📖 - सूक्ति ग्रन्थ

अध्याय ➤ 01- 02- 03- 04- 05- 06- 07- 08- 09- 10- 11- 12- 13- 14- 15- 16- 17- 18- 19- 20- 21- 22- 23- 24- 25- 26- 27- 28- 29- 30- 31- मुख्य पृष्ठ

अध्याय 04

1) पुत्रों! पिता की शिक्षा पर ध्यान दो। समझदार बनने का प्रयत्न करो।

2) मैं तुम लोगो को ज्ञान की बातें बता रहा हूँ। मेरी शिक्षा का तिरस्कार मत करो।

3) मैं भी अपने पिता का आज्ञाकारी पुत्र था। मेरी माता मुझे इकलौते पुत्र की तरह प्यार करती थी।

4) मेरे पिता ने यह कहते हुए मुझे शिक्षा दी: "सारे हृदय से मेरी शिक्षा अपनाओ। मेरी आज्ञाओं का पालन करो और तुम्हें जीवन प्राप्त होगा।

5) प्रज्ञा और समझदारी प्राप्त करो। मेरे शब्द याद रखो और उन से नहीं भटको

6) "प्रज्ञा का परित्याग मत करो और वह तुम्हारी रक्षा करेगी। उसको प्यार करो और वह तुम्हारी देख-रेख करेगी।

7) सब से पहले प्रज्ञा प्राप्त करो, किसी भी कीमत पर सद्बुद्धि प्राप्त करो।

8) इसे सँजोये रखो और यह तुम्हें सम्मान दिलायेगी।

9) यह तुम्हारे कण्ठ में एक मनोहर माला डाल देगी और तुम्हें महिमा का किरीट प्रदान करेगी।"

10) पुत्र! सुनो, मेरी बातों पर ध्यान दो और तुम्हारी आयु लम्बी होगी।

11) मै तुम्हें प्रज्ञा का मार्ग दिखाता और सन्मार्ग पर ले चलता हूँ।

12) तुम आगे बढ़ोगे, तो बाधा नहीं होगी; तुम दौड़ने लगोगे, तो ठोकर नहीं खाओगे।

13) इस शिक्षा को ग्रहण करो, इसे कभी मत छोड़ो, इसे सँजोये रखो, क्योंकि यह तुम्हारा जीवन है।

14) दुष्टों के मार्ग में प्रवेश मत करो; कुकर्मियों के पथ पर मत चलो।

15) उस से दूर रहो, उस पर पैर मत रखो; उस से कतरा कर आगे बढ़ो।

16) वे पाप किये बिना सोने नहीं जाते। यदि उन्होंने किसी को पथभ्रष्ट नहीं किया, तो उन्हे नींद नहीं आती।

17) वे अधर्म की रोटी खाते और हिंसा की मदिरा पीते हैं।

18) धर्मियों का मार्ग प्रभात के प्रकाश-जैसा है, जो दोपहर तक क्रमश: बढ़ता जाता है;

19) किन्तु विधर्मियों का मार्ग अन्धकारमय है। उन्हें पता नहीं कि वे किस चीज से ठोकर खायेंगे।

20) पुत्र! मेरी बातों पर ध्यान दो; कान लगा कर मेरी शिक्षा सुनो।

21) उसे अपनी आँखों से ओझल न होने दो; उसे अपने हृदय में सँजोये रखो।

22) वह तुम में नवजीवन का संचार करेगी और तुम्हारे शरीर को स्वस्थ रखेगी।

23) तुम बड़ी सावधानी से अपने हृदय की रक्षा करो, क्योंकि जीवन का स्त्रोत उस से फूटा करता है।

24) अपने मुख को असत्य न बोलने दो, अपने होंठो से हर प्रकार का कपट दूर रखो।

25) तुम्हारी आँखे सीधे, सामने की ओर देखा करें। तुम्हारी दृष्टि ठीक आगे की ओर टिकी रहे।

26) जिस पथ पर चलते हो, उसे ध्यान से देखो; तुम्हारे सभी मार्ग निरापद हों।

27) तुम न तो बायें भटकों और न दायें; बुराई के पथ पर पैर मत रखो।



Copyright © www.jayesu.com