📖 - मक्काबियों का दूसरा ग्रन्थ

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अध्याय 03

1) पवित्र नगर में शांति का साम्र्राज्य था और जनता विधि-निषेधों का अच्छी तरह पालन करती थी; क्योंकि प्रधानयाजक ईश्वरभक्त था और बुराई से घृणा करता था।

2) राजा लोग भी पवित्रस्थान का सम्मान करते थे और मंदिर को बहुमूल्य उपहार चढ़ाते थे।

3) एशिया को राजा सिलूकस तो अपनी व्यक्तिगत संपत्ति से मंदिर के बलिदानों का आवश्यक खर्च देता था।

4) किंतु बिलगावंशी सिमोन नामक एक व्यक्ति मंदिर का प्रबंधक नियुक्त किया गया। नगर के बाजारों के निरीक्षण के विषय में उसका प्रधानयाजक से मतभेद हो गया।

5) जब वह ओनियस को प्रभावित नहीं कर सका, तो थरसूस के पुत्र अपल्लोनियस के पास गया जो उस समय केलेसीरिया और फे़नीके का शासक था।

6) सिमोन ने उसे यह बताया कि येरूसालेम के कोषागार में इतनी संपत्ति भरी है कि उसका कुल जोड़ निकालना असंभव है और बलिदानों के खर्च से उसकी कोई तुलना नहीं है। उसने यह भी कहा कि वह संपत्ति राजा को दिलायी जा सकती थी।

7) जब अपल्लोनियस राजा से मिला, तो कोष के संबंध में उसे जो कुछ बताया गया था, उसने वह सब राजा से कहा। राजा ने अपने प्रधान मंत्री हेल्यादोरस को बुला कर उसे आज्ञा दी कि वह वहाँ जा कर वह सम्पत्ति जब्त करें।

8) हेल्योदोरस तुरंत चल पडा। उसने यह बहाना किया कि वह केले-सीरिया और फेनीके के नगरों के दौरे पर जा रहा है, लेकिन सच तो यह था कि वह राजा का उद्देश्य पूरा करने गया।

9) जब वह येरूसालेम पहुँचा तो नगर के प्रधानयाजक ने सद्भाव से उसका स्वागत किया। हेल्योदोरस ने बतलाया कि उसने क्या सुना और यह भी स्पष्ट किया कि वह क्यों आया है। उसने पूछा कि सुनी हुई बात कहाँ तक सच है।

10) प्रधानयाजक ने उसे बतलाया कि यह कोष विधवाओं और अनाथों का है

11) और इसका कुछ भाग टोबीयाह के पुत्र हिर्कानस का है, जो एक बड़ा पदाधिकारी है। बात वैसी नहीं है, जैसी विधर्मी सिमोन ने बतायी है। कोष मे कुल मिला कर सौ मन चाँदी और दो सौ मन सोना है।

12) यह भी असंभव था कि उन लोगों का रूपया ले लिया जाये, जिन्होंने इस स्थान की पवित्रता और संसार भर में प्रसिद्ध मंदिर की परमपावन, अनुल्लंघनीयता पर विश्वास किया था।

13) किंतु हेल्योदोरस ने राजा का आदेश दृष्टि में रख कर इस बात पर बल दिया कि वह सम्पत्ति राजकोष में रखी जानी चाहिए।

14) उसने मंदिर में प्रवेश करने और कोष के निरीक्षण के लिए जो दान निश्चित किया, उसने उसी दिन मंदिर में प्रवेश किया। इस पर सारा नगर भयभीत हो उठा।

15) याजक अपने याजकीय वस्त्र धारण कर और मुँह के बल गिर कर ईश्वर से, जिसने मंदिर में रखी हुई संपत्ति के विषय में नियम बनाया था, यह प्रार्थना करते थे कि वह उन लोगों की संपत्ति की रक्षा करे, जिन्होंने उसे मंदिर में रखवाया था।

16) प्रधानयाजक को देख कर कोई भी व्यक्ति अप्रभावित नहीं रह सकता था। उसके चेहरे को मनोभाव और पीला रंग उसकी आत्मा का दुःख व्यक्त करता था।

17) वह अत्यंत भयभीत था और उसका सारा शरीर इस प्रकार काँप रहा था कि जो भी उसे देखता, वह समझ जाता कि उसके हृदय में कितनी तीव्र वेदना है।

18) लोग बड़ी संख्या में अपने घरों से निकल कर सामूहिक प्रार्थना में सम्मिलित हो जाते थे, जिससे मंदिर का अपवित्रीकरण नहीं हो पाये।

19) स्त्रियाँ छाती के नीचे टाट के कपडे पहन कर गलियों में एकत्र हो जाती थीं। लडकियाँ, जो प्रायः घर के अन्दर रहती थीं, अब झुण्ड बना कर मंदिर के फाटकों या दीवारों की ओर दौड़ती या खिडकियों से बाहर देखती थीं।

