📖 - मक्काबियों का दूसरा ग्रन्थ

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अध्याय 05

1) जब अन्तियोख दूसरी बार मिस्र पर आक्रमण करने की तैयारी कर रहा था,

2 (2-3) तो चालीस दिन तक पूरे नगर में लोगों को दिव्य दृश्य दिखाई पड़ेः सोने से कढे वस्त्र पहने और भाले लिये घुडसवारों के झुण्ड आकाश पार करते थे- कितनी ढाले, कितने बरछे, नंगी तलवारे, उडते हुए बाण, सोने के चमकदार कवच और हर प्रकार के बख्तर दिखाई पडे।

4) सब लोग प्रार्थना करते थे, जिससे वे लक्षण शुभ हों।

5) जब यह झूठा समाचार फैला कि अन्तियोख मर गया, तो यासोन ने एक हजार से कुछ अधिक लोगों को ले कर अचानक नगर का धावा बोल दिया। उसने दीवार पर तैनात सैनिको को भागने के लिए विवश किया और अंत में नगर पर उसका अधिकार हो गया। मनेलास ने गढ़ में शरण ली।

6) यासोन ने अपने सहनागरिकों में, बहुत लोगों का वध किया। वह यह नहीं समझ सका कि अपने ही लोगों पर विजय वास्तव में भारी पराजय है। ऐसा लगता था, मानो अपनी ही जाति उसका शत्रु है।

7) किंतु वह शासन पर अधिकार करने में असमर्थ रहा। अंत में उसे अपने विश्वासघात के कारण कलंकित हो कर फिर अम्मोनियों के देश भागना पड़ा।

8) उसका अंत बड़ा दुःखद रहा। अरबों के तानाशाह अरेतास के सामने उस पर आरोप लगाया गया और उसे एक नगर से दूसरे नगर भागना पड़ा। सब लोग उसके पीछे पड़ गये थे। वह घृणा और तिरस्कार का पात्र था, क्योंकि उसने विधि-निषेधों का उल्लंघन और अपने देश और अपने सहनागरिकों पर अत्याचार किया था। वह मिस्र भगा दिया गया।

9) जिस व्यक्ति ने अनेक लोगों को देश से निकाला था, वह स्वयं परदेश में मरा। वह यह सोच कर लकेदैमोनी लोगों के यहाँ गया था कि वे लोग उसके संबंधी होने के कारण उसे शरण देंगे।

10) उसने अनेक लोगों को बिना दफनाये ही छोड़ दिया था। अब वह स्वयं बिना दफनायें पड़ा रहा। न किसी ने उसके लिए शोक मनाया, न उसे दफनाया और न उसके पूर्वजों के समाधिस्थान में उसे जगह मिल सकी।

11) जब राजा को ये बातें मालूम हुई, तो उसे लगा कि यहूदियों ने विद्रोह कर दिया है। वह हिंसक पशु की तरह क्रोध के आवेश में आ कर मिस्र से लौट आया और उसने शस्त्रों के बल पर नगर अपने अधिकार में कर लिया।

12) उसने सैनिकों को आदेश दिया कि जो भी लोग मिलें या घरों के ऊपरी भाग में छिपे हुए हों, सब का निर्दयतापूर्वक वध किया जाये।

13) नवयुवकों और वृद्धों की हत्या की गयी। स्त्रियों, बच्चों, कन्याओं और दुधमुँहे शिशुओं का वध किया गया।

14) तीन ही दिन में अस्सी हजार लोग मर गये; चालीस हजार तलवार के घाट उतारे गये और उतने ही लोग दास के रूप में बेचे गये।

15) इस से भी राजा को संतोष नहीं हुआ। वह संसार भर के सब से पवित्र मंदिर मे घुुस आया। विधि-निषेधों और अपने देश का विश्वासघाती मनेलास उसके आगे चल रहा था।

16) उसने अपने अपवित्र हाथों से पवित्र पात्र और मनौती के वे उपहार छीन लिये, जिन से अन्य राजाओं और नगरों ने मंदिर की प्रतिष्ठा, शोभा और सम्मान बढाया था।

17) उसने अपने घमण्ड में यह नहीं सोचा कि प्रभु नगरवासियों के पापों के कारण थोड़े समय के लिए उनके प्रतिकूल हो गया था और केवल इसी कारण उस स्थान पर यह विपत्ति टूट पड़ी थी।

18) यदि नगरवासी असंख्य पापों में नहीं फंस गये होते, तो उसके साथ ठीक वैसा ही होता, जैसा हेल्योदोरस के साथ हुआ, जिसे सिलूकस ने कोष का निरीक्षण करने भेजा था। उसे मंदिर में प्रवेश करते ही दण्डित किया जाता और इस प्रकार उसका दुःसाहस का कार्य रोका जाता।

19) प्रभु ने उस स्थान के कारण अपनी प्रजा का चुनाव नहीं किया, बल्कि उसने वह स्थान अपनी प्रजा के कारण चुना है।

20) इसलिए उन स्थान को लोगों की विपत्तियों का सहभागी बनना पडा, जिस तरह वह बाद में उनके सौभाग्य का भागी बनने वाला था। सर्वशक्तिमान् के क्रोध के कारण अब उस स्थान का त्याग किया गया। किंतु सर्वोच्च प्रभु के क्रोध के शांत होने के बाद उसे फिर से प्रतिष्ठा प्राप्त होने वाली थी।

21) अंतियोख मंदिर से अठारह सौ मन चांदी ले कर अंतकिया लौटा। उसका अहंकार इतना बढ़ गया कि वह धरती पर नाव चलाने और समुद्र पर पैदल रास्ता बनाने की सोचने लगा।

22) उसने प्रस्थान करने से पहले यहूदियों को नियुक्त किया- येरूसालेम में फ़िलिप को, जो फ्रीजिया का था और जिसका दिल अपने मालिक से भी अधिक बर्बर था,

23) गरिज्ज़ीम पर अंद्रोनिकस को; इनके अतिरिक्त मनेलास को, जो इन से भी अधिक दुष्ट था और अपने सहनागरिकों पर रोब दिखाता था।

24) अंतियोख ने सेनापति अपल्लोनियस को बाईस हजार सैनिकों के साथ भेजा और उसे सभी वयस्क पुरुषों का वध करने और स्त्रियों तथा किशोरों को बेचने का आदेश दिया।

25) उसने येरूसालेम आ कर शांतिप्रिय व्यक्ति होने का स्वाँग रचा। वह पवित्र विश्राम-दिवस तक निष्क्रिय बैठा रहा और जिस दिन यहूदी विश्राम-दिवास मनाने लगे, उस दिन उसने अपने आदमियों को शस्त्रों से सुसज्जित हो कर कवायद करने को कहा।

26) जब लोग सैनिकों को देखने निकले, तो उसने उनका वध करने का आदेश दिया और इसके बाद उसने अपने सशस्त्र सैनिकों के साथ नगर में प्रवेश कर कितने ही लोगों को मार डाला।

27) इस पर यूदाह मक्काबी नौ आदमियों को साथ ले कर उजाडखण्ड की ओर भाग गया। वहाँ वह अपने साथियों के साथ पहाडियों पर जंगली जानवरों की तरह रहने लगा। वे अपवित्र होने के डर से केवल सब्जी खाते थे।



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