📖 - सूक्ति ग्रन्थ

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अध्याय 22

1) अपार सम्पत्ति की अपेक्षा सुयष श्रेष्ठ है। चाँदी-सोने की अपेक्षा सम्मान अच्छा है।

2) अमीर और गरीब में यही समानता है कि प्रभु ने दोनों की सृष्टि की है।

3) बुद्धिमान् खतरा देख कर छिप जाता है, किन्तु मूर्ख आगे बढ़ता और कष्ट पाता है।

4) विनम्रता का परिणाम है- प्रभु पर श्रद्धा, धन, सम्मान और जीवन।

5) कुटिल का मार्ग काँटों और फन्दों से भरा है; जो अपना जीवन सुरक्षित रखना चाहता, वह उससे दूर रहता है।

6) युवक को बचपन से ही सन्मार्ग की शिक्षा दो। वह बुढ़ापे में उससे भटकेगा नहीं।

7) धनी दरिद्रों पर शासन करता और ऋणदाता ऋणी को अपना दास बनाता है।

8) जो अन्याय बोता, वह विपत्ति लुनेगा। उसके क्रोध की लाठी नष्ट हो जायेगी।

9) जिसके चेहरे पर सहानुभूति झलकती है, उसे आशीर्वाद प्राप्त होगा; क्योंकि वह दरिद्रों को अपनी रोटी बाँटता है!

10) उपहासक को भगा दो और झगड़ा मिट जायेगा, वाद-विवाद और अपमान का अन्त हो जायेगा।

11) जिसे हृदय की पवित्रता प्रिय है और जिसकी बातों में मधुरता है: उसे राजा अपना मित्र बनाता है।

12) प्रभु की आँखे ज्ञान की रक्षा करती है। वह दुष्ट की बातों को व्यर्थ कर देता है।

13) आलसी कहता है, "सिंह बाहर खड़ा है, सड़क पर निकलने पर वह मेरा वध करेगा"।

14) व्यभिचारिणी का मुँह गहरा गड्ढा है। जिस व्यक्ति पर प्रभु अप्रसन्न है, वह उस में गिरेगा।

15) नवयुवक के हृदय में जो मूर्खता घर कर गयी, उसे अनुशासन की लाठी निकाल देगी।

16) जो दरिद्र पर अत्याचार करता, वह उसे लाभ पहुँचाता है। जो धनी को दान देता, वह दरिद्र बनता है।

17) कान लगा कर ज्ञानियों के वचन सुनो। मेरी शिक्षा में मन लगाओ;

18) क्योंकि यदि तुम उसे अपने हृदय में संचित रखोगे और वह तुम्हारे होंठों पर विद्यमान रहेगी, तो इससे तुम्हें सुख प्राप्त होगा।

19) मैं आज तुम को भी शिक्षा प्रदान करूँगा, जिससे तुम प्रभु पर श्रद्धा रखों।

20) मैंने तुम्हारे लिए परामर्श और ज्ञान सम्बन्धी तीस सूक्तियों को लिपिबद्ध किया है,

21) जिससे तुम को सत्य का विश्वसनीय ज्ञान प्राप्त हो और तुम उस व्यक्ति को विश्वसनीय उत्तर दे सको जो तुम को भेजता है।

22) दरिद्र का शोषण मत करो, क्योंकि वह दरिद्र है और न्यायालय में दीन-हीन को मत कुचलो;

23) क्योंकि प्रभु उनके पक्ष का समर्थन करेगा और उन्हें लूटने वालों का जीवन छीन लेगा।

24) क्रोधी का मित्र मत बनो, उग्र व्यक्ति की संगति मत करो।

25) कहीं ऐसा न हो कि तुम उसके समान बनो और अपने लिए जाल बिछा दो।

26) उन लोगो के समान मत बनो, जो दूसरों की जमानत देते और कर्जदारों की जिम्मेदारी लेते हैं।

27) कहीं ऐसा न हो कि चुकाने का रूपया तुम्हारे पास न हो और तुम्हारा बिस्तर भी तुम से छीन लिया जाये।

28) खेत का वह सीमा-पत्थर मत हटाओ, जिसे तुम्हारे पूर्वजों ने खड़ा किया है।

29) क्या तुम किसी को अपने काम में निपुण देखत हो? तो समझ लो कि वह साधारण लोगों की नहीं, बल्कि राजाओें की सेवा करेगा।



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