ड़ा फहरायेगा और इस्राएल के निर्वासितों को एकत्र करेगा। वह यूदा के बिखरे हुए लोगों को पृथ्वी के चार कोनों से एकत्र करेगा।
13) एफ्ऱईम की ईर्ष्या समाप्त हो जायेगी और यूदा के शत्रु मिटा दिये जायेंगे। न तो एफ्ऱईम यूदा से फिर ईर्ष्या करेगा और न यूदा एफ्ऱईम से शत्रुता करेगा।
14) वे पश्चिम में फ़िलिस्तयों पर टूट पडे़ंगे और मिल कर पूर्व के लोगों को लूटेंगे। वे एदोम एवं मोआब पर अधिकार करेंगे और अम्मोनी उनके अधीन हो जायेंगे।
15) प्रभु मिस्र की खाड़ी सुखायेगा। वह फ़रात नदी पर प्रचण्ड लू भेज कर उसे सात धाराओं में विभाजित कर देगा और लोग उसे सूखे पैर पार करेंगे।
16) इस प्रकार अस्सूर में मेरी शेष प्रजा के लिए एक मार्ग प्रशस्त किया जायेगा, जिस तरह इस्राएल के लिए हुआ था, जब वह मिस्र से निकला था।