📖 - सूक्ति ग्रन्थ

अध्याय ➤ 01- 02- 03- 04- 05- 06- 07- 08- 09- 10- 11- 12- 13- 14- 15- 16- 17- 18- 19- 20- 21- 22- 23- 24- 25- 26- 27- 28- 29- 30- 31- मुख्य पृष्ठ

अध्याय 10

1) बुद्धिमान् पुत्र अपने पिता को आनन्द देता, किन्तु मूर्ख पुत्र से माता को दुःख होता है।

2) अन्याय की सम्पत्ति से लाभ नहीं, किन्तु धार्मिकता मृत्यु से रक्षा करती है।

3) प्रभु धार्मिक मनुष्य को भूखा नहीं रहने देता, किन्तु पापियों की लालसा की पूर्ति में बाधा डालता है।

4) आलसी हाथ गरीब और परिश्रमी हाथ अमीर बनाते हैं।

5) जो उपयुक्त समय पर रसद एकत्र करता, वह बुद्धिमान् है। जो फसल के समय सोता रहता, वह घृणित है।

6) धार्मिक मनुष्य को आशीर्वाद प्राप्त है, किन्तु विधर्मी के मुख में हिंसा भरी है।

7) धार्मिक मनुष्य का स्मरण मंगलकारी है, किन्तु विधर्मी का नाम मिट जायेगा।

8) जो बुद्धिमान् है, वह आज्ञाओें का पालन करता है; किन्तु बकवादी मूर्ख का विनाश होता है।

9) जो धर्म के मार्ग पर चलता है, वह सुरक्षित है; किन्तु जो टेढ़े-मेढ़े मार्गों पर चलता है, वह दण्ड पायेगा।

10) जो आँख मारता है, वह दुःख का कारण बनता है और बकवादी मूर्ख नष्ट होता है।

11) सद्धर्मी का मुख जीवन का स्रोत है, किन्तु विधर्मी के मुख में हिंसा भरी है।

12) बैर झगड़े को बढ़ावा देता है, किन्तु प्रे्रम सभी पाप ढाँक देता है।

13) बुद्धिमान् के शब्दों में प्रज्ञा का निवास है, किन्तु लोग मूर्ख की पीठ पर लाठी मारते हैं।

14) बुद्धिमान अपने ज्ञान का भण्डार भरता रहता है। मूर्ख का बकवाद उसके विनाश का कारण बनता है।

15) धनी की सम्पत्ति उसके लिए किलाबन्द नगर है। कंगाल की गरीबी उसकी विपत्ति का कारण है।

16) धर्मी की कमाई जीवन की ओर, किन्तु विधर्मी की आमदनी पाप की ओर ले जाती है।

17) जो अनुशासन में रहता, वह जीवन की ओर आगे बढ़ता है; किन्तु जो चेतावनी की उपेक्षा करता, वह पथभ्रष्ट होता है।

18) जो अपना बैर छिपाता, वह कपटपूर्ण बातें करता है। जो झूठा आरोप लगाता, वह निरा मूर्ख है।

19) जो बहुत अधिक बोलता, वह पाप से नहीं बचता; किन्तु जो अपनी जिह्वा पर नियन्त्रण रखता, वह बुद्धिमान् है।

20) धर्मी की जिह्वा शुद्ध चाँदी है, किन्तु पापियों के हृदय का कोई मूल्य नहीं।

21) धर्मी की बातों से बहुतों को लाभ होता है, किन्तु मूर्ख अपने अविवेक के कारण नष्ट होते हैं।

22) प्रभु के आशीर्वाद से ही कोई धनवान बनता है। इसकी तुलना में हमारा परिश्रम नगण्य है।

23) मूर्ख पापकर्म में, किन्तु बुद्धिमान् प्रज्ञा में रस लेता है।

24) दुर्जन जिस बात से डरता, वह उसके सिर पड़ती है; किन्तु धर्मियों की मनोकामनाएँ पूरी हो जाती हैं।

25) बवण्डर पापी को उड़ा ले जाता है, किन्तु धर्मी सदा दृढ़ बना रहता है।

26) आलसी अपने को कार्य सौंपने वालों के लिए वैसा है, जैसा सिरका दाँतों के लिए और धुआँ आँखों के लिए।

27) प्रभु पर श्रद्धा आयु बढ़ाती है, किन्तु दुष्टों के वर्ष घटाये जाते हैं।

28) धर्मियों का भविष्य आनन्दमय है, किन्तु दुष्टों की आशा व्यर्थ हो जाती है।

29) प्रभु का मार्ग धर्मी का गढ़ है, किन्तु वह कुकर्मियों का विनाश करता है।

30) धर्मी कभी विचलित नहीं होगा, किन्तु विधर्मी देश में निवास नहीं करेंगे।

31) धर्मी के मुख से प्रज्ञा के शब्द निकलते हैं, किन्तु कपटी जिह्वा काट दी जायेगी।

32) धर्मी के होंठ प्रिय बातें करते हैं, किन्तु दुष्ट के मुख से कुटिल बातें निकलती हैं।



Copyright © www.jayesu.com