1) इसकी अपेक्षा सद्गुणी होकर निस्सन्तान रहना कहीं अच्छा है, क्योंकि सद्गुण की स्मृति बनी रहती है। ईश्वर और मनुष्य, दोनों उसका सम्मान करते हैं।
2) जब तक सद्गुण विद्यमान है, लोग उसका अनुसरण करते हैं। जब वह चला जाता है, तो लोग उसकी अभिलाषा करते हैं। परलोक में उसकी शोभा-यात्रा मनायी जाती है, जिसमें वह विजय का मुकुट पहन कर चलता है; क्योंकि उसे अविनाशी पुरस्कारों की प्रतियोगिता में सफलता मिली है।
3) किन्तु दुष्टों की बहुसंख्यक सन्तति व्यर्थ होगी। उनकी जारज सन्तान जड़ नहीं पकड़ेगी, उसे कोई सुदृढ़ आधार नहीं मिलेगा।
4) यदि उसकी शाखाओें में कुछ समय तक टहनियाँ फूटेगी, तो वे सुदृढ़ नहीं होंगी; हवा उन्हें झकझोर देगी और आँधी उन्हें उखाडे़गी।
5) उनकी अविकसित टहनियाँ टूट जायेगी, उनका फल बेकार होगा। वह इतना कच्चा होगा कि खाया नहीं जा सकता। वह किसी काम का नहीं होगा।
6) जाँच होने पर जारज सन्तान अपने माता-पिता की दुष्टता का साक्ष्य देती है।
7) यदि धर्मी मनुष्य असमय मर जाये, तो वह शान्ति पायेगा,
8) क्योंकि जो वृद्धावस्था आदरणीय है, वह न तो लम्बी आयु पर निर्भर करती है और न केवल वर्षों की संख्या पर।
9) जो मनुष्य बुद्धिमान् है, उसी के बाल सफेद समझो और जिसका जीवन निर्दोष है, उसी को वयोवृद्ध मान लो।
10) ईश्वर उस पर प्रसन्न था और उसे प्यार करता था, इसलिए ईश्वर ने उसे पापियों के बीच में से उठा लिया।
11) वह इसीलिए उठा लिया गया कि कहीं उसकी बुद्धि का विकार न हो जाये और कपट उसकी आत्मा को नहीं बहकायें;
12) क्योंकि बुराई का सम्मोहन भलाई को धुँधलाता है और लालच की तीव्रता सरल हृदय को दूषित करती है।
13) वह थोड़े समय में पूर्ण कर लम्बी आयु तक पहुँच गया है।
14) उसकी आत्मा प्रभु को प्रिय थी, इसलिए प्रभु ने उसे शीघ्र ही चारों ओर की बुराई में से निकाल लिया है। लोग यह बात देख कर नहीं समझे।
15) वे यह नहीं जानते हैं, कि प्रभु अपने भक्तोंे की रक्षा करता है।
16) मरने वाला धर्मी जीवित रहने वाले दुष्ट को दोषी ठहराया है और शीघ्र पूर्णता प्राप्त करने वाला नवयुवक दुष्ट की लम्बी आयु पर दोष लगाता है।
17) लोग ज्ञानी की मृत्यु देखेंगे, किन्तु वे उसके विषय में ईश्वर का प्रयोजन नहीं समझेंगे और यह भी नहीं कि ईश्वर ने उसे क्यों सुरक्षित रखा।
18) वे यह देखेंगे और उसकी उपेक्षा करेंगे, किन्तु प्रभु उनका उपहास करेगा।
19) बाद में वे तिरस्कृत शव बनेंगे और मृतकों में सदा के लिए निन्दा के पात्र होंगे। प्रभु उन्हें टुकड़े-टुकड़े कर देगा और वे एक शब्द भी नहीं बोल पायेंगे। वह उन्हें उखाड़ कर फेंक देगा। उनका सर्वनाश किया जायेगा, उन्हें दुःख भोगना पड़ेगा और उनकी स्मृति तक शेष नहीं रहेगी।
20) जब उनके पापों का लेखा लगाया जायेगा, तो वे डरते-काँपते आयेंगे। उनके कुकर्म उनके सामने खड़े होकर उन पर दोष लगायेंगे।