📖 - प्रज्ञा-ग्रन्थ (Wisdom)

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अध्याय 11

1) उसने एक पवित्र नबी के हाथ से उनकी योजना को सफल बनाया।

2) उन्होंने निर्जन उजाड़खण्ड पार किया और दुर्गम स्थानों पर अपने तम्बू खड़े किये।

3) उन्होंने अपने शत्रुओं का डट कर सामना किया और विरोधियों को मार भगाया।

4) जब उन्हें प्यास लगी, तो उन्होने तेरी दुहाई दी और उन्हें एक ऊँची चट्टान से पानी मिला, एक कठोर पत्थर ने उनकी प्यास बुझायी;

5) क्योंकि जिसके द्वारा उनके शत्रुओें को दण्ड दिया गया, उसी के द्वारा अभाव में उनका उपकार किया गया।

6) (6-7) शिशुओें के वध की राजाज्ञा के दण्डस्वरूप नील की सदा प्रवाहित धारा रक्त और कीच से दूषित हो गयी। उसके बदले तूने अपनी प्रजा को अप्रत्याशित रूप में भरपूर जल दिया।

8) तूने उस समय की प्यास द्वारा अपनी प्रजा को यह दिखाया कि उनके विरोधियों को किस प्रकार का दण्ड दिया गया था।

9) यद्यपि वे नरमी से सुधारे गये, फिर भी वे इस परीक्षा द्वारा अधर्मियों की घोर यन्त्रणा समझ गये, जब उन को क्रोध में दण्ड दिया गया था।

10) तूने अपनी प्रजा के साथ पिता का-सा व्यवहार किया, जो उसकी परीक्षा लेता और चेतावनी देता है; किन्तु दूसरों के साथ तूने कठोर राजा की तरह जाँच करने के बाद उन्हें दण्ड दिया।

11) वे तेरी प्रजा से दूर या निकट रहते, समान रूप से उत्पीड़ित किये जाते थे।

12) वे बीती घटनाओं की याद करते हुए विलाप करते थे। उन्हें दोहरा दुःख भोगना पड़ा:

13) क्योंकि जब उन्होंने सुना कि जिसके द्वारा उन्हें दण्ड दिया गया, वही इस्राएलियों के लिए कल्याण का कारण बना, तो वे समझ गये कि उस में प्रभु का हाथ है।

14) उन्होंने जिस व्यक्ति को पहले फिंकवाया और उपहास करते हुए अस्वीकार किया था, उसने ही बाद में उन्हें आश्चर्यचकित किया; क्योंकि उनकी प्यास धर्मियों की प्यास जैसी नहीं थी।

15) उनके अधर्म के मूर्ख विचारों के दण्ड स्वरूप, जिन से प्रेरित हो कर वे भटक कर गूँगे साँपों और तुच्छ पशुओं की पूजा करते थे, तूने उनके यहाँ गूँगे पशुओें को भारी संख्या में भेज दिया,

16) जिससे वे समझे कि कोई जिसके द्वारा पाप करता है, उसी के द्वारा उसे यन्त्रणा दी जाती है।

17) तेरी सर्वशक्तिमान् भुजा, जिसने निराकार पदार्थ से संसार की सृष्टि की थी, उन पर भालुओं या हिंसक सिंहों के झुण्ड या नये सृष्टि किये हुए और क्रोध से भरे ऐेसे अपूर्व पशु छोड़ने में असमर्थ नहीं थी, जो या तो आग उगलते, या गरजता हुआ धुँआ फैलाते या अपनी आँखों से भयंकर चिनगारियाँ निकालते थे।

18) ऐसे पशु, जिनके प्रहार से उनका विनाश हो जाता,

19) बल्कि जिन्हें देखने मात्र से आतंक के मारे उनकी मृत्यु हो जाती।

20) यद्यपि इन सब के अभाव में वे तेरे दण्ड के शिकार बन कर या तेरी शक्तिशाली आत्मा द्वारा छिन्न-भिन्न हो कर तेरे श्वास मात्र द्वारा मारे जा सकते थे।

21) तेरी सर्वशक्तिमत्ता सदा तेरे पास रहती है, कौन तेरे भुजबल के सामने टिक सकता है?

22) प्रभु! तेरी दृष्टि में समस्त संसार तराजू के पासंग के बराबर है अथवा प्रातःकाल भूमि पर गिरने वाली ओस की बूँद की तरह।

23) तू सब पर दया करता है, क्योंकि तू सर्वशक्तिमान् है। तू मनुष्य के पापों को इसलिए अनदेखा करता है, कि वह पश्चात्ताप करें।

24) तू सब प्राणियों को प्यार करता है और अपनी बनायी हुई किसी वस्तु से घृणा नहीं करता। यदि तुझे किसी वस्तु से घृणा हुई होती तो तूने उसे नहीं बनाया होता।

25) यदि तू उसे नहीं चाहता, तो कुछ भी अस्तित्व में नहीं बना रहता; यदि तूने उसे नहीं बुलाया होता, तो कुछ भी सुरक्षित नहीं रहता।

26) प्रभु! तू सारी सृष्टि की रक्षा करता है, क्योंकि वह तेरी है। तू सब प्राणियों को प्यार करता है;



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