1) उस समय धर्मी आत्मविश्वास के साथ उन लोगों के सामने खड़े हो जायेंगे, जो उन पर अत्याचार करते और उनके परिश्रम को तुच्छ समझते थे।
2) दुष्ट उसे देख आतंकित होकर काँपने लगेंगे और वे उसके अप्रत्याशित कल्याण पर आश्चर्यचकित होंगे।
3) वे मन-ही-मन पश्चात्ताप करेंगे और दुःखी होकर कराहते हुए कहेंगेः
4) "यह वही है, जिसकी हम हँसी उड़ाते थे, जिस पर हम ताना मारते थे। हम मूर्खतावष उसके जीवन को पागलपन और उसकी मृत्यु को अपमानजनक समझते थे।
5) वह ईश्वर के पुत्रों में कैसे सम्मिलित किया गया? वह कैसे सन्तों का सहभागी बना?
6) इसलिए हम सत्य के मार्ग से भटक गये, न्याय के प्रकाश ने हमें आलोकित नहीं किया और सूर्य हम पर उदित नहीं हुआ।
7) हम अन्याय और विनाश के पथ पर भटकते रहे, हमने मार्गहीन मरुभूमियों को पार किया, किन्तु हमें प्रभु के मार्ग का पता नहीं था।
8) घमण्ड से हमें क्या लाभ हुआ? जिस सम्पत्ति पर हमें गर्व था, उसने हमें क्या दिया?
9) यह सब छाया की तरह, उड़ती अफवाह की तरह बीत गया,
10) समुद्र की लहरों पर चलने वाले जहाज की तरह, जिसके पारगमन का कहीं निषान नहीं, जिसके पेंदे के मार्ग की कहीं खोज नहीं ;
11) या पक्षी की तरह, जो हवा में उड़ते हैं, जिसके मार्ग की कोई खोज नहीं। वह हवा में पंख फड़फड़ाता और उसे अपने पंखों की पूरी शक्ति से चीरता, किन्तु बाद में वहाँ उसकी उड़ान का कोई निषान नहीं,
12) या बाण की तरह, जो निषाने पर चलाया जाता है। हवा उस से चिर जाती, किन्तु वह तुरन्त जुड़ जाती है। जिससे उसके मार्ग का कोई पता नहीं चलता।
13) इसी तरह हम जन्म के बाद तुरन्त लुप्त हो गये और अपने सद्गुणांें को कोई चिह्न नहीं दिखा सके। हम अपने दुर्गुणों द्वारा समाप्त हो गये।"
14) सच! दुष्ट की आशा भूसी-जैसी है, जो पवन द्वारा उड़ायी जाती है ; हलके फेन-जैसी है, जो आँधी द्वारा छितराया जाता है; धुएँ-जैसी है, जिसे पवन उड़ा ले जाता है; एक दिन के मेहमान-जैसी है, जिसे कोई याद नहीं करता।
15) किन्तु धर्मी सदा के लिए जीवित रहेंगे। उनका पुरस्कार प्रभु के हाथ में है और सर्वोच्च ईश्वर उनकी देखरेख करता है।
16) वे प्रभु के हाथ से महिमामय राजत्व और भव्य मुकुट ग्रहण करेंगे; क्योंकि वह अपने दाहिने हाथ से और अपने भुजबल से उनकी रक्षा करेगा।
17) वह अपने धर्मोत्साह के शस्त्र पहनेगा और अपनी सृष्टि द्वारा अपने शत्रुओें को दण्डित करेगा।
18) वह न्याय का कवच धारण करेगा और अपरिवर्तनीय निर्णय का टोप पहनेगा।
19) वह अजेय पवित्रता की ढाल
20) और अनम्य क्रोध की तलवार धारण करेगा। समस्त सृष्टि उसके साथ मूर्खों के विरुद्ध युद्ध करेगी।
21) चढ़े हुए धनुष से जैसे बाण सीधे लक्ष्य पर लग जाते हैं, वैसे ही बादलों से बिजली निकलेगी।
22) उसका क्रोध गोफन की तरह भारी ओले बरसायेगा। समुद्र की लहरें उन पर आक्रमण करेंगी और नदियों की बाढ़ उन को ढ़क देगी।
23) घोर आँधी उन पर टूट पड़ेगी और बवण्डर उन्हें छितरा देगा। अराजकता पृथ्वी को उजाड़ कर देगी और कुकर्म शासकों के सिंहासन गिरायेंगे।