📖 - मक्काबियों का पहला ग्रन्थ

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अध्याय 02

1) उन्हीं दिनों योहन के पुत्र सिमओन के पौत्र मत्तथ्या का उदय हुआ, जाा योयारीब के वंश का याजक था। वह था तो येरूसालेम का, किंतु मोदीन में बस गया था।

2) उसके पाँच पुत्र थे योहन, जो गद्दी कहलाता था;

3) सिमोन, जो थास्सी कहलाता था;

4) यूदाह जो मक्काबी कहलाता था;

5) एलआज़ार, जो अव कहलाता था और योनातान, जो अफूस कहलाता था।

6) जब मत्तथ्या ने यूदा और येरूसालेम में होने वाली ये घृणित बातें देखी,

7) तो उसने कहा, धिक्कार है मुझे! क्या मेरा जन्म इसीलिए हुआ कि मैं अपनी जाति का नाश और पवित्र नगर का पतन देखूँ और जब नगर शत्रुओं के हाथ में आ गया और पवित्र-स्थान विदेशियों के पंजे पड़ गया, तब भी हाथ-पर-हाथ धरे बैठा रहूँ?

8) उसका मंदिर उस व्यक्ति के समान हो गया है, जिसकी प्रतिष्ठा छिन गयी है।

9) उसके महिमामय पात्र लूट लिये गये, उसके बच्चों की हत्या उसकी गलियों में की गयी है, उसके युवक और युवतियाँ तलवार के घाटे उतारे गये हैं।

10) ऐसा राष्ट्र कौन हैं, जिसने उसके राजकीय वैभव का कुछ लिया न हो और उस से कुछ लूटा न हो?

11) उसकी सारी शोभा, उस से छीन ली गयी। जो स्वतंत्र थी, अब दासी बन गयी।

12) हमारा मंदिर, हमारा सौन्दर्य और हमारी महिमा नष्ट हो गयी है। गैर-यहूदियों ने उसे अपवित्र किया।

13) तो हमें जीवन से क्या?"

14) तब मत्तथ्या और उसके पुत्रों ने अपने वस्त्र फाड़े और टाट पहन कर भारी विलाप किया।

15) राजा के पदाधिकारी, जो लोगों को स्वधर्मत्याग के लिए बाध्य करते थे, बलिदानों का प्रबंध करने मोदीन नामक नगर पहुँचे।

16) बहुत-से इस्राएली उन से मिल गये किंतु मत्तथ्या और उसके पुत्र अलग रहे।

17) राजा के पदाधिकारो ने मत्तथ्या को सम्बोधित करते हुए कहा, "आप इस नगर के प्रतिष्ठित और शक्तिशाली नेता हैं। आप को अपने पुत्रों और भाइयों का समर्थन प्राप्त हैं।

18) आप सर्वप्रथम आगे बढ़ कर राजाज्ञा का पालन कीजिए, जैसा कि सभी राष्ट्र, यूदा के लोग और येरूसालेम के निवासी कर चुके हैं। ऐसा करने पर आपके पुत्र राजा के मित्र बनेंगे और सोना चाँदी और बहुत-से उपहारों द्वारा आपका और आपके पुत्रों का सम्मान किया जायेगा।"

19) मत्तथ्या ने पुकार कर यह उत्तर दिया, "साम्राज्य के सभी राष्ट्र भले ही राजा की बात मान जायें, सभी आपने पुरखों का धर्म छोड़ दें और राजा के आदेशों का पालन करें,

20) किंतु मैं, मेरे पुत्र और मेरे भाई-हम अपने पुरखों के विधान के अनुसार ही चलेंगे।

21) ईश्वर हमारी रक्षा करे, जिससे हम उसकी संहिता और उसके नियमों का परित्याग न करें।

22) हम राजा की आज्ञाओं का पालन नहीं करेंगे और अपने धर्म का किसी भी प्रकार से उल्लंघन नहीं करेंगे।

23) मत्तथ्या ने इन शब्दों के तुरंत बाद एक यहूदी राजा के आदेशानुसार मोदीन की वेदी पर बलि चढ़ाने के लिए सब के देखते आगे बढा।

