1) “तुम, जो धर्माचरण करते और प्रभु को खोजते रहते हो, मेरी बात सुनो। उस चट्टान की ओर देखो, जिस से तुम काटे गये हो, उस खदान की ओर, जिस से तुम निकाले गये हो।
2) अपने पिता इब्राहीम पर ध्यान दो, सारा पर, जिसने तुम को जन्म दिया। जब मैंने इब्राहीम को बुलाया, तो वह अकेला था। मैंने उसे आशीर्वाद दिया और उसके वंश की वृद्धि की।
3) प्रभु निश्चय ही सियोन को सान्त्वना देगा और उसके खँडहरों पर दयादृष्टि करेगा। वह उसकी मरुभूमि को अदन-वाटिका के सदृश बना देगा और उसके उजाड़ स्थान प्रभु और के उद्यान के सदृश। वहाँ आनन्द और उल्लास बना रहेगा; वहाँ धन्यवाद के गीत गूँजते रहेंगे।
4) “मेरी प्रजा! मेरी बात सुनो; मेरे नगर! मुझ पर कान दो। मैं संहिता को प्रकट करूँगा, मेरा न्याय जातियों की ज्योति होगा।
5) मेरा न्याय निकट है, मेरा उद्धार आ रहा है; मैं अपने बाहुबल से जातियों का न्याय करूँगा। द्वीप मेरी ओर देखेंगे और मेरे सामर्थ्य का भरोसा करेंगे।
6) आकाश की ओर आँखें ऊपर उठाओ और नीचे की ओर पृथ्वी पर दृष्टि दौड़ाओ। आकाश धुएँ की तरह विलीन हो जायेगा, पृथ्वी वस्त्र की तरह जीर्ण हो जायेगी और उसके निवासी कीड़ों की तरह मर जायेंगे। किन्तु तुम्हारे लिए मेरा उद्धार चिरस्थायी है और मेरा न्याय सदा बना रहेगा।
7) ओ मेरी प्रजा! तुम, जो सद्धर्म समझती हो और मेरी संहिता को हृदय से चाहती हो, मेरी बात सुनो! मनुष्यों की निन्दा से मत डरो और उनके अपमान से मत घबराओ;
8) क्योंकि उन्हें कीड़े कपड़ों की तरह चाट जायेंगे, उन्हें कीट ऊन की तरह खा जायेंगे; किन्तु तुम्हारे लिए मेरा न्याय, पीढ़ी-दर-पीढ़ी मेरा उद्धार सदा बना रहेगा।“
9) प्रभु की भुजा! जाग! जाग! सामर्थ्य धारण कर! जाग-प्राचीन काल की तरह, पुरानी पीढ़ियों के समय की तरह! क्या तूने रहब को टुकड़े-टुकड़े नही किया, और पंखदार सर्प को नहीं छेदा?
10) क्या तूने समुद्र को, महागत्र्त की जलधाराओं को नहीं सुखाया? तूने समुद्र की गहराइयों में मार्ग नहीं बनाया, जिससे मुक्त किये गये लोग पार कर सकें?
11) प्रभु द्वारा मुक्त किये गये लोग लौटेंगे। वे चिरस्थायी आनन्द से विभूशित, सुख और उल्लास में विभोर, दुःख और चिन्ता से मुक्त हो कर जयकार करते हुए सियोन में प्रेवश करेंगे।
12) “मैं, मैं ही तुम को सान्त्वना देता हूँ, तो तुम मरणशील मनुष्यों से क्यों डरते हो-आदम के पुत्रों से, जो घास के सदृश हैं?
13) तुम अपने सृष्टिकर्ता को क्यों भूल जाते हो, जिसने आकाश को फैलाया और पृथ्वी की नींव डाली? तुम दिन भर निरन्तर अत्याचारी के क्रोध से क्यों करते हो, मानो वह तुम्हारा विनाश करने में समर्थ हो? कहाँ है अत्याचारी का क्रोध?
14 झुके हुए बन्दी शीघ्र ही रिहा किये जायेंगे। वे नहीं मरेंगे और उन्हें रोटी का अभाव नही होगा;
15) क्योंकि मैं तुम्हारा प्रभु-ईश्वर हूँ, जो समुद्र का मन्थन करता, जिससे उसकी लहरें गरजती हैं। मेरा नाम है-विश्वमण्डल का प्रभु।
16) मैंने अपने शब्दों को तुम्हारे मुँह में रखा और तुम को अपने हाथ की छाया में छिपाया है। मैंने आकाश को स्थापित किया, पृथ्वी की नींव डाली और सियोन से कहा-’तुम ही मेरी प्रजा हो’।“
17) येरूसालेम नगरी! जाग, खड़ी हो जा। तूने प्रभु के हाथ से उसके कोप के प्याले का पान किया। तूने लड़खड़ा देने वाली मदिरा का पात्र पूरा-पूरा पी लिया है।
18) तूने जितने पुत्रों को उत्पन्न किया, उन में एक भी तेरा प्रथप्रदर्शक नहीं बना। तूने जितने पुत्रों का पालन-पोषण किया, उन में एक ने भी तेरा हाथ नही थामा।
19) तुझ पर दो-दो विपत्तियाँ टूटींः उजाड़ और विनाश; भुखमरी और तलवार। किसी ने तुझ पर विलाप नहीं किया; किसी ने तुझे सान्त्वना नहीं दी।
20) तेरी सन्तति जाल में फँसे मृग की तरह हर गली के नुक्कड़ पर बेहोश पड़ी है। वह प्रभु के कोप की मारी ईश्वर की डाँट से घायल है।
21) इसलिए दुर्भाग्यशालिनी! मेरी बात सुन। तू बिना अंगूरी पिये लड़खड़ा रही है।
22) तेरा स्वामी, तेरा प्रभु-ईश्वर, जो अपनी प्रजा का पक्ष लेता है, कहता है, “मैंने तेरे हाथ से लड़खड़ा देने वाला प्याला ले लिया है। तू फिर कभी मेरे क्रोध का पात्र नहीं पियेगी।
23) मैं उसे तेरे अत्याचारियों के हाथ में दूँगा, उन लोगों के हाथ, जो तुझ से कहते थेः ’भूमि पर लेट जा, हम तुझ पर पैर रख कर आगे बढ़ेंगे’ और तूने अपनी पीठ जमीन-जैसी बना ली, मार्ग-जैसी, जिस पर गुजरने वाले चलते थे।“