1) तब योहन गेजेर से अपने पिता सिमोन के पास गया और उसे कन्देबैयस के आंतक के विषय में बतलाया।
2) सिमोन ने अपने दो बड़े पुत्र यूदाह और योहन से कहा, "मैं, मेरे भाई और मेरे कुटुम्बी अपने बचपन से आज तक इस्राएल के लिए लड़ते आये हैं। न जाने कितनी बार हमारे हाथों ने इस्राएल की रक्षा की है।
3) अब मैं वृद्ध हो चला हूँ, लेकिन तुम प्रभु की दया से युद्ध करने योग्य हो गये हो। तुम मेरी तथा मेरे भाई की जगर हमारे राष्ट्र के लिए लड़ने जाओ। प्रभु की सहायता तुम्हारे साथ हो।"
4) उसने देश से बीस हजार सैनिक और घुड़सवार चुने और वे कन्देबैयस के विरुद्ध युद्ध करने चले। उन्होंने मोदीन में रात बितायी।
5) फिर वे भोर को मैदान की ओर आगे बढे। वहाँ उन्होंने यह देखा कि घुडसवारों और पैदल सैनिकों की एक विशाल सेना उनके सामने है। दोनों के बीच एक नदी थी।
6) योहन ने अपने आदमियों के साथ शत्रुओं के सामने पड़ाव डाला। जब उसे पता चला कि उसके आदमी नदी पार करने से डर रहे हैं, तो उसने सब से पहले नदी पार की। यह देखकर उसके सैनिक भी उसके बाद पार हुए।
7) उसने अपनी सेना को दो दलों में बाँट दिया और पैदल सैनिकों के बीच घुड़सवार रखे; क्योंकि शत्रुओं के घुडसवारों की संख्या बहुत बडी थी।
8) तुरहियाँ बज उठीं। कन्देबैयस और उसकी सेना भाग निकली। उसके कितने ही लोग मारे गये और जो बच गये, उन्होंने भाग कर गढ में शरण ली।
9) उस समय योहन का भाई यूदाह घायल हो गया; किंतु योहन ने शत्रुओं को केद्रोन तक खदेड़ दिया, जिसका कन्देबैयस ने पुनर्निर्माण किया था।
10) भागने वालों ने अज़ोत के मैदान के बुर्जों में शरण ली। योहन ने नगर को जला दिया। शत्रुओं में लगभग दो हजार मारे गये। योहान सकुशल यहूदिया लौट आया।
11) अबूबस का पुत्र पतोलेमेउस येरीखो के मैैदान की सेना का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
12) उसके पास बहुत चाँदी-सोना था, क्योंकि वह प्रधानयाजक का दामाद था।
13) वह घमण्डी हो गया और देश पर अधिकार करने की सोचने लगा। उसने सिमोन और उसके पुत्रों का वध करने की कपटपूर्ण योजना बनायी।
14) सिमोन प्रशासक के रूप में देश के नगरों को भ्रमण करता था। एक सौ सत्तरवें वर्ष के शबाट महीने में वह, उसके पुत्र मत्तथ्या और यूदाह येरीखो़ आये।
15) अबूबस के पुत्र ने अपने बनवाये दोक नामक छोटे गढ़ में उनका कपटपूर्ण स्वागत-सत्कार किया। उसने उन्हें दावत दी और पास ही सैनिकों को छिपा रखा।
16) जब सिमोन और उसके पुत्र पी चुके, तो पतोलेमेउस और उसके आदमी उठे और हथियार लिये भोज-गृह में घुस आये। वे सिमोन पर टूट पडे और उसे, उसने दो पुत्रों तथा उनके साथियों में अनेक का वध किया।
17) इस प्रकार उसने भलाई का बदला बुराई से चुका कर घोर विश्वासघात किया
18) इसके बाद पतोलेमेउस ने इस विषय में राजा को लिखित विवरण भेजा और निवेदन किया कि वह उसकी सहायता के लिए सैनिक भेजे, जिससे वह नगरों के साथ देश को राजा के हाथ दे सके।
19) उसने कुछ अन्य लोगों को गेजेर भेजा, जिससे वे योहन को समाप्त करें। उसने सेनापतियों के नाम पत्र भेज कर उन्हें अपने यहाँ आने का निमंत्रण दिया, जिससे वह उन्हें चाँदी, सोना और उपहार दे।
20) उसने अन्य लोगों को येरूसालेम और मंदिर के पर्वत पर अधिकार करने भेजा।
21) किंतु उन में एक आदमी आगे दौड़ कर गेजेर में योहन के पास यह संदेश लाया कि उसके पिता और उसके भाई मार डाले गये हैं और उसे सावधान किया कि पतोलेमेउस ने आपका भी वध करने आदमी भेजे हैं।
22) यह सुन कर योहन भयभीत हो उठा और उन आदमियों को पकडवाया और मरवा डाला, जो उसका वध करने आये थे; क्योंकि उसे मालूम हो गया था कि वे उसकी हत्या करने आये थे।
23) योहन का शेष इतिहास-उसकी लडाईयों, उसकी वीरता, उसके द्वारा दीवारों का निर्माण और उसके अन्य कार्यों का वर्णन यह सब,
24) उन दिन से ले कर जब वह अपने पिता के स्थान पर प्रधानयाजक बना, प्रधानयाजकों के इतिहास-ग्रंथ में लिखा है।