📖 - सूक्ति ग्रन्थ

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अध्याय 26

1) मूर्ख का आदर करना उचित नहीं; यह गर्मी में बर्फ या बरसात में वर्षा के सदृश है।

2) जिस प्रकार फुदकती गौरैया या उड़ती अबाबील कहीं नहीं रूकती, उसी प्रकार अकारण अभिशाप किसी को नहीं लगता।

3) घोड़े के लिए चाबुक, गधे के लिए लगाम और मूर्ख की पीठ पर लाठी!

4) मूर्ख की मूर्खता के अनुसार उत्तर मत दो, नहीं तो तुम उसके सदृश बन जाओगे।

5) मूर्ख की मूर्खता के अनुसार उत्तर दो, जिससे वह अपनी दृष्टि में समझदार न बने।

6) जो मूर्ख द्वारा सन्देश भेजता, वह अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारता और अपने पर विपत्ति बुलाता है।

7) मूर्खों के मुँह में सूक्ति पंगु के लँगड़ाते पैर-जैसी है।

8) मूर्ख का सम्मान करना गोफन में पत्थर बाँधने के समान है।

9) मूर्खों के मुँह में सूक्ति शराबी के हाथ में कँटीली डाल जैसी है।

10) जो मूर्ख या अपरिचित व्यक्ति को काम पर लगाता, वह यों ही घायल करने वाले तीरन्दाज़ जैसा है।

11) जो मूर्ख बार-बार मूर्खतापूर्ण काम करता, वह अपने ही वमन के पास लौटने वाले कुत्ते जैसा है।

12) जो व्यक्ति अपने को बुद्धिमान् समझता उसकी अपेक्षा मूर्ख के सुधार की आशा कहीं अधिक है।

13) आलसी कहता है, "सिंह बाहर खड़ा है, सिंह गलियों में विचरता है"।

14) जिस तरह किवाड़ अपने कब्जे पर घूमता, उसी तरह आलसी अपने पलंग पर करवट बदलता है।

15) आलसी थाली में हाथ डालता तो है, किन्तु उसे मुँह तक उठाने में उसे थकान आती है।

16) विवेकपूर्ण उत्तर देने वाले सात ज्ञानियों की अपेक्षा मूर्ख अपने को अधिक बुद्धिमान् समझता है।

17) जो व्यक्ति दूसरों के झगड़े में दखल देता, वह आवारे कुत्ते के कान पकड़ने वाले जैसा है।

18) वह उस पागल-जैसा है, जो जलती लकड़ी फेंकता और घातक तीर मारता है।

19) या उस व्यक्ति-जैसा, जो अपने पड़ोसी को धोखा देने के बाद कहता है, "मैं तो मजाक कर रहा था"।

20) जहाँ लकड़ी नहीं, वहाँ आग बुझ जाती है। जहाँ चुगलखोर नहीं, वहाँ झगड़ा शान्त हो जाता है।

21) जैसे जलते अंगारों के लिए कोयला और आग के लिए लकड़ी, वैसे ही झगड़ा लगाने के लिए झगड़ालू व्यक्ति।

22 झूठी निन्दा करने वाले की बातें चाट-जैसी हैं; वे पेट की गहराई तक उतरती हैं।

23) जैसी मिट्टी के बरतन पर अशुद्ध चाँदी की कलाई, वैसे ही दुष्ट के होंठों पर चिकनी-चुपड़ी बातें।

24) जो बैर करता, उसके होंठ मधुर बातेंे करते, किन्तु उसका अन्तरतम कपट से भरा है।

25) वह भले ही मैत्रीपूर्ण बातें करें, तुम उस पर विश्वास मत करो; क्योंकि उसके हृदय में सात घृणित वस्तुएँ छिपी है।

26) वह भले ही अपना बैर कपट से छिपायें, उसकी दुष्टता सभा में प्रकट हो जाती है।

27) जो व्यक्ति गड्ढा खोदता, वह स्वयं उस में गिरेगा; जो व्यक्ति पत्थर ऊपर लुढ़काता, वह स्वयं उस से दब जायेगा।

28 झूठी जिह्वा अपने शिकार से घृणा करती है। चापलूसी करने वाला मुख विनाश की ओर ले जाता है।



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