24) इस पर मत्तथ्या का धर्मोत्साह भड़क उठा और वह आगबबूला हो गया। उसने क्रोध के आवेग में आगे झपट कर उस यहूदी को वेदी पर मार डाला।

25) उसने बलि के लिए लोगों को बाध्य करने वाले पदाधिकारी का वध किया और वेदी का विध्वंस किया।

26) इस प्रकार मत्तथ्या ने पीनहास के सदृश संहिता के प्रति अपना उत्साह प्रदर्शित किया- पीनहास ने इसी तरह सालू के पुत्र ज़िम्री का वध किया था।

27) इसके बाद मत्तथ्या ने नगर भर में घूमते हुए ऊँचे स्वर से पुकार कर यह कहा, "जो संहिता के प्रति उत्साही हैं। और विधान को बनाये रखने के पक्ष में हैं, वे मेरे पीछे चले आयें"।

28) इसके बाद वह और उसके पुत्र नगर में अपनी सारी संपत्ति छोड़ कर पहाड़ों पर भाग गये।

29) उस समय बहुत-से लोग, जिन्हें धर्म और न्याय प्रिय था, उजाड़ प्रदेश जा कर वहाँ बस गये।

30) वे अपने बच्चों, पत्नियों और पशुओं को भी साथ लेते गये; क्योंकि वे अत्याचार के बोझ से दबे जा रहे थे।

31) येरूसालेम के दाऊदनगर में रहने वाले राजकीय पदाधिकारियों और सेना को यह बात बतलायी गयी कि कुछ लोगों ने राजाज्ञा अवहेलना कर उजाड़खण्ड के गुप्त स्थानों में शरण ली है,

32) तो उन में एक बड़ा दल पीछा करने निकला और उनके पास पहुँच कर उनके सामने पडाव डाला उन्होंने विश्राम के दिन उन पर आक्रमण किया।

33) उन्होंने उन से कहा, "बहुत हुआ। निकलों और राजा की आज्ञा मानो, तभी जीवित रह सकोगे।"

34) उन्होंने उत्तर दिया, "हम नहीं निकलेगे। हम न तो राजा की आज्ञा मानेंगे और न विश्राम-दिवस को अपवित्र करेंगे।"

35) तब उस दल ने उन पर आक्रमण कर दिया; किंतु उन्होंने उनका सामना नहीं किया।

36) उन्होंने न उस पर पत्थर मारे और न छिपने के स्थान बंद किये;

37) क्योंकि उनका कहना था, "हम सब निर्दोष मरना चाहते हैं। आकाश और पृथ्वी साक्षी है कि तुम हमें अन्याय से मार रहे हो।"

38) उस दल ने विश्राम के दिन उन पर आक्रमण किया और वे, उनकी पत्नियाँ, उनके बच्चे और उनके पशु-सभी मार डाले गये। प्रायः एक हजार लोग मारे गये।

39) जब मत्तथ्या और उसके मित्रों को इस बात का पता चला, तो उन्होंने उनके लिए विलाप किया।

40) वे एक दूसरे से कहने लगे, "यदि हम भी वैसा ही करेंगे, जैसा हमारे भाइयों ने किया; यदि हम अपने प्राणों और रीति रिवाजों के लिए गैर-यहूदियों से नहीं लड़ते, तो पृथ्वीतल से हमारा सर्वनाश शीघ्र हो जायेगा"।

41) इसलिए उस दिन उन्होंने यह निश्चय किया: "यदि कोई विश्राम के दिन हम पर चढाई करेगा, तो हम उस दिन भी उसका सामना करेंगे, जिससे हम सब की मृत्यु न हो, जैसे हमारे भाइयों की मृत्यु उजाड़खण्ड में हुई थीं।

42) उसी समय हसीदियों का समुदाय भी उन में आ मिला। वे इस्राएल के वीर पुरुष थे और सब संहिता के उत्साही अनुगामी थे।

43) जो लोग भीषण अत्याचार के कारण भाग गये, वे उनसे मिले और इस प्रकार उनका सामर्थ्य बढता रहा। उन्होंने एक सेना का संगठन किया।

44) उन्होंने क्रुद्ध होकर अपने धर्मोत्साह में पापियों और दुष्टों का वध किया। जो शेष रह गये, उन्होंने अपनी प्राण-रक्षा के लिए गैर-यहूदियों की शरण ली।

