1) एफ्ऱईम के शराबियों के गर्वीले मुकुट को धिक्कार और उसके अलंकृत वस्त्रों के मुरझाये हुए फूलों को! तुम उस उपजाऊ घाटी के शिखर पर मदिरा से मत्त होकर लड़खड़ाते हो।
2) देखो! प्रभु का एक बलशाली शूरवीर आ रहा है। वह ओलों की वर्षा, विनाशक तूफ़ान, प्रलय ले आने वाली आँधी - सब कुछ बलपूर्वक भूमि पर पटकेगा।
3) एफ्ऱईम के शराबियों का गर्वीला मुकुट भूमि पर रौंदा जायेगा।
4) उपजाऊ घाटी के शिखर पर उनके अलंकृत वस्त्रों के मुरझाये हुए फूलों के साथ ऐसा ही होगा, जैसा समय से पहले पके अंगूर के साथ होता है। जो उसे देखता है, वह उसे तोड़ कर खा जाता है।
5) उस दिन सर्वशक्तिमान् प्रभु अपनी अवशिष्ट प्रजा के लिए एक महिमामय किरीट और सुन्दरमाला होगा।
6) श्वह न्यायकर्ताओं के लिए न्याय का स्रोत होगा और शत्रुओं से नगर की रक्षा करने वालों के लिए वीरता का।
7) याजक और नबी भी अंगूरी पी कर मत्त हैं। वे मद्यपान के कारण झूम रहे हैं। वे सब-के-सब लड़खड़ाते हैं; उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो गयी है। वे अद्भुत दृश्य देख कर भटकते हैं और निर्णय सुनाते समय लड़खड़ाते हैं।
8) मेज़ें घृणित वमन से भरी हैं, कोई जगह गन्दगी से ख़ाली नहीं ।
9) “वह किस को सिखाने चला? वह किसे अपना सन्देश सुनाना चाहता है? क्या दूध-छुडा़ये बच्चों को, जिन्होंने अभी-अभी स्तनपान छोड़ा है?
10) क्योंकि वह कहता है: ’आदेश-पर-आदेश, आदेश-पर-आदेश, नियम-पर-नियम, नियम-पर-नियम, इधर कुछ, उधर कुछ’।“
11) प्रभु निश्चय ही विदेशियों की एक अपरिचित भाषा द्वारा इस राष्ट्र को सम्बोधित करेगा।
12) उसने उनसे कहा था, “यही विश्वास का स्थान है। थके-माँदे लोग यहाँ विश्राम करें। यहाँ शान्ति प्राप्त होगी।“ किन्तु वे सुनना नहीं चाहते थे।
13) इसलिए प्रभु उन से यह कहेगा: “आदेश-पर-आदेश, आदेश-पर-आदेश, नियम-पर-नियम, नियम-पर-नियम, इधर-कुछ, उधर-कुछ“, जिससे वे पीछे हट कर गिर जायेंगे, घायल हो जायेंगे, जाल मे फँस कर पकड़ लिये जायेंगे।
14) इसलिए निन्दको! जो येरूसालेम में इन लोगों पर शासन करते हो, तुम प्रभु का सन्देश सुनो।
15) तुम कहते हो, “हमने मृत्यु के साथ समझौता कर लिया और अधोलोक के साथ सन्धि कर ली है। जब-जब महाविपत्ति टूट पड़ेगी, तो वह हम लोगों तक नहीं आ पायेगी; क्योंकि हमने झूठ को अपना आश्रय और कपट को अपना शरणस्थान बना लिया है।“
16) फिर भी प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः “देखो, मैं सियोन में सुदृढ़ नींव के रूप में कसौटी पर कसे हुए बहुमूल्य कोने का पत्थर रखता हूँ। जो इस पर भरोसा रखता है, वह कभी निराश नहीं होगा।
17) न्याय मेरा मापदण्ड़ होगा और सद्धर्म मेरा साहुल। ओले की वर्षा झूठ के आश्रय को बहा देगी और जलधारा तुम्हारे शरणस्थान को।
18) मृत्यु के साथ तुम्हारा समझौता टूट जायेगा और अधोलोक के साथ तुम्हारी सन्धि नहीं टिकेगी। जब विपत्ति तुम पर टूट पड़ेगी, तो तुम उस में बह जाओगे।
19) जब-जब वह आ पड़ेगी, तो वह तुम को डुबा कर ले जायेगी। वह हर सुबह, दिन-रात आती रहेगी।“ जब लोग यह सन्देश समझेंगे, तो वे आतंक से भर जायेंगे।
20) पलंग इतना लम्बा नहीं होगा कि तुम पैर फैला कर सो सको। चादर इतनी छोटी होगी कि वह तुम्हारा शरीर नहीं ढक सकेगी।
21) प्रभु उठ कर खड़ा हो जायेगा, जैसा कि उसने परासीम पर्वत पर किया था। वह क्रोध के आवेश में उठेगा, जैसा कि उसने गिबओन की घाटी में किया था।
22) वह अपना अद्भुत कार्य पूरा करेगा, वह अपनी अलौकिक योजना सम्पन्न करेगा।
23) अब तुम उपहास करना छोड़ दो, नहीं तो तुम्हारी बेड़ियाँ और कस दी जायेंगी; क्योंकि मुझे प्रभु की ओर से पता चला कि उसने तुम्हारे देश के विनाश का आदेश दिया है।
24) मेरी बात अच्छी तरह सुनो, मेरे शब्दों पर ध्यान दो।
25) क्या किसान हर समय हल चलाता और हेंगा फेरता रहता है? क्या वह ज़मीन बराबर करने के बाद उस में सौंफ़ और जीरा नहीं लगाता है? क्या वह उनकी अपनी-अपनी जगह पर गेहूँ, जौ और बाजरा नहीं बोता और किनारे पर घटिया अनाज?
26) उसे यह शिक्षा ईश्वर से प्राप्त है, जो उसे काम का सही ढंग सिखाता है।
27) सौंफ की दँवरी पुशुओं से नहीं की जाती और जीरे पर गाड़ी का पहिया नहीं चलाया जाता है, बल्कि सौंफ़ छड़ी से और जीरा सोंटे से झाड़ा जाता है।
28) रोटी बनाने के लिए गेहूँ पीसा जाता है, इसलिए लोग देर तक उसकी दँवरी नहीं करते। जो पशुओं से उसकी दँवरी करते हैं, वे इसका ध्यान रखते हैं कि वह रौंदा नहीं जाये।
29) अपूर्व परामर्शदाता और अत्यन्त कार्यकुशल सर्वशक्तिमान् प्रभु की प्रेरणा से किसान को यह शिक्षा प्राप्त है।