20) सभी स्वर्ग की ओर हाथ पसार कर प्रार्थना करती थीं।

21) यह दृश्य कितना करूणाजनक था-सभी लोग मुँह के बल गिर कर प्रार्थना करते थे और प्रधानयाजक भावी अनिष्ट की आशंका से अत्यंत व्याकुल था।

22) जिस समय सभी प्रार्थना कर रहे थे कि प्रभु उन लोगों की संपत्ति की पूरी-पूरी रक्षा करें, जिन्होंने उसे मंदिर में रखवाया था,

23) उस समय हेल्योदोरस ने अपना संकल्प पूरा किया।

24) जब वह अपने अंगरक्षकों के साथ कोष के पास पहुँचा, तो आत्माओं का सर्वशक्मिान् प्रभु उसके सामने महिमा के साथ प्रकट हुआ कि जितने लोगों ने मंदिर में प्रवेश करने का साहस किया था वे सभी ईश्वरीय तेज के सामने अशक्त और निरुत्साह हो गये।

25) उन्हें सुसज्जित घोड़े पर एक भयानक आकार वाला घुड़सवार दिखाई पड़ा। वह घोडा हेल्योदोरस पर टूट पड़ा और उसने उस पर अपनी अगली टापों से प्रहार किया। घुड़सवार सोने का कवच पहने था।

26) भडकीले वस्त्र पहने दो अत्यंत बलवान् और सर्वांगसुंदर नवयुवक दिखाई पड़े। वे हेल्योदोरस के दोनों ओर खडे हो कर उस निरंतर कोडे़ लगाते हुए मारते थे।

27) हेल्योदोरस अचानक जमीन पर गिर पड़ा। उसकी आँखों के सामने गहरा अंधकार छा गया। तब उसे उठा कर एक तख्ते पर रखा गया।

28) वह, जो दलबल और अंगरक्षकों के साथ उपर्युक्त कोष के पास पहुँचा था, अब अशक्त हो कर बाहर ले जाया जा रहा था। उसने ईश्वरीय सामर्थ्य का अनुभव किया।

29) वह ईश्वरीय सामर्थ्य के प्रभाव के कारण बोलने में असमर्थ हो कर पड़ा रहा और उसके बचने की कोई आशा नहीं थी।

30) उधर लोगों ने ईश्वर को धन्यवाद दिया, जिसने अपने मंदिर की महिमा की रक्षा की थी। वह मंदिर, जो अभी-अभी भय और आतंक से आच्छादित था, अब हर्ष और उल्लास से गूंज उठा, क्योंकि सर्वशक्मिान् प्रभु वहाँ दिखाई पड़ा था।

31) हेल्योदोरस के कुछ साथियों ने ओनियस से तुरंत यह निवेदन किया कि वह सर्चोच्च प्रभु से प्रार्थन करे, जिससे वह मरणासन्न हेल्योदोरस को जीवन प्रदान करे।

32) राजा कहीं यह न सोचे कि यहूदियों ने हेल्योदोरस को छल-कपट से मारा है, इसलिए प्रधानयाजक ने उसकी प्राणरक्षा के लिए बलिदान चढ़ाया।

33) प्रधानयाजक अभी प्रायश्चित-बलि चढ़ा ही रहा था कि उसी समय हेल्योदोरस को वे दोनों नवयुवक वही वस्त्र पहने दिखाई पडे़। "तुम्हें प्रधानयाजक ओनियस को बहुत धन्यवाद देना चाहिए, क्योंकि उनकी प्रार्थना के कारण प्रभु ने तुम को जीवन प्रदान किया है।

34) ईश्वर ने तुम का दण्ड दिया, इसलिए तुम को सब के सामने ईश्वरीय सामर्थ्य की महिमा घोषित करनी चाहिए।" इतना कह कर वे अंतर्धान हो गये।

35) हेल्योदोरस ने भी प्रभु को बलिदान चढ़ाया और उसके लिए बड़ी मन्नतें मानीं, क्योंकि उसने उसे जीवित रहने दिया। इसके बाद उसने ओनियस से विदा ली और अपनी सेना के साथ राजा के पास लौटा।

36) उसने सब के सामने सर्वोच्च प्रभु के उन चमत्कारों का साक्ष्य दिया, जिन्हें उसने अपनी आँखों से देखा था।

37) जब राजा ने हेल्योदोरस से पूछा कि अब किसे येरूसालेम भेजा जाना चाहिए, तो उसने उत्तर दिया,

38) "यदि कोई आपका शत्रु या राजद्रोही हो, तो उसे वहाँ भेजिए। यदि वह जीवित रह गया, तो वह कोडे खाने के बाद आपके पास लौटेगा; क्योंकि एक दिव्य शक्ति वहाँ निवास करती है।

39) जो स्वर्ग में विराजमान है, वह उस स्थान की रक्षा करता और उसे सहायता देता है। जो उसे हानि पहुँचाने आते हैं, वह उन पर प्रहार करता और उसका विनाश करता है।"

40) यह हेल्योदोरसस और कोष की रक्षा का वृतांत है।



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