1) धर्मियों की आत्माएँ ईश्वर के हाथ में हैं। उन्हें कभी कोई कष्ट नहीं होगा।
2) मूर्ख लोगों को लगा कि वे मर गये हैं। वे उनका संसार से उठ जाना घोर विपत्ति मानते थे।
3) और यह समझते थे कि हमारे बीच से चले जाने के बाद उनका सर्वनाश हो गया है; किन्तु धर्मियों को शान्ति का निवास मिला है।
4) मनुष्यों को लगा कि विधर्मियों को दण्ड मिल रहा है, किन्तु वे अमरत्व की आशा करते थे।
5 थोड़ा कष्ट सहने के बाद उन्हें महान् पुरस्कार दिया जायेगा। ईश्वर ने उनकी परीक्षा ली और उन्हें अपने योग्य पाया है।
6) ईश्वर ने घरिया में सोने की तरह उन्हें परखा और होम-बलि की तरह उन्हें स्वीकार किया।
7) ईश्वर के आगमन के दिन वे ठूँठी के खेत में धधकती चिनगारियों की तरह चमकेंगे।
8) वे राष्ट्रों का शासन करेंगे; वे देशों पर राज्य करेंगे, किन्तु प्रभु सदा-सर्वदा उनका राजा बना रहेगा।
9) जो ईश्वर पर भरोसा रखते हैं, वे सत्य को जान जायेंगे; जो प्रेम में दृढ़ रहते हैं, वे उसके पास रहेंगे; क्योंकि जिन्हें ईश्वर ने चुना है, वे कृपा तथा दया प्राप्त करेंगे।
10) किन्तु अधर्मियों को उनके विचारों के योग्य दण्ड दिया जायेगा; क्योंकि उन्होंने धर्मी का तिरस्कार और प्रभु का परित्याग किया।
11) जो प्रज्ञा और अनुशासन को तुच्छ समझते, वे अभागे हैं; उनकी आशा निराधार है, उनका परिश्रम व्यर्थ है और उनके कार्य निष्फल है।
12) उनकी पत्नियाँ मूर्ख, उनके बच्चे दुष्ट, उनके वंशज अभिशप्त हैं।
13) धन्य है बाँझ स्त्री, जो अशुद्ध नहीं हुई, जिसने व्यभिचार नहीं किया! आत्माओं के विचार के दिन वह फलवती होगी।
14) धन्य है नपुंसक, जिसके हाथ ने बुराई नहीं की, जिसने प्रभु के विरुद्ध दुष्ट विचार नहीं पाले! उसे अपनी ईमानदारी का विशिष्ट पुरस्कार और प्रभु के मन्दिर मेें सुखद भाग प्राप्त होगा;
15) क्योंकि भले कामों का फल महिमामय है और उनकी जड़, प्रज्ञा अविनश्वर है।
16) व्यभिचारियों की सन्तान प्रौढ़ता तक नहीं पहुँचेगी। अवैध संसर्ग से उत्पन्न वंशज नष्ट हो जायेंगे।
17) यदि उन्हें लम्बी आयु मिली, तो उन्हें सम्मान नहीं मिलेगा और वे अन्त तक, बुढ़ापे तक तिरस्कृत होंगे।
18) यदि वे शीघ्र ही मर जायेंगे, तो विचार के दिन उन्हें न आशा होगी और न सान्त्वना मिलेगी ;
19) क्योंकि दुष्ट वंश का अन्त दुःखद है।