45) मत्तथ्या और उसके मित्र इधर-उधर घूम-घूम कर वेदियों को ढाहने लगे।

46) और इस्राएल की सीमा में जो भी शिशु ऐसा मिलता, जिसका खतना नहीं हुआ था, उसका बलपूर्वक खतना नहीं हुआ था, उसका बलपूर्वक खतना कराते थे।

47) उन्होंने अहंकारियों को भगा दिया और वे अपना उद्देश्य पूरा करने में सफल हुए।

48) उन्होंने राष्ट्रों और राजाओं से संहिता की रक्षा की और पापी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया।

49) जब मत्तथ्या की मृत्यु का समय निकट आया, तो उसने पुत्रों से कहा, "इन दिनों घमण्ड तथा अवज्ञा का बोलबाला है। यह विपत्ति तथा भीषण प्रकोप का समय है।

50) मेरे पुत्रों! तुम संहिता के पालन में उत्साह दिखाओ और अपने पूर्वजों के विधान के लिए अपने प्राण अर्पित करो।

51) याद रखों कि उन्होंने अपने समय में क्या-क्या किया था और तुम्हें बड़ी प्रतिष्ठा तथा अमर यश मिलेगा।

52) क्या इब्राहीम परीक्षा के समय दृढ़ नहीं रहे और इस कारण वह धार्मिक नहीं माने गये?

53) यूसुफ ने विपत्ति में नियम का पालन किया और वह मिस्र के शासक बन गये।

54) हमारे पूर्वज पीनहास में ईश्वर के प्रति उत्साह था और इसलिए यह विधान निर्धारित किया गया कि उन्हें और उनके वंशजों को सदा याजकपद प्राप्त होगा।

55) योशुआ ने आदेशों का पालन किया और इसलिए वह इस्राएल के न्यायाधीश हो गये।

56) कालेब ने सभा में सच्चा साक्ष्य दिया और उन्हें दायभाग मिला।

57) दाऊद निष्ठावान् थे और उन्हें एक चिरस्थायी राज्य का सिंहासन प्राप्त हुआ।

58) संहिता के लिए एलियाह का उत्साह कभी मंद नहीं हुआ और वह स्वर्ग में आरोहित कर लिये गये।

59) हनन्या, अजर्या और मीशाएल अपने विश्वास के कारण जलती हुए भट्टी से बच निकले।

60) दानिएल निर्दोष थे और सिंहों के जबड़ों से बच निकले।

61) इस प्रकार सब पीढ़ियों पर विचार कर देख लो कि जो उस पर भरोसा रखते हैं, वे विचलित नहीं होते।

62) पापी मनुष्य की धमकियों से मत डरो, क्योंकि उसका वैभव घूरे और कीड़ों के लिए है।

63) वह आज प्रतिष्ठित हैं, किंतु कल उसका कहीं पता नहीं चलेगा; क्योंकि जहाँ से वह आया था, उसी धूल में वह मिल गया है और उसकी सब योजनाएँ व्यर्थ हो जायेंगी।

64) मेरे पुत्रो! तुम संहिता की रक्षा में साहसी और दृढ़ रहो, क्योंकि वह तुम्हें महिमा प्रदान करेगी।

65) देखो, मैं जानता हूँ कि तुम्हारा भाई सिमोन बुद्धिमान है। तुम सदा उसकी मानों, वही तुम्हारा पिता होगा।

66) यूदाह मक्काबी बचपन से ही शारीरिक शक्ति में सब से बढकर है, वही तुम्हारा सेनापति होगा और वह जनता के लिए युद्ध करेगा।

67) तुम उन सब को अपने पास एकत्र करो, जो संहिता का पालन करते हैं और अपनी जाति का बदला चुकाओं।

68) तुम गैर-यहूदियों को जैसे को तैसा दण्ड दो और संहिता को पालन करो।

69) इसके बाद उसने उन्हें आशीर्वाद दिया और वह अपने पूर्वजों से जा मिला। उसकी मृत्यु एक सौ छियालीसवें वर्ष हुई।

70) उसे उसके पूर्वजों के मोदीन-अवस्थित समाधिस्थान में दफनाया गया। सारे इस्राएल ने उसकी मृत्यु पर बड़ा शोक मनाया